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सवाल: पटना का एक बड़ा हिस्सा क्यों डूब गया...आखिर कहां हुई चूक?

ईटीवी भारत को एक्सपर्टस ने बताया कि आखिर क्या कारण है कि पटना में भारी बारिश के बाद इतना पानी जमा हो गया कि बाढ़ जैसे हालात बन गए. साथ ही विशेषज्ञों ने इसका निराकरण भी बताया.

फाइल फोटो
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Published : Oct 11, 2019, 7:04 AM IST

पटना: राजधानी में क्या मंत्री, क्या संतरी... भारी बारिश के बाद जलजमाव ने लोगों को खूब परेशान किया. बारिश बंद होने के बावजूद पानी की निकासी पटना से नहीं हो पाई. ऐसे में सबके मन में एक ही सवाल था कि आखिर स्मार्ट सिटी बनाने की होड़ में बुनियादी सुविधाएं तक ठीक क्यों नहीं हुईं. आखिर पानी की निकासी के लिए विभाग और शहर के प्लानर ने क्या किया.

एनआईटी के प्रोफेसर क्या मानते हैं कारण

अगर पटना एनआईटी के प्रोफेसर डॉ. संजीव सिन्हा की मानें तो पटना में हर साल बारिश होती है. विभाग को युद्धस्तर पर पानी की निकासी के लिए काम करना चाहिए था. लेकिन नहीं हो पाया. इसबार बारिश ज्यादा हो गई. शहर के कई संप हाउस खराब पड़े रहे. सीवरेज सिस्टम सही नहीं होने की वजह से पानी संप हाउस तक नहीं पहुंच पाया इसलिए पानी यहां जमा हो गया.

PATNA
सड़क जमा पानी

नमामि गंगे प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन पर सवाल

प्रोफेसर साहब मानते हैं कि ''भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजन नमामि गंगे का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पाया. नई पाइप लाइन बनाने से पहले ही पुरानी पाइप लाइन को धवस्त कर दिया गया. जबकि पानी की निकासी के वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाई थी''.

PATNA
बारिश के बाद जमा पानी

भूगोलविद क्या कारण मानते हैं

''2008 में नाला तो बना लेकिन कनेक्ट नहीं हुआ. मौसम की सही जानकारी नहीं होना भी बड़ी वजह है. निरीक्षण, मॉनिटरिंग मीटिंग भी समय पर विभाग ने नहीं किया.''

PATNA
सड़क पर पानी जमा होने के बाद ठेले पर बाइक ले जाता युवक

जनजागरूकता फैलानी चाहिए

भूगोलविद डॉ आनंद राज कहते हैं कि 'पटना में लोग प्लास्टिक की बोतले जहां तहां फेंक देते हैं. लेकिन ऐसे में सरकार को यह करना चाहिए था कि जुर्माना लगाकर जागरूक भी कर सकते थे. उसकी निकासी के लिए व्यवस्था बनानी चाहिए थी.'

देखें वीडियो.

भौगोलिक कारण

भौगौलिक तौर पर देखा जाए. तो कंकड़बाग, राजेंद्रनगर की बनावट कटोरे जैसी है. जहां पानी जमना लाजमी है. कहने का मतलब है कि पटना तीन नदियों से घिरा है. गंगा, पुनपुन, सोन और तीनों का बहाव क्षेत्र देखना जरूरी है कि नाला का निकासी भी पूरब और उत्तर की ओर होना चाहिए. क्योंकि बहाव इधर ही है.

बहाव की सही दिशा में नहीं छोड़ा गया पानी

कंकड़बाग इलाके में बहाव को नाला से जोड़ा जाना चाहिए था. अंताघाट के नाले से जोड़ा जाना चाहिए था. पटना कॉलेज के नाले से जोड़ा जाना चाहिए. लेकिन जोड़ा गया बादशाही नाला से जिसका बहाव नीचे की तरफ है. वहां गंगा का लेवल ऊंचा है. इसलिए बादशाही नाले में पानी जाकर निकल नहीं पा रहा था. कई जगह के संप हाउस काम नहीं कर पा रहे थे. नाले की सफाई होनी चाहिए थी. मॉनिटरिंग होनी चाहिए थी.

प्रोफेसर ने बताया निराकरण

प्रोफेसर साहब कहते हैं कि पटना में कई नालों और सीवरेज का निर्माण कराया गया था, लेकिन महत्वपूर्ण पहल यह होनी चाहिए थी कि पानी का उदगम स्थान ऊंचे और पानी की निकासी नीचे के स्थान से होनी चाहिए. नई टेक्नोलॉजी की मदद लेनी चाहिए. एक डिजिटल एलिवेशन माडल की मदद लेनी चाहिए ताकि पता चल सके कि पानी का लेवल क्या है. उनका कहना है कि सबसे ज्यादा जरूरी है कि पूरे शहर के सीवरेज सिस्टम का मैप होना चाहिए.

पटना: राजधानी में क्या मंत्री, क्या संतरी... भारी बारिश के बाद जलजमाव ने लोगों को खूब परेशान किया. बारिश बंद होने के बावजूद पानी की निकासी पटना से नहीं हो पाई. ऐसे में सबके मन में एक ही सवाल था कि आखिर स्मार्ट सिटी बनाने की होड़ में बुनियादी सुविधाएं तक ठीक क्यों नहीं हुईं. आखिर पानी की निकासी के लिए विभाग और शहर के प्लानर ने क्या किया.

एनआईटी के प्रोफेसर क्या मानते हैं कारण

अगर पटना एनआईटी के प्रोफेसर डॉ. संजीव सिन्हा की मानें तो पटना में हर साल बारिश होती है. विभाग को युद्धस्तर पर पानी की निकासी के लिए काम करना चाहिए था. लेकिन नहीं हो पाया. इसबार बारिश ज्यादा हो गई. शहर के कई संप हाउस खराब पड़े रहे. सीवरेज सिस्टम सही नहीं होने की वजह से पानी संप हाउस तक नहीं पहुंच पाया इसलिए पानी यहां जमा हो गया.

PATNA
सड़क जमा पानी

नमामि गंगे प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन पर सवाल

प्रोफेसर साहब मानते हैं कि ''भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजन नमामि गंगे का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पाया. नई पाइप लाइन बनाने से पहले ही पुरानी पाइप लाइन को धवस्त कर दिया गया. जबकि पानी की निकासी के वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाई थी''.

PATNA
बारिश के बाद जमा पानी

भूगोलविद क्या कारण मानते हैं

''2008 में नाला तो बना लेकिन कनेक्ट नहीं हुआ. मौसम की सही जानकारी नहीं होना भी बड़ी वजह है. निरीक्षण, मॉनिटरिंग मीटिंग भी समय पर विभाग ने नहीं किया.''

PATNA
सड़क पर पानी जमा होने के बाद ठेले पर बाइक ले जाता युवक

जनजागरूकता फैलानी चाहिए

भूगोलविद डॉ आनंद राज कहते हैं कि 'पटना में लोग प्लास्टिक की बोतले जहां तहां फेंक देते हैं. लेकिन ऐसे में सरकार को यह करना चाहिए था कि जुर्माना लगाकर जागरूक भी कर सकते थे. उसकी निकासी के लिए व्यवस्था बनानी चाहिए थी.'

देखें वीडियो.

भौगोलिक कारण

भौगौलिक तौर पर देखा जाए. तो कंकड़बाग, राजेंद्रनगर की बनावट कटोरे जैसी है. जहां पानी जमना लाजमी है. कहने का मतलब है कि पटना तीन नदियों से घिरा है. गंगा, पुनपुन, सोन और तीनों का बहाव क्षेत्र देखना जरूरी है कि नाला का निकासी भी पूरब और उत्तर की ओर होना चाहिए. क्योंकि बहाव इधर ही है.

बहाव की सही दिशा में नहीं छोड़ा गया पानी

कंकड़बाग इलाके में बहाव को नाला से जोड़ा जाना चाहिए था. अंताघाट के नाले से जोड़ा जाना चाहिए था. पटना कॉलेज के नाले से जोड़ा जाना चाहिए. लेकिन जोड़ा गया बादशाही नाला से जिसका बहाव नीचे की तरफ है. वहां गंगा का लेवल ऊंचा है. इसलिए बादशाही नाले में पानी जाकर निकल नहीं पा रहा था. कई जगह के संप हाउस काम नहीं कर पा रहे थे. नाले की सफाई होनी चाहिए थी. मॉनिटरिंग होनी चाहिए थी.

प्रोफेसर ने बताया निराकरण

प्रोफेसर साहब कहते हैं कि पटना में कई नालों और सीवरेज का निर्माण कराया गया था, लेकिन महत्वपूर्ण पहल यह होनी चाहिए थी कि पानी का उदगम स्थान ऊंचे और पानी की निकासी नीचे के स्थान से होनी चाहिए. नई टेक्नोलॉजी की मदद लेनी चाहिए. एक डिजिटल एलिवेशन माडल की मदद लेनी चाहिए ताकि पता चल सके कि पानी का लेवल क्या है. उनका कहना है कि सबसे ज्यादा जरूरी है कि पूरे शहर के सीवरेज सिस्टम का मैप होना चाहिए.

Intro:राजधानी पटना में कुछ दिनों पहले बारिश के पानी के कारण कई इलाकों में जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी और यह जलजमाव की स्थिति कई दिनों तक कई इलाकों के लिए नासूर साबित हुई कई दिनों तक तो राजधानी पटना के निचले इलाकों में जमा पानी सड़कर बदबू देने लगा था और आखिर राजधानी पटना में स्थिति क्यों उत्पन्न हुई और आखिर इस स्थित से निकलने के क्या उपाय है इसपर अपनी राय दे रहे है पटना एनआईटी के सिविल इंजीनिरियरिंग विभाग के प्रोफेशर डॉक्टर सजीव सिन्हा ने बताया है कि सरकार और बिभाग को पहले तो शहर का एक डिजिटल एलिवेसन मॉडल बनाना चाइये और इसी टेक्नोलॉजी के माध्यम से सीवरेज सिस्टम को ठीक किया जाए और अगर सरकार इस टेक्नोलॉजी वे जरिये सीवरेज लाइन को ठीक करे तब कही जाकर शहर वासियों को भविष्य में ऐसी स्थिति का सामना नही करना पड़े...


Body:क्यों डूबा पटना.....

इस सवाल का जवाब देते हुए प्रोफेसर संजीव ने बताया की राजधानी पटना के निचले इलाकों मैं काफी दिनों तक पानी जमा रहने का मुख्य कारण यह था कि जलजमाव के स्थल से संभावित तक पानी पहुंच ही नहीं रहा था संभव और जमा पानी का कनेक्शन टूट चुका था और कहीं ना कहीं इस पूरे प्रकरण में नमामि गंगे प्रोजेक्ट ने भी काफी बाधा पहुंचाई इस प्रोजेक्ट के तहत कई जगह बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए हुए पुराने सीवरेज के पाइप लाइनों को ध्वस्त कर दिया गया जिस कारण शहर में यह स्थिति उत्पन्न हो गई अगर विभाग या सरकार कोई वैकल्पिक व्यवस्था करती तो लोगों को यह दिन नहीं देखना पड़ता






Conclusion:कहा हुई चूक ....

डॉक्टर संजीव बताते हैं की राजधानी के सीवरेज सिस्टम को ठीक करने के लिए कई बार प्रोजेक्ट चलाए गए विश्वास बोर्ड के द्वारा बनाया गया गंगा परियोजना के तहत भी सीवरेज लाइनों को ठीक किया गया था तो उसके बाद एनबीसीसी ने भी राजधानी पटना के कई नालों को ठीक करवाया था पर उसके बाद भी स्थिति नारकीय ही रहे दरअसल सीवरेज सिस्टम पर मारते समय एक बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि पानी का जहां से उद्गम स्थल है वह ऊंचा होना चाहिए और जहां उसका निकास है वह स्थल नीचा होना चाहिए आज हम पूरी तरह से पंप के भरोसे हैं हमें कुछ प्राकृतिक उपाय भी करने चाहिए थे जिससे पानी का स्रोत आसानी से निकल सके पर सरकार और विभाग ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया

क्या है उपाय.....

इस मामले पर बोलते हुए प्रोफेसर ने बताया कि सबसे पहले शहर का एक डिजिटल एलिवेशन मॉडल बनाना चाहिए जिससे यह पता चल सके कि शहर का कौन सा स्थान ऊंचा है और कौन सा स्थान नीचा है और इसी मॉडल के तहत शहर के सीवरेज लाइनों को अगर ठीक किया जाए तब कहीं जाकर आने वाले दिनों में शहर वासियों को ऐसे विकट स्थिति का सामना नहीं करना पड़े दूसरी और सरकार को संभावनाओं के साथ-साथ कुछ प्राकृतिक उपाय भी करने होंगे जिससे अगर कभी पंप खराब हो जाए तो प्राकृतिक उपाय के जरिए भी शहर के पानी को निकालने का जुगाड़ हो....
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