पटना: 25 मई विश्व थायराइड दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत में हिमालयन बेल्ट हिमालय के तराई क्षेत्रों में थायराइड के मरीज ज्यादा देखने को मिलते हैं और इसका मुख्य कारण है कि इन इलाकों के पानी में आयोडीन की कमी पाई जाती है. थायराइड दो तरह के होते हैं हाइपो थायराइड और हाइपर थायराइड. हाइपो थायराइड में इंसान का शरीर फूलने लगता है, और हाइपर थायराइड में इंसान का शरीर सूखने लगता है. आयुर्वेद के चिकित्सक बताते हैं कि लंबे इलाज के बाद थायराइड का परमानेंट उपचार संभव है वही एलोपैथिक डॉक्टरों का मानना है कि एक बार थायराइड होने पर जीवन भर दवा लेनी पड़ती है.
थायराइड के लिए आयुर्वेद में कई प्रकार के उपचार
थायराइड के बारे में आयुर्वेद के चिकित्सक वैद्य कैलाश चौधरी ने बताया कि थायराइड के लिए आयुर्वेद में कई प्रकार के उपचार हैं. इसे कंट्रोल करने के लिए कई आयुर्वेदिक दवाइयां बाजार में उपलब्ध है. थायराइड के मरीज अगर सुबह खाली पेट धनिया के पत्ते पीसकर इसका रस पीते हैं तो तुरंत इसका फायदा देखने को मिलता है. थायराइड अगर शुरुआती स्थिति में है तो यह इससे तो ठीक हो जाएगा मगर जिसे पहले से थायराइड है उसे ठीक करने में लंबा समय लगेगा. इसके लिए कई तरह के उपाय करने पड़ेंगे जो कि इंसान अक्सर नहीं कर पाता है.
आयोडीन जनित बीमारी है थायराइड
वहीं पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ विमल कारक ने बताया कि यह आयोडीन जनित बीमारी है. थायरोक्सिन हार्मोन गर्दन में पाए जाने वाले थायराइड ग्लैंड में बनता है. ये शरीर की नित्य क्रिया बीएमआर को संचालित करता है. उन्होंने कहा कि थायरोक्सिन हार्मोन की कमी से हाइपो थायराइड और इसकी मात्रा अधिक होने से हाइपर थायराइड होता है. डॉ कारक ने बताया कि थायरोक्सिन की कमी से ही घेंघा रोग हुआ करता है. थायराइड की बीमारी महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है. डॉ विमल कारक ने बताया कि थायराइड से बचाव के लिए हमेशा आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग करना चाहिए. साथ ही डॉक्टर से परामर्श लेकर दवाएं भी ली जा सकती हैं. इसका परमानेंट उपचार संभव नहीं है.