पटना: यूपी के वाराणसी से डिब्रूगढ़ के लिए रवाना हुआ गंगा विलास क्रूज (Ganga Vilas Cruise) सोमवार को छपरा के पास गंगा नदी में फंस गया. इसके पिछे नदी में बक्सर के डोरीगंज में पानी कम होने की वजह बताई गई. जहाज के फंसते ही प्रशासन और एसडीआरएफ की टीम पहुंची और तय शेड्यूल के मुताबिक, सैलानियों को पुरातात्विक स्थल पर ले जाया गया. इसके बाद गंगा विलास क्रूज एसडीआरएफ की मदद से आगे बढ़ाया गया. जिसके बाद दोपहर 3:30 बजे दानापुर के दियारा का लाइफलाइन कहे जाने वाले पीपा पुल को खोलकर पार कराया गया. लेकिन सवाल ये है कि रूट का निर्धारण पहले से तय था. साथ ही रूट का सर्वे पहले से कराया गया था तो नदी में जहाज कैसे फंस गया?
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बिहार में फंस गया गंगा विलास क्रूज : गंगा विलास क्रूज अपनी यात्रा के तीसरे दिन सोमवार सुबह जब छपरा पहुंचा तो यहां डोरीगंज के पास अटक गया और किनारे नहीं पहुंच सका. अधिकारियों ने बताया कि गंगा विलास क्रूज को समयनुसार, छपरा पहुंचना था और यहां से पर्यटकों को छपरा के डोरीगंज बाजा के पास चिरांद के पुरातात्विक स्थलों का दौरा करना था. लेकिन क्रूज जैसे ही डोरीगंज पहुंचा, यहां से किनारे नहीं लग पाया. जिसके बाद क्रूज से सैलानियो को छोटे जहाज से किनारे लाया गया और पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण कराया गया. इस दौरान ढोल-बाजों के बीच विदेशी सैलालियों का स्वागत हुआ. पर्यटकों ने मौजूद लोगों के साथ यादगार सेल्फी भी ली. बता दें कि इस क्रूज में स्विट्जरलैंड के 31 सैलानी सवार हैं.
छपरा में क्यों फंसा क्रूज? : अब सवाल ये उठता है कि क्या यहां पर नदी की गहराई कम थी. अगर गहराई कम थी तो क्या इसकी जानकारी जहाज के कैप्टन को नहीं थी. फिलहाल तमाम सवालों के जवाब ढूंढे जाएंगे. और उम्मीद की जाए की जहाज के आगे बढ़ने के बाद क्रूज दोबारा नहीं फंसे. लेकिन यहां जो समस्या की जड़ सामने आई वो 'गाद' है. लेकिन गाद इतने बड़े जहाज को आगे बढ़ने से कैसे रोक सकती हैं. आइये आपको बताते है.
गंगा नदी में गाद, बड़ी समस्या : गंगा बिहार के ठीक मध्य से होकर गुजरती है. यह पश्चिम में बक्सर जिले से राज्य में प्रवेश करती है और भागलपुर तक करीब 445 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई झारखंड और फिर बंगाल में प्रवेश करती है. जानकार बताते है कि गंगा बिहार में प्रवेश करने के बाद चौड़े इलाके में फैल जाती है. देखा जाता है कि नदी के बीच में बड़े-बड़े स्थायी टापू बन जाते हैं. एक्सपर्ट की माने तो कई साल पहले गंगा की गहराई 9 से 10 मीटर हुआ करती थी, जो सिमटकर 4 से 5 मिटर रह गई है.
बक्सर में एक महीने तक फंसा रहा जहाज : इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश से बिहार तक नदियों में गाद से की बड़ी समस्या है. वाराणसी से पटना का रास्ता तो काफी जटिल है. इस रास्ते में साल 2018 में एक जहाज बिहार के बक्सर पास एक महीने से ज्यादा वक्त तक फंस गया था. इसी तरह करीब 3 साल पहले हल्दिया से 52 कंटेनर लेकर चला कार्गो एमवी भव्या भारती अतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के पटना के गायघाट टर्मिनल तक नहीं पहुंच सका और भागलपुर के पास फंस गया था. जिसके बाद कंटेनर को सड़क मार्ग से गायघाट तक लाना पड़ा.
जब गंगा नदी में दो दिन तक फंसा रहा जहाज : 5 फरवरी 2021, पटना में गंगा किनारे 200 मीट्रिक टन खाद्यान लेकर अंतर्देशीय मालवाहक जहाज एमवी लालबहादुर शास्त्री को गंदा नदी, सुंदरवन, बांग्लादेश और ब्रह्मपुत्र नदी से गुजरते हुए असम के पांडू तक की यात्रा के लिए निकलना था. लेकिन हरी झंडी दिखाकर इस जहाज को रवाना किया गया. कार्गो जहाज ने मुश्किल से 8 से 10 किलोमीटर की यात्रा तय की थी कि कच्ची दरगाह के पीपा पुल के पास रुकना पड़ा. इतना ही नहीं, पीपा पुल को खोल कर कार्गो जहाज को पार कराने में करीब दो दिन का वक्त लग गया. बताया गया कि पीपा पुल का एक लॉक फंस गया था.
गंगा के पेट में गाद की ढेर : इस रूट पर बड़ी मुश्किल से कार्गो जहाज परिचालन की कोशिश की जाती है. जिसके लिए समय-समय पर गंगा नदी में गाद को हटाने के लिए ड्रेजिंग मशीन का इस्तेमाल करना पड़ता है. इसके बावजूद कई बार पानी कम होने की वजह से इस रूट पर परिचालन बंद करना पड़ता है. दरअसल, यह समस्या बीते दो दशको से चली आ रही है. नदी की धारा बदल रही है. सिल्ट (गाद) के कारण नदियों का तल ऊंचा होने से गेज भी सही जलस्तर की जानकारी नहीं दे पाता है. ऐसे में नदी का तल लगातार ऊपर बढ़ रहा है, जिससे कम पानी में ही नदियों में उफान आ जाता है. यहीं नहीं नदियां कम पानी में ही खतरे के निशान को पार कर जाती हैं.
फरक्का बांध वरदान है या अभिशाप? : यहां आपको बता दें कि हावड़ा के हुगली नदी से गाद हटाने के लिए बना फरक्का बराज का निर्माण किया गया था. लेकिन सालों से देखने को मिल रहा है कि जिस बराज को हुगली से गाद हटाना था, वह गंगा में गाद जमाने लगा. यह बराद 2.6 किलोमीटर लंबा है और इसके दाहिने छोर से करीब 38 किलोमीटर लंबी नहर भागीरथी-हुगली में पानी ले जाती है. जो आगे जाकर भागीरथी और हुगली कहलाती है और दूसरी बांग्लादेश में जाकर पद्मा कहलाती है. सरकार की योजना थी की बैराज से 40 हजार गनसेक पानी हुगली में छोड़ा जाएगा, जो नदी की गाद को समुद्र तक धकेल कर इसे जहाजों की आवाजाही के लायक बनाए रखेगा. लेकिन इसमें कोई सफलता नहीं दिख रही.
गंगा में कितनी गाद? : बिहार में हिमालय से आने वाली गंगा की सहायक नदियां कोसी, गंडक और घाघरा बहुत ज्यादा गाद लाती है. इसे वे गंगा में अपने मुहाने पर जमा करती हैं. इसकी वजह से पानी आसपास के इलाकों में फैलने लगता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, फरक्का से होकर गंगा नदी में हर साल करीब 80 करोड़ टन गाद आती है. एक और रिपोर्ट की माने तो गंगा नदी में करीब 73.6 करोड़ टन गांद आती है, जिसमें से 32.8 करोड़ टन गाद इस बराज के प्रति प्रवाह में ठहर जाती है. वहीं, गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोगी द्वारा गंगा की उड़ाही पर बनी चितले समिति के 2016 के आंकड़ों के अनुसार यह महज 21.8 करोड़ टन है.
क्या कहा था एक्सपर्ट कमेटी ने? : पिछले कुछ साल पहले केन्द्र सरकार द्वारा एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी ने गंगा के बहाव क्षेत्र में 11 जगहों को चिन्हित किया था. जहां से गाद (सिल्ट) हटाने की अनुशंसा की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया था कि बिहार में बक्सर से लेकर पश्चिम बंगाल में फरक्का तक गंगा का करीब 544 किलोमीटर का स्ट्रेच गाद (सिल्ट) से बुरी तरह प्रभावित है. साथ ही, रिपोर्ट में 11 जगहों पर गाद हटाने की बात कही गई.
''अगर पांच साल में इन 11 जगहों से गाद नहीं हटाया गया तो बिहर में बाढ़ का और भी विकराल देखने को मिल सकता है. लेकिन अगर गाद हटा लिया गया तो नदी का बहाव सही रहेगा और बाढ़ी भयावहता को नियंत्रित करने में मदद मिलेगा.'' - एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य रामाकर झा का 2018 का बयान
गाद की समस्या को लेकर गंभीर नहीं सरकारें? : हालांकि, इसके बाद 2018 में पटना में ईस्ट इंडिया क्लाइमेंट चेंज कॉनक्लेव आयोजित किया गया था. इस कॉनक्लेव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बक्सर का जिक्र करते हुए कहा था कि पिछले दिनों (साल 2018) में बक्सर कके रामरेखा घाट के पास एक मालवाहक जहाज फंस गया था. इस जहाज को निकालने के लिए अर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. सवाल ये है कि बक्सर में एक बार फिर गंगा विलास क्रूज गाद की वजह से फंस गया, ऐसे में अगर गाद की समस्या गंभीर है तो इसको लेकर सरकार क्यों नहीं गंभीर है.