पटना: राजधानी में क्या मंत्री, क्या संतरी... भारी बारिश के बाद जलजमाव ने लोगों को खूब परेशान किया. बारिश बंद होने के बावजूद पानी की निकासी पटना से नहीं हो पाई. ऐसे में सबके मन में एक ही सवाल था कि आखिर स्मार्ट सिटी बनाने की होड़ में बुनियादी सुविधाएं तक ठीक क्यों नहीं हुईं. आखिर पानी की निकासी के लिए विभाग और शहर के प्लानर ने क्या किया.
एनआईटी के प्रोफेसर क्या मानते हैं कारण
अगर पटना एनआईटी के प्रोफेसर डॉ. संजीव सिन्हा की मानें तो पटना में हर साल बारिश होती है. विभाग को युद्धस्तर पर पानी की निकासी के लिए काम करना चाहिए था. लेकिन नहीं हो पाया. इसबार बारिश ज्यादा हो गई. शहर के कई संप हाउस खराब पड़े रहे. सीवरेज सिस्टम सही नहीं होने की वजह से पानी संप हाउस तक नहीं पहुंच पाया इसलिए पानी यहां जमा हो गया.
नमामि गंगे प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन पर सवाल
प्रोफेसर साहब मानते हैं कि ''भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजन नमामि गंगे का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पाया. नई पाइप लाइन बनाने से पहले ही पुरानी पाइप लाइन को धवस्त कर दिया गया. जबकि पानी की निकासी के वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाई थी''.
भूगोलविद क्या कारण मानते हैं
''2008 में नाला तो बना लेकिन कनेक्ट नहीं हुआ. मौसम की सही जानकारी नहीं होना भी बड़ी वजह है. निरीक्षण, मॉनिटरिंग मीटिंग भी समय पर विभाग ने नहीं किया.''
जनजागरूकता फैलानी चाहिए
भूगोलविद डॉ आनंद राज कहते हैं कि 'पटना में लोग प्लास्टिक की बोतले जहां तहां फेंक देते हैं. लेकिन ऐसे में सरकार को यह करना चाहिए था कि जुर्माना लगाकर जागरूक भी कर सकते थे. उसकी निकासी के लिए व्यवस्था बनानी चाहिए थी.'
भौगोलिक कारण
भौगौलिक तौर पर देखा जाए. तो कंकड़बाग, राजेंद्रनगर की बनावट कटोरे जैसी है. जहां पानी जमना लाजमी है. कहने का मतलब है कि पटना तीन नदियों से घिरा है. गंगा, पुनपुन, सोन और तीनों का बहाव क्षेत्र देखना जरूरी है कि नाला का निकासी भी पूरब और उत्तर की ओर होना चाहिए. क्योंकि बहाव इधर ही है.
बहाव की सही दिशा में नहीं छोड़ा गया पानी
कंकड़बाग इलाके में बहाव को नाला से जोड़ा जाना चाहिए था. अंताघाट के नाले से जोड़ा जाना चाहिए था. पटना कॉलेज के नाले से जोड़ा जाना चाहिए. लेकिन जोड़ा गया बादशाही नाला से जिसका बहाव नीचे की तरफ है. वहां गंगा का लेवल ऊंचा है. इसलिए बादशाही नाले में पानी जाकर निकल नहीं पा रहा था. कई जगह के संप हाउस काम नहीं कर पा रहे थे. नाले की सफाई होनी चाहिए थी. मॉनिटरिंग होनी चाहिए थी.
प्रोफेसर ने बताया निराकरण
प्रोफेसर साहब कहते हैं कि पटना में कई नालों और सीवरेज का निर्माण कराया गया था, लेकिन महत्वपूर्ण पहल यह होनी चाहिए थी कि पानी का उदगम स्थान ऊंचे और पानी की निकासी नीचे के स्थान से होनी चाहिए. नई टेक्नोलॉजी की मदद लेनी चाहिए. एक डिजिटल एलिवेशन माडल की मदद लेनी चाहिए ताकि पता चल सके कि पानी का लेवल क्या है. उनका कहना है कि सबसे ज्यादा जरूरी है कि पूरे शहर के सीवरेज सिस्टम का मैप होना चाहिए.