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डॉक्टरों की जिद: नौकरी छोड़ देंगे लेकिन गांव नहीं जाएंगे, 25 का इस्तीफा

गांवों में डॉक्टरों की जरूरत जितनी ज्यादा होती है उतनी ही कम उनकी संख्या होती है. आश्चर्य की बात यह है कि आज भी डॉक्टर्स गांवों में जाकर अपनी सेवा देने को तैयार नहीं है. पटना की स्थिति जब ईटीवी भारत ने पता की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

bihar doctor news
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Published : Jul 9, 2021, 7:15 PM IST

Updated : Jul 9, 2021, 7:46 PM IST

पटना: कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की दूसरी लहर (Second Wave Of Corona) जब अपने चरम पर थी तब प्रदेश में संक्रमण की स्थिति को कंट्रोल करने और चिकित्सकों की कमी की भरपाई करने के लिए सरकार ने प्रदेश में 1000 मेडिकल ऑफिसर (Medical Officer) के पद पर वैकेंसी निकाली. पद तो भर गए लेकिन जैसे ही डॉक्टर्स को ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग दी गई वैसे ही तरह-तरह के बहाने बनाकर डॉक्टर इस्तीफा दे रहे हैं.

यह भी पढ़ें- कोरोना काल के मसीहा: दिन रात करते रहे मरीजों का इलाज, खुद भी हुए संक्रमित, फिर लौटे

पद 1 साल के लिए संविदा पर था और वेतनमान 65000 रुपये सरकार ने तय किया. इस बाबत सरकार ने 10 मई को वॉक इन इंटरव्यू का आयोजन कराया और सभी जिला के जिला स्वास्थ्य समिति कार्यालय और मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस अभ्यर्थियों ने पद के आलोक में अपना आवेदन दिया और अपना रिज्यूम जमा किया.

देखें रिपोर्ट

मई के आखिरी तक सभी पद भर दिए जाने थे लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि लगभग 50 फीसदी मेडिकल ऑफिसर के पद ही भर पाए हैं. वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सक ड्यूटी नहीं करना चाहते हैं और ग्रामीण क्षेत्र में जब पदस्थापन हो रहा है तो वह तरह-तरह के बहाने करके इस्तीफा दे दे रहे हैं.

पटना की बात करें तो यहां जिले में मेडिकल ऑफिसर के 68 पदों के लिए जिला स्वास्थ्य समिति के कार्यालय में 10 मई को वॉक इन इंटरव्यू का आयोजन हुआ. जिसमें 110 से अधिक एमबीबीएस अभ्यर्थी शामिल हुए. लेकिन इसमें से 54 ने अब तक योगदान किया है. इसमें से चार ने अपना इस्तीफा भी सौंप दिया है. इन चारों का इस्तीफा स्वास्थ्य विभाग के तरफ से स्वीकार भी हो चुका है.

स्वास्थ्य विभाग के आधिकारिक सूत्रों से मानें तो लगभग 25 की संख्या में चिकित्सकों ने इस्तीफा सौंपा था जिनमें से चार का इस्तीफा एक्सेप्ट हुआ है और 21 के इस्तीफे पर पुनर्विचार करने को कहा गया है.

जिन भी डॉक्टरों ने अपना इस्तीफा सौंपा है उनकी पोस्टिंग पटना के सुदूर ग्रामीण इलाकों में हुई है और वह ग्रामीण इलाकों में ड्यूटी करने के इच्छुक नहीं हैं. ड्यूटी ना करने के लिए वह कई प्रकार के बहाने बना रहे हैं.

पटना जिला सिविल सर्जन कार्यालय में प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थापित चिकित्सक पहुंच रहे हैं. कोई यह बहाना बना रहा है कि उनके पिता की हालत खराब है ऐसे में वह अपने पिता से ज्यादा दूर नहीं जा सकते हैं, तो कोई कुछ और बहाना बना रहा है. इन बहानों के माध्यम से चिकित्सक ड्यूटी कर पाने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे हैं.

डॉक्टरों के इस प्रकार इस्तीफे से स्वास्थ्य विभाग परेशान है और पटना जिला सिविल सर्जन ने इस्तीफा सौंपने वाले सभी चिकित्सकों को पुनः विचार करने को कहा है. उनसे यह भी कहा गया है कि पहले जब उन्हें पता था कि ग्रामीण क्षेत्रों में पोस्टिंग हो सकती है तो ऐसे में इंटरव्यू में शामिल क्यों हुए और जब पदस्थापन हो गया है तो चिकित्सक धर्म का पालन करते हुए ड्यूटी करें.

ग्रामीण इलाके में जो डॉक्टर ड्यूटी नहीं करना चाहते वह ऑफ द रिकॉर्ड यह कहते हैं कि इससे उनके कार के पेट्रोल का खर्च भी नहीं निकल पाएगा. प्रतिदिन पटना से इतना दूर आना जाना संभव नहीं है. कई चिकित्सक ऐसे हैं जो पटना के विभिन्न प्राइवेट अस्पतालों में काम करते हैं. ऐसे में उनका कहना है कि वह इस उम्मीद से इंटरव्यू में शामिल हुए थे कि शहर के आसपास के इलाके में ही पदस्थापन मिल जाएगा. और शाम के समय अस्पताल में भी कार्य कर सकते थे.

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि विभाग इसलिए परेशान है कि गांव में चिकित्सक ड्यूटी नहीं करना चाहते हैं और वह सिर्फ शहरी चकाचौंध में रहना चाहते हैं. ऐसे में तीसरे लहर के आने की सुगबुगाहट के साथ ही विभाग की चिंता भी बढ़ गई है. रिक्त पड़े मेडिकल ऑफिसर के पदों के कारण कोरोना को कंट्रोल करने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

पटना: कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की दूसरी लहर (Second Wave Of Corona) जब अपने चरम पर थी तब प्रदेश में संक्रमण की स्थिति को कंट्रोल करने और चिकित्सकों की कमी की भरपाई करने के लिए सरकार ने प्रदेश में 1000 मेडिकल ऑफिसर (Medical Officer) के पद पर वैकेंसी निकाली. पद तो भर गए लेकिन जैसे ही डॉक्टर्स को ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग दी गई वैसे ही तरह-तरह के बहाने बनाकर डॉक्टर इस्तीफा दे रहे हैं.

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पद 1 साल के लिए संविदा पर था और वेतनमान 65000 रुपये सरकार ने तय किया. इस बाबत सरकार ने 10 मई को वॉक इन इंटरव्यू का आयोजन कराया और सभी जिला के जिला स्वास्थ्य समिति कार्यालय और मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस अभ्यर्थियों ने पद के आलोक में अपना आवेदन दिया और अपना रिज्यूम जमा किया.

देखें रिपोर्ट

मई के आखिरी तक सभी पद भर दिए जाने थे लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि लगभग 50 फीसदी मेडिकल ऑफिसर के पद ही भर पाए हैं. वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सक ड्यूटी नहीं करना चाहते हैं और ग्रामीण क्षेत्र में जब पदस्थापन हो रहा है तो वह तरह-तरह के बहाने करके इस्तीफा दे दे रहे हैं.

पटना की बात करें तो यहां जिले में मेडिकल ऑफिसर के 68 पदों के लिए जिला स्वास्थ्य समिति के कार्यालय में 10 मई को वॉक इन इंटरव्यू का आयोजन हुआ. जिसमें 110 से अधिक एमबीबीएस अभ्यर्थी शामिल हुए. लेकिन इसमें से 54 ने अब तक योगदान किया है. इसमें से चार ने अपना इस्तीफा भी सौंप दिया है. इन चारों का इस्तीफा स्वास्थ्य विभाग के तरफ से स्वीकार भी हो चुका है.

स्वास्थ्य विभाग के आधिकारिक सूत्रों से मानें तो लगभग 25 की संख्या में चिकित्सकों ने इस्तीफा सौंपा था जिनमें से चार का इस्तीफा एक्सेप्ट हुआ है और 21 के इस्तीफे पर पुनर्विचार करने को कहा गया है.

जिन भी डॉक्टरों ने अपना इस्तीफा सौंपा है उनकी पोस्टिंग पटना के सुदूर ग्रामीण इलाकों में हुई है और वह ग्रामीण इलाकों में ड्यूटी करने के इच्छुक नहीं हैं. ड्यूटी ना करने के लिए वह कई प्रकार के बहाने बना रहे हैं.

पटना जिला सिविल सर्जन कार्यालय में प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थापित चिकित्सक पहुंच रहे हैं. कोई यह बहाना बना रहा है कि उनके पिता की हालत खराब है ऐसे में वह अपने पिता से ज्यादा दूर नहीं जा सकते हैं, तो कोई कुछ और बहाना बना रहा है. इन बहानों के माध्यम से चिकित्सक ड्यूटी कर पाने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे हैं.

डॉक्टरों के इस प्रकार इस्तीफे से स्वास्थ्य विभाग परेशान है और पटना जिला सिविल सर्जन ने इस्तीफा सौंपने वाले सभी चिकित्सकों को पुनः विचार करने को कहा है. उनसे यह भी कहा गया है कि पहले जब उन्हें पता था कि ग्रामीण क्षेत्रों में पोस्टिंग हो सकती है तो ऐसे में इंटरव्यू में शामिल क्यों हुए और जब पदस्थापन हो गया है तो चिकित्सक धर्म का पालन करते हुए ड्यूटी करें.

ग्रामीण इलाके में जो डॉक्टर ड्यूटी नहीं करना चाहते वह ऑफ द रिकॉर्ड यह कहते हैं कि इससे उनके कार के पेट्रोल का खर्च भी नहीं निकल पाएगा. प्रतिदिन पटना से इतना दूर आना जाना संभव नहीं है. कई चिकित्सक ऐसे हैं जो पटना के विभिन्न प्राइवेट अस्पतालों में काम करते हैं. ऐसे में उनका कहना है कि वह इस उम्मीद से इंटरव्यू में शामिल हुए थे कि शहर के आसपास के इलाके में ही पदस्थापन मिल जाएगा. और शाम के समय अस्पताल में भी कार्य कर सकते थे.

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि विभाग इसलिए परेशान है कि गांव में चिकित्सक ड्यूटी नहीं करना चाहते हैं और वह सिर्फ शहरी चकाचौंध में रहना चाहते हैं. ऐसे में तीसरे लहर के आने की सुगबुगाहट के साथ ही विभाग की चिंता भी बढ़ गई है. रिक्त पड़े मेडिकल ऑफिसर के पदों के कारण कोरोना को कंट्रोल करने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

Last Updated : Jul 9, 2021, 7:46 PM IST
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