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बिहार: 14 साल पहले ख़त्म किया गया था APMC एक्ट, किसानों को क्या मिला? - New agricultural law

साल 2006 में बिहार में नीतीश सरकार ने एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी यानी कृषि उपज और पशुधन बाजार समिति को ख़त्म कर दिया था. लेकिन क्या वास्तव में किसानों की हालत में सुधार हुआ है? देखें पूरी रिपोर्ट...

BIHAR BIHAR
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Published : Feb 6, 2021, 7:20 PM IST

Updated : Feb 8, 2021, 2:48 PM IST

पटना: तीन नए कृषि कानूनों से नाराज किसान राजधानीदिल्ली की घेराबंदी करके कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों की नाराजगी जिन मसलों पर है, उनमें से एक यह भी है कि नए कानून के तहत मंडियां खत्म हो जाएंगी.

बिहार में 2006 में एपीएमसी अधिनियम को खत्म करके इसे किसानों के हित में बताया गया था. उस समय नीतीश कुमार को सत्ता संभाले एक साल ही हुआ था. लगभग 14 साल बीत चुके हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए अनुकूल बाजार नहीं मिल पाया है. इस कारण किसान अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं.

ईटीवी भारत (GFX)
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"कृषि बाजार समिति या फिर मंडी व्यवस्था में कुछ खामियां थी. सरकार ने उसे दुरुस्त करने के बजाय व्यवस्था को ही खत्म कर दिया. नतीजा यह है कि किसान और गरीब होते चले गए. बड़े किसान, सीमांत किसान हो गए और सीमांत किसान लघु किसान हो गए. लघु किसान को मजदूरी करने को विवश होना पड़ा": डीएम दिवाकर, अर्थशास्त्री

डीएम दिवाकर,  अर्थशास्त्री
डीएम दिवाकर, अर्थशास्त्री

जानिए क्या है शांता कमेटी की रिपोर्ट
कृषि बाजार समिति एक्ट खत्म किए जाने के बाद केंद्र और बिहार सरकार ने किसानों के फसल में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने शुरू किए. लेकिन शांता कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक 6% फसल ही किसानों की सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद पाती है. बांकी फसलों को किसान औने-पौने दाम में बाजार में बेचने को मजबूर होते हैं. साल 2005 से साल 2010 के बीच कृषि ग्रोथ रेट 5.4 प्रतिशत थी. 2010 से 2014 के बीच आंकड़ा घटकर 3.7 प्रतिशत हो गया. और अब 1.2 प्रतिशत के आसपास सिमट चुका है.

ईटीवी भारत (GFX)
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एनसीएईआर के आंकड़े
एनसीएईआर ने जो आंकड़ा जारी किया है. वह चौंका देने वाला है. बिहार में पिछले कुछ साल से कृषि ग्रोथ रेट नेगेटिव है. साल 2011-12 से लेकर साल 2016 -17 के बीच कृषि ग्रोथ रेट -1% रहा जबकि फसल ग्रोथ रेट -3.5 प्रतिशत रहा. साल 2018-19 के बीच जहां फसल ग्रोथ रेट -3 .9% रही, वहीं कृषि ग्रोथ रेट 0. 6 प्रतिशत पर सिमट गई.

ईटीवी भारत (GFX)
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बिहार भारत में मक्का का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों में से एक है. सब्जियों के उत्पादन में बिहार का चौथा और फलों के उत्पादन में आठवां स्थान है. बिहार में करीब 70 से 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है.

क्या कहते हैं किसान सिद्धेश्वर राय
किसान सिद्धेश्वर राय धान का कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्र भभुआ से आते हैं. ये 50 एकड़ जमीन के मालिक हैं. सिद्धेश्वर राय जैसे किसानों की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है. उनका कहना है कि फसलों के उचित दाम नहीं मिलते हैं. इस कारण मजबूरी में ओने-पौने दाम पर बाजार में फसल बेचने पड़ता है. मंडी नहीं रहने के चलते फसल की उचित कीमत नहीं मिल पाती है.

ईटीवी भारत (GFX)
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ये भी पढ़ें: 'बिहार में किसानों के बिना ही चल रहा आंदोलन, विपक्ष की सारी कोशिशें नाकाम'

किसानों के मामले पर भारतीय जनता पार्टी की राय कुछ अलग है. पार्टी नेता प्रेम रंजन पटेल का मानना है कि एक्ट के खत्म होने से किसानों की स्थिति बेहतर हुई है. किसानों की आय में भी इजाफा हुआ है. वहीं, जदयू प्रवक्ता निहोरा यादव का कहना है कि- जब कृषि बाजार समिति एक्ट बिहार में लागू था तब किसानों को गुंडागर्दी झेलनी पड़ती थी. जबरन किसानों से टैक्स की वसूली की जाती थी. नीतीश कुमार ने आते ही किसानों को गुंडागर्दी से मुक्ति दिलाई थी.

ईटीवी भारत (GFX)
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पढ़ें: चिराग पासवान ने की रूपेश सिंह हत्याकांड की CBI जांच की मांंग

डॉ. संजय कुमार भी बड़े कास्तकार हैं. संजय कुमार का कहना है कि कृषि बाजार समिति एक्ट खत्म होने से किसानों की परेशानियां बढ़ीं हैं. बिहार के किसान और मध्य प्रदेश के किसान बराबर गेहूं का उत्पादन करते हैं. लेकिन मध्य प्रदेश के किसान इसलिए समृद्ध हैं कि उनके पास अपने गेहूं बेचने के लिए मंडी का विकल्प है. बिहार के किसान सिर्फ 5000 टन गेहूं ही एमएसपी पर बेच पाते हैं. जाहिर है कि बिहार के किसान दिन प्रतिदिन गरीब होते गए, जब मंडी व्यवस्था थी. तब मंडी के आय का 55% हिस्सा बिहार सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करती थी.

देखें रिपोर्ट...

बता दें कि बिहार में एपीएमसी अधिनियम के खत्म हो जाने से आधारभूत संरचनाओं में कमी आई. छोटे और सीमांत किसानों की स्थिति नहीं बदली, सरकारी खरीद कम हो गई, मक्का आदि के बजार में बिचौलियों की संख्या बढ़ गई और कहीं भी निजी क्षेत्र में निवेश नहीं आया.

पलायन का दर्द क्यों बढ़ा?
14 वर्ष तो बीत गए. अब सवाल यह है कि वहां कितना निवेश आया? वहां के किसानों को क्यों आज सबसे कम दाम पर फसल बेचनी पड़ रही है? अगर वहां इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी, तो मजदूरों के पलायन का सबसे दर्दनाक चेहरा बिहार में ही क्यों दिखा?

पटना: तीन नए कृषि कानूनों से नाराज किसान राजधानीदिल्ली की घेराबंदी करके कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों की नाराजगी जिन मसलों पर है, उनमें से एक यह भी है कि नए कानून के तहत मंडियां खत्म हो जाएंगी.

बिहार में 2006 में एपीएमसी अधिनियम को खत्म करके इसे किसानों के हित में बताया गया था. उस समय नीतीश कुमार को सत्ता संभाले एक साल ही हुआ था. लगभग 14 साल बीत चुके हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए अनुकूल बाजार नहीं मिल पाया है. इस कारण किसान अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं.

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"कृषि बाजार समिति या फिर मंडी व्यवस्था में कुछ खामियां थी. सरकार ने उसे दुरुस्त करने के बजाय व्यवस्था को ही खत्म कर दिया. नतीजा यह है कि किसान और गरीब होते चले गए. बड़े किसान, सीमांत किसान हो गए और सीमांत किसान लघु किसान हो गए. लघु किसान को मजदूरी करने को विवश होना पड़ा": डीएम दिवाकर, अर्थशास्त्री

डीएम दिवाकर,  अर्थशास्त्री
डीएम दिवाकर, अर्थशास्त्री

जानिए क्या है शांता कमेटी की रिपोर्ट
कृषि बाजार समिति एक्ट खत्म किए जाने के बाद केंद्र और बिहार सरकार ने किसानों के फसल में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने शुरू किए. लेकिन शांता कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक 6% फसल ही किसानों की सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद पाती है. बांकी फसलों को किसान औने-पौने दाम में बाजार में बेचने को मजबूर होते हैं. साल 2005 से साल 2010 के बीच कृषि ग्रोथ रेट 5.4 प्रतिशत थी. 2010 से 2014 के बीच आंकड़ा घटकर 3.7 प्रतिशत हो गया. और अब 1.2 प्रतिशत के आसपास सिमट चुका है.

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एनसीएईआर के आंकड़े
एनसीएईआर ने जो आंकड़ा जारी किया है. वह चौंका देने वाला है. बिहार में पिछले कुछ साल से कृषि ग्रोथ रेट नेगेटिव है. साल 2011-12 से लेकर साल 2016 -17 के बीच कृषि ग्रोथ रेट -1% रहा जबकि फसल ग्रोथ रेट -3.5 प्रतिशत रहा. साल 2018-19 के बीच जहां फसल ग्रोथ रेट -3 .9% रही, वहीं कृषि ग्रोथ रेट 0. 6 प्रतिशत पर सिमट गई.

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बिहार भारत में मक्का का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों में से एक है. सब्जियों के उत्पादन में बिहार का चौथा और फलों के उत्पादन में आठवां स्थान है. बिहार में करीब 70 से 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है.

क्या कहते हैं किसान सिद्धेश्वर राय
किसान सिद्धेश्वर राय धान का कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्र भभुआ से आते हैं. ये 50 एकड़ जमीन के मालिक हैं. सिद्धेश्वर राय जैसे किसानों की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है. उनका कहना है कि फसलों के उचित दाम नहीं मिलते हैं. इस कारण मजबूरी में ओने-पौने दाम पर बाजार में फसल बेचने पड़ता है. मंडी नहीं रहने के चलते फसल की उचित कीमत नहीं मिल पाती है.

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किसानों के मामले पर भारतीय जनता पार्टी की राय कुछ अलग है. पार्टी नेता प्रेम रंजन पटेल का मानना है कि एक्ट के खत्म होने से किसानों की स्थिति बेहतर हुई है. किसानों की आय में भी इजाफा हुआ है. वहीं, जदयू प्रवक्ता निहोरा यादव का कहना है कि- जब कृषि बाजार समिति एक्ट बिहार में लागू था तब किसानों को गुंडागर्दी झेलनी पड़ती थी. जबरन किसानों से टैक्स की वसूली की जाती थी. नीतीश कुमार ने आते ही किसानों को गुंडागर्दी से मुक्ति दिलाई थी.

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पढ़ें: चिराग पासवान ने की रूपेश सिंह हत्याकांड की CBI जांच की मांंग

डॉ. संजय कुमार भी बड़े कास्तकार हैं. संजय कुमार का कहना है कि कृषि बाजार समिति एक्ट खत्म होने से किसानों की परेशानियां बढ़ीं हैं. बिहार के किसान और मध्य प्रदेश के किसान बराबर गेहूं का उत्पादन करते हैं. लेकिन मध्य प्रदेश के किसान इसलिए समृद्ध हैं कि उनके पास अपने गेहूं बेचने के लिए मंडी का विकल्प है. बिहार के किसान सिर्फ 5000 टन गेहूं ही एमएसपी पर बेच पाते हैं. जाहिर है कि बिहार के किसान दिन प्रतिदिन गरीब होते गए, जब मंडी व्यवस्था थी. तब मंडी के आय का 55% हिस्सा बिहार सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करती थी.

देखें रिपोर्ट...

बता दें कि बिहार में एपीएमसी अधिनियम के खत्म हो जाने से आधारभूत संरचनाओं में कमी आई. छोटे और सीमांत किसानों की स्थिति नहीं बदली, सरकारी खरीद कम हो गई, मक्का आदि के बजार में बिचौलियों की संख्या बढ़ गई और कहीं भी निजी क्षेत्र में निवेश नहीं आया.

पलायन का दर्द क्यों बढ़ा?
14 वर्ष तो बीत गए. अब सवाल यह है कि वहां कितना निवेश आया? वहां के किसानों को क्यों आज सबसे कम दाम पर फसल बेचनी पड़ रही है? अगर वहां इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी, तो मजदूरों के पलायन का सबसे दर्दनाक चेहरा बिहार में ही क्यों दिखा?

Last Updated : Feb 8, 2021, 2:48 PM IST
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