पटना: महाशिवरात्रि के मौके पर श्रद्धालु भोलेनाथ की पूजा अर्चना की तैयारी में लगे हैं. हर कोई भोलेनाथ की महिमा का गुणगान करते नहीं थक रहा. कभी-कभी कुछ चमत्कार भी लोगों की आस्था को और बढ़ा देते हैं. आज ईटीवी भारत आपको ऐसी ही एक दिलचस्प जानकारी देने जा रहा है. रोड में कोर्ट लगाकर शिवालय को बचाया गया था. जी हां यह सुनकर आपको अटपटा लगेगा लेकिन यह बात पूरी तरह सत्य है. राजधानी पटना के बोरिंग रोड स्थित शिवालय पर हथौड़ा चल चुका था और शिवलिंग पर भी हथौड़ा चलने ही वाला था लेकिन तभी कोर्ट ने ऐसा करने से रोक दिया.
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शिवालय तोड़ने पहुंचा था धावा दल: उस समय के तत्कालीन पटना हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एस के झा इसी रास्ते से गुजर रहे थे. भक्तों की टोली ने उन्हें घेर लिया और श्रद्धालुओं की फरियाद सुनने के बाद पटना के बोरिंग रोड चौराहे पर उन्होंने कोर्ट लगाकर इतिहास रच दिया था. यह मामला वर्ष 1984 का है,जब पटना के जिलाधिकारी के रूप में वर्तमान केन्द्रीय मंत्री राज कुमार सिंह और एसएसपी के रूप में महावीर मंदिर न्यास परिषद के प्रमुख किशोर कुणाल तैनात थे.
तत्कालीन न्यायमूर्ति एसके झा ने भोलेनाथ के सामने लगा दी कोर्ट: जिला प्रशासन ने अतिक्रमण के खिलाफ एक मुहिम छेड़ रखा था. उसी कड़ी में धावा दल पटना के बोरिंग चौराहे पर स्थित शिवालय तक पहुंच गया. हालांकि इस शिवालय को हटाने के लिए जिला प्रशासन कई बार नोटिस भेज चुका था लेकिन भक्तों के विरोध की वजह से मंदिर यथावत थी. जिला प्रशासन की मांग पर कई थानों की पुलिस के साथ धावा दल बल बोरिंग रोड चौराहे पर पहुंचा और शिवालय तोड़ने की कार्रवाई शुरू हो कर दी गई थी.
रोड पर कोर्ट लगाकर शिवालय के पक्ष में लिया गया था फैसला: जिस समय शिवालय तोड़ा जा रहा था उस समय स्थानीय श्रद्धालुओं की भारी भीड़ विरोध पर उतारु थी. लेकिन काफी संख्या में पुलिस बल होने की वजह से बार-बार भक्तों को पीछे धकेल दिया जा रहा था. भक्तों की एक बड़ी टोली बोरिंग रोड में जमा होकर नारेबाजी में जुटी थी और इसी दौरान पटना के पाटलिपुत्र इलाके से पटना हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति एस के झा गुजर रहे थे. उनकी गाड़ी भीड़ में फंस गयी. उन्होंने वजह जानने की कोशिश की तो श्रद्धालुओं ने शिवालय तोड़ने की पीड़ा से उन्हें अवगत करा दिया.
बंद कोर्ट को खुलवाकर शाम को मंगवायी गई अर्जी: श्रद्धालुओं की बातें सुनने के बाद न्यायमूर्ति एस के झा गाड़ी से उतरे और पैदल बोरिंग रोड चौराहे तक पहुंच गये. भक्तों की टोली में कई भक्त पटना हाई कोर्ट के वकील थे. इनमें एक बड़े वकील राजेन्द्र प्रसाद ने इस मंदिर को तोड़ने के विरोध में पटना हाई कोर्ट में अर्जी भी लगा रखी थी. जज साहब को जब राजेन्द्र प्रसाद ने अर्जी के बारे में जानकारी दी तो उन्होंने तत्काल इस मामले को सुनने की इच्छा जाहिर की.
अर्जी कोर्ट में था और जज साहब सड़क पर: जज साहब ने इस मामले को सुनने की इच्छा तो जाहिर कर दी लेकिन शाम हो जाने की वजह से कोर्ट बंद हो चुका था. लेकिन न्यायमूर्ति एस के झा किसी भी कीमत पर इस मामले को सुनना चाहते थे. जज साहब के आदेश पर शाम में कोर्ट खुलवा कर अर्जी की कॉपी मंगायी गयी और जिला प्रशासन के प्रमुख होने के नाते उस समय के तत्कालीन जिलाधिकारी आर के सिंह को बोरिंग चौराहे पर बुलाया गया.
जब तक चली सुनवाई..रुकी रही तोड़फोड़ की कार्रवाई: जिला प्रशासन अपने दल बल के साथ बोरिंग रोड पर जमा रहा और इधर सुनवाई की गतिविधियां तेज हो गयी. देर शाम होने की वजह से अंधेरा भी हो गया था, इसके बावजूद कोर्ट रूम खुला और वहां से राजेन्द्र प्रसाद की अर्जी मंगायी गयी. इधर जिलाधिकारी को भी सूचना देकर बोरिंग रोड चौराहे पर बुला लिया गया. शिवालय के सामने या यूं कहें भगवान शिव के सामने पटना हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एस के झा ने कोर्ट लगा दिया. जिला प्रशासन की ओर जिलाधिकारी आर के सिंह और याचिकाकर्ता वकील और श्रद्धालु राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी अपनी दलीलें दी. न्यायमूर्ति एस के झा ने दोनों तरफ की सारी दलीलें सुनने के बाद शिवालय तोड़ने पर रोक लगा दिया.
शिवालय का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व: वर्ष 1913 में किसी औघड़ साधु ने हिमालय से शिवलिंग लाकर स्थापित किया था. जब तक औघड़ साधु रहे तब तक ये शिवलिंग खुले में आस्था का केन्द्र था. स्थानीय लोग पूजा अर्चना करते थे और भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था जताते थे. एक दिन अचानक औघड़ साधु लापता हो गये और शिव की पूजा की जिम्मेवारी स्थानीय लोगों ने सम्भाल ली. स्थानीय पुजारी के नेतृत्व में पूजा पाठ होने लगा और लोगों ने चंदा इकट्ठा कर यहां के शिवलिंग को शिवालय की शक्ल दे दी. धीरे धीरे लोगों की आस्था बढ़ती गयी और शिवालय का स्वरूप बदलता गया.
मंदिर को किनारे से बढ़ाया गया लेकिन शिवालय वैसे ही है: औघड़ साधु ने जहां शिवलिंग स्थापित किया था, आज भी शिवलिंग वहीं है और साथ ही जिस गुंबद को उस समय के स्थानीय लोगों ने बनाया था वो भी जस की तस है. वजह मात्र एक है कि उस समय के बने शिवालय के गुंबद को जिला प्रशासन तोड़ रहा था, जिसे न्यायमूर्ति ने तोड़ने से रोक दिया था. इसलिए मंदिर का एक्सटेंशन तो जरूर हुआ लेकिन परम्परागत शिवलिंग उसी गुंबद के नीचे है.
बिहार के इतिहास में पहली घटना: बिहार के इतिहास में पहली घटना के रूप में इस मामले को जाना जाता है जहां, न्याय के लिए रोड पर पटना हाई कोर्ट का कोर्ट लगा. कोर्ट के इस पहल से स्थानीय श्रद्धालुओं में खुशी की लहर दौड़ गयी थी. क्योंकि न्यायमूर्ति एस के झा ने फैसला ऑन द स्पॉट दिया था. आज भी इस शिवालय का खासा महत्व है और शिव भक्तों के लिए आस्था का केन्द्र है.
किशोर कुणाल ने कही ये बात: जिला प्रशासन शिवालय तोड़ रहा था और पटना के तत्कालीन एस एस पी किशोर कुणाल को इसकी कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने बताया कि वो पटना ग्रामीण इलाके में थे और जैसे ही उन्हें वायरलेस पर इसकी सूचना मिली वो तिलमिला गये. उन्होंने तत्काल अपने फोर्स की गतिविधियां रोकने को कहा था. हालांकि इस दौरान न्यायमूर्ति की गतिविधियां तेज हो गयी थी और किशोर कुणाल की मंदिर बचाने की चाहत उस समय के तत्कालीन न्यायमूर्ति एस के झा ने पूरी कर दी. वहीं मंदिर के पुजारी की कहना है कि लोगों की इस शिवालय से गहरी आस्था जुड़ी हुई है.
"इस मंदिर से लोगों की गहरी आस्था है. सच्चे मन से मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती है. एक बार कोई मनोकामना करने आता है तो दूसरी बार उसकी पूर्ति के बाद आता है. इस मंदिर का स्वर्णिम इतिहास है."- पुजारी
"जिला प्रशासन की ओर से मंदिर को तोड़ने की कार्रवाई की जा रही थी. मैंने मंदिर तोड़ने का काम रुकवा दिया. इसी बीच हाईकोर्ट के तत्कालीन जज वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने सड़क पर ही कोर्ट लगाया और मंदिर को तोड़ने की कार्रवाई को रोक दिया. बिहार में रोड पर इस तरह से अचानक कोर्ट लगाने का शायद यह पहला मामला था."- किशोर कुणाल,महावीर मंदिर न्यास परिषद के प्रमुख