पटना: बिहार में दलित वोट बैंक किसी जमाने में सत्ता की कुंजी मानी जाती थी और तमाम राजनीतिक दल दलित वोट बैंक को साधने के लिए मशक्कत करते थे. लेकिन आज की तारीख में दलित राजनीति हाशिए पर आ गई है. तमाम दलित नेता कई गुटों में बंट गए हैं, जिससे दलित आंदोलन कमजोर पड़ गया है.
बिहार में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने दलित वोट बैंक के बदौलत 15 साल तक शासन किया. लालू यादव सत्ता में रहते हुए खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताते थे. कभी दलित बस्ती में जाकर उनके बच्चों को स्नान करा देते, तो कभी दलितों के साथ भोजन करते थे. राजधानी पटना में दलितों के रहने के लिए लालू यादव के कार्यकाल में कई भवन बने और तब दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा लालू यादव के साथ था.
बिखर गया दलित वोट बैंक!
2005 के बाद दलित वोट बैंक में बिखराव आ गया और बिहार में कई दलित नेता राजनीति के पटल पर आ गए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महादलित कार्ड खेलकर भी दलित आंदोलन को कमजोर किया. उन्होंने जीतन राम मांझी को सीएम बनाकर जो दलित कार्ड फेंका, उसने प्रदेशभर की राजनीति को नई धुरी पर स्थापित कर दिया.
बिहार में दलित वोट बैंक की बात करें तो ये 16 से 20 प्रतिशत तक है. पूर्व सीएम मांझी इसे 22 प्रतिशत बताते हैं. लेकिन आज की तारीख में दलित वोट बैंक सियासत के केंद्र में नहीं है और राजनीतिक दलों की नजर ईबीसी वोट बैंक पर है. बाद के दिनों में जातिगत आधार पर भी दलित आपस में बंट गए और उन्होंने अपना एक नेता भी मान लिया.
एक नजर डालते हैं दलित वोट बैंक पर
- बिहार में 18 से 20% आबादी दलितों की हैं.
- दलितों में चमार सबसे अधिक आबादी वाला जाति है.
- दलितों की कुल आबादी का 31.3 प्रतिशत आबादी चमार जाति की है.
- दुसाध जाति का दूसरा स्थान है.
- अनुसूचित जाति की कुल आबादी का 30.9% आबादी दुसाध या पासवान जाति के लोगों की है.
- इसके बाद क्रमसः मुसहर, पासी,धोबी और भुइया जाति की आबादी है.
वामपंथी आंदोलन ने कमजोर की दलित सियासत
बदली परिस्थिति में बिहार के राजनीतिक पटल पर कई दलित नेता हैं, जो अपने राजनीतिक वजूद की तलाश में हैं. मुख्य रूप से रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली पार्टी लोजपा, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली पार्टी हम और मुकेश साहनी के नेतृत्व वाली पार्टी वीआईपी अपने राजनैतिक जमीन को मजबूत करने में जुटी है. हालांकि, भाजपा जदयू और राजद ने कई दलित नेताओं को जगह दी हुई है. दलित वोट बैंक को लेकर दावों का दौर जारी है.
नीतीश ने दिया दलितों को सम्मान- जदयू
जदयू नेता और बिहार सरकार के उद्योग मंत्री महेश्वर हजारी का मानना है कि नीतीश कुमार ने सबसे ज्यादा दलितों को सम्मान दिया है. कोई दलित जाति में पैदा लेने से दलित का नेता नहीं हो जाता है. महेश्वर हजारी ने कहा कि नीतीश कुमार के शासनकाल में स्थानीय निकाय में दलितों को आरक्षण दिया गया, जिससे वह सशक्त हुए.
'मोदी सरकार ने उठाए हितकारी कदम'
भाजपा का दावा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने दलितों के लिए बहुत सारे कदम उठाए हैं, जिससे कि दलित आंदोलन को ताकत मिली है. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि दलितों को योजनाओं का लाभ सीधे मिले के लिए भी सरकार ने कई कदम उठाए हैं.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगी पार्टी लोजपा का मानना है कि रामविलास पासवान ने राष्ट्रीय स्तर पर दलित आंदोलन को मजबूती प्रदान करने का काम किया है. जब भी दलितों के मुद्दे पर आवाज उठाने की बात आई, तो रामविलास पासवान सबसे आगे रहे. आज बिहार में युवा चेहरा चिराग पासवान को मुख्यमंत्री बनाने की मांग कई तरफ से उठ रही है.
वीआईपी ने दी अपनी राय
मुकेश साहनी के नेतृत्व वाली पार्टी वीआईपी भी जमीन तलाश रही है. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजीव मिश्रा का कहना है कि बिहार में दलित कई पार्टियों में बैठ गए हैं इस वजह से दलित सियासत आज की तारीख में गठबंधन का हिस्सा है.
राजद ने कमजोर किया दलित आंदोलन- हम
हम पार्टी का महागठबंधन से मोहभंग हो गया है. लिहाजा, दलित आंदोलन को कमजोर करने का आरोप हम नेता राजद पर लगा रहे हैं. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा है कि जीतन राम मांझी के नेतृत्व में तमाम दलित नेता एक फोरम पर आए थे लेकिन राजद ने उसे कमजोर करने का काम किया.
लालू जी दिया सम्मान- आरजेडी
हम के आरोपों पर राजद की ओर से भी पलटवार किया गया है. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कहा है कि लालू यादव ने दलितों के अपलिफ्टमेंट के लिए सबसे ज्यादा काम किया. विधान परिषद विधानसभा या फिर राज्यसभा हो सभी जगहों पर दलितों को भेजा गया.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर डीएम दिवाकर का मानना है कि बिहार में वामपंथी आंदोलन कमजोर होने के बाद दलित आंदोलन भी कमजोर हुए उत्तर प्रदेश में बसपा के उदय के बाद बिहार में भी रामविलास पासवान दलित नेता के रूप में उभरे. भारत के दिनों में कई दलित नेता हुए जो अलग-अलग दलों में चले गए रही सही कसर नीतीश कुमार ने दलित महादलित कार्ड खेलकर पूरी कर दी.