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बॉन्ड की वजह से पीजी के मेडिकल छात्रों को होती है समस्याएं, सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भी कमी

बिहार राज्य के मेडिकल कॉलेजों में पीजी डिग्री के लिए प्रवेश लेते समय सरकार के तरफ से एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर कराया जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि इस बॉन्ड की वजह से सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रम पूरा करने में डॉक्टरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा.

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Published : Oct 4, 2020, 10:37 AM IST

पटना: राज्य के मेडिकल कॉलेजों में जब डॉक्टर पीजी डिग्री के लिए प्रवेश लेते हैं, तो उन्हें सरकार की एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करना होता है. इस बॉन्ड में लिखा होता है कि आप शिक्षा ग्रहण करने के बाद राज्य के अस्पतालों में 3 वर्ष की सेवा देंगे. इस तरह के प्रावधान अन्य राज्यों में भी है, लेकिन राज्य के बॉन्ड नियमावली को लेकर डॉक्टर्स कहते हैं कि इसमें कुछ समस्या है और इस कारण राज्य के डॉक्टर किसी भी फील्ड में स्पेसिफिकेशन करने से वंचित रह जाते हैं.


राज्य से सिर्फ से 6 डॉक्टर हुए हैं चयनित
पीएमसीएच की मेडिसिन विभाग के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर राजाराम यादव ने बताया कि पीजी डिग्री के बाद सुपर स्पेशलिटी का पाठ्यक्रम है और यह सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद डॉक्टर डीएम कार्डियोलॉजिस्ट, डीएम न्यूरोलॉजिस्ट, डीएम गायनोकोलॉजिस्ट इत्यादि जैसे विशेषज्ञ चिकित्सक बनते हैं. उन्होंने बताया कि सुपर स्पेशलिटी के लिए ऑल इंडिया लेवल पर परीक्षा होता है, जिसकी सीटों की संख्या काफी कम है और इस बार राज्य से सिर्फ से 6 डॉक्टर चयनित हुए हैं. उन्होंने कहा कि बिहार में पीजी कोर्स पूरा करने के बाद 3 साल की अनिवार्य सेवा देने की बॉन्ड है और इस बॉन्ड में स्टडी लीव का कोई प्रावधान नहीं है जबकि कई दूसरे राज्यों में इस प्रकार का प्रावधान है.

गरीब परिवार से आते हैं राजाराम यादव
राजाराम यादव ने बताया कि वह सुपर स्पेशलिटी कोर्स करने के बाद अपनी 3 साल की अनिवार्य सेवा देने को तैयार हैं. लेकिन उन्हें स्टडी लीव नहीं दिया जा रहा है और सरकार के स्तर पर उनसे कहा जा रहा है कि बॉन्ड के 25 लाख रुपए जमा करें और सुपर स्पेशलाइजेशन का कोर्स करें. डॉ राजाराम यादव ने बताया कि वह गरीब परिवार से आते हैं और वह यह राशि जमा करने में अक्षम है. उन्होंने कहा कि उनका ऑल इंडिया रैंक 82 है और इतने अच्छे रैंक लाने के बावजूद उन्हें लग रहा है कि वह सुपर स्पेशलिटी का कोर्स करने से वंचित रह जाएंगे. उन्होंने कहा कि साल 2020 में उनका पीजी कोर्स पीएमसीएच में कंप्लीट हुआ है.


राज्य में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की है कमी
पीएमसीएच के पीजी के 2017-2020 बैच के पास आउट डॉ अभिजीत कुमार ने कहा कि राज्य में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर की घोर कमी है और राज्य के अस्पतालों में सुपर स्पेशलिटी कोर्स के लिए सीट भी नहीं है. देश में काफी कम सीटें होती हैं सुपर स्पेशलिटी के लिए. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग उन्हें स्टडी लीव नहीं दे रहा है जबकि इस बार बिहार से मात्र 6 डॉक्टर ही सुपर स्पेशलिटी के लिए चयनित हुए हैं. उन्होंने कहा कि वह सुपर स्पेशलिटी कोर्स करने के बाद राज्य के अस्पतालों में बॉन्ड के अनुरूप 3 साल की अनिवार्य सेवा देने को तैयार हैं और इस बाबत वह पिछले 3 दिनों से लगातार सचिवालय का दौरा कर रहे हैं और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से अपनी समस्याओं को लेकर मिलने का प्रयास कर रहे हैं मगर वह मिल नहीं रहे हैं.

पटना: राज्य के मेडिकल कॉलेजों में जब डॉक्टर पीजी डिग्री के लिए प्रवेश लेते हैं, तो उन्हें सरकार की एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करना होता है. इस बॉन्ड में लिखा होता है कि आप शिक्षा ग्रहण करने के बाद राज्य के अस्पतालों में 3 वर्ष की सेवा देंगे. इस तरह के प्रावधान अन्य राज्यों में भी है, लेकिन राज्य के बॉन्ड नियमावली को लेकर डॉक्टर्स कहते हैं कि इसमें कुछ समस्या है और इस कारण राज्य के डॉक्टर किसी भी फील्ड में स्पेसिफिकेशन करने से वंचित रह जाते हैं.


राज्य से सिर्फ से 6 डॉक्टर हुए हैं चयनित
पीएमसीएच की मेडिसिन विभाग के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर राजाराम यादव ने बताया कि पीजी डिग्री के बाद सुपर स्पेशलिटी का पाठ्यक्रम है और यह सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद डॉक्टर डीएम कार्डियोलॉजिस्ट, डीएम न्यूरोलॉजिस्ट, डीएम गायनोकोलॉजिस्ट इत्यादि जैसे विशेषज्ञ चिकित्सक बनते हैं. उन्होंने बताया कि सुपर स्पेशलिटी के लिए ऑल इंडिया लेवल पर परीक्षा होता है, जिसकी सीटों की संख्या काफी कम है और इस बार राज्य से सिर्फ से 6 डॉक्टर चयनित हुए हैं. उन्होंने कहा कि बिहार में पीजी कोर्स पूरा करने के बाद 3 साल की अनिवार्य सेवा देने की बॉन्ड है और इस बॉन्ड में स्टडी लीव का कोई प्रावधान नहीं है जबकि कई दूसरे राज्यों में इस प्रकार का प्रावधान है.

गरीब परिवार से आते हैं राजाराम यादव
राजाराम यादव ने बताया कि वह सुपर स्पेशलिटी कोर्स करने के बाद अपनी 3 साल की अनिवार्य सेवा देने को तैयार हैं. लेकिन उन्हें स्टडी लीव नहीं दिया जा रहा है और सरकार के स्तर पर उनसे कहा जा रहा है कि बॉन्ड के 25 लाख रुपए जमा करें और सुपर स्पेशलाइजेशन का कोर्स करें. डॉ राजाराम यादव ने बताया कि वह गरीब परिवार से आते हैं और वह यह राशि जमा करने में अक्षम है. उन्होंने कहा कि उनका ऑल इंडिया रैंक 82 है और इतने अच्छे रैंक लाने के बावजूद उन्हें लग रहा है कि वह सुपर स्पेशलिटी का कोर्स करने से वंचित रह जाएंगे. उन्होंने कहा कि साल 2020 में उनका पीजी कोर्स पीएमसीएच में कंप्लीट हुआ है.


राज्य में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की है कमी
पीएमसीएच के पीजी के 2017-2020 बैच के पास आउट डॉ अभिजीत कुमार ने कहा कि राज्य में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर की घोर कमी है और राज्य के अस्पतालों में सुपर स्पेशलिटी कोर्स के लिए सीट भी नहीं है. देश में काफी कम सीटें होती हैं सुपर स्पेशलिटी के लिए. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग उन्हें स्टडी लीव नहीं दे रहा है जबकि इस बार बिहार से मात्र 6 डॉक्टर ही सुपर स्पेशलिटी के लिए चयनित हुए हैं. उन्होंने कहा कि वह सुपर स्पेशलिटी कोर्स करने के बाद राज्य के अस्पतालों में बॉन्ड के अनुरूप 3 साल की अनिवार्य सेवा देने को तैयार हैं और इस बाबत वह पिछले 3 दिनों से लगातार सचिवालय का दौरा कर रहे हैं और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से अपनी समस्याओं को लेकर मिलने का प्रयास कर रहे हैं मगर वह मिल नहीं रहे हैं.

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