पटना: बिहार कांग्रेस के कद्दावर नेता सदानंद सिंह (Sadanand Singh) अब नहीं रहे. पटना के खगौल के एक निजी अस्पताल में उनका निधन हुआ. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्हें लीवर की बीमारी थी.
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सदानंद सिंह का राजनीतिक सफर (Sadanand Singh Political Career) लंबा रहा है. उन्हें बिहार की राजनीति का भीष्म पितामह भी कहा जाता था. उनकी पहचान ऐसे जमीनी नेता के रूप में थी, जिनसे इलाके के लोगों का सीधा संपर्क रहता हो. यही कारण है कि पार्टी के खिलाफ लहर होने के बाद भी वह अपनी सीट बचाने में सफल रहते थे. उन्होंने एक विधानसभा सीट से 9 बार चुनाव जीतकर इतिहास रचा था. वह भागलपुर के कहलगांव विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते थे. यहां से 12 बार चुनावी मैदान में उतरे और 9 बार जनता ने उन्हें जीत की माला पहनाई.
सदानंद 1969 में पहली बार विधायक बने थे. उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया था. इसके बाद से लगातार सदन में कहलगांव की जनता का प्रतिनिधित्व करते रहे. 1985 में कांग्रेस ने टिकट काट दिया तो वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतर गए और जीत पाई. 1977 की कांग्रेस विरोधी लहर में भी वह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे. सदानंद 2000 से 2005 तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे.
2015 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें जीत मिली थी. चुनाव के बाद उन्होंने संकेत दे दिया था कि यह उनका आखिरी चुनाव है. 2020 के विधानसभा चुनाव में उनके बेटे शुभानंद मुकेश को कहलगांव से टिकट मिली, लेकिन वे हार गए थे. सदानंद सिंह 1990 से 93 तक भागलपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे थे. उन्होंने कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई थी. वह बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष भी बने थे. सदानंद सिंह बिहार सरकार में सिंचाई और ऊर्जा राज्यमंत्री रह चुके थे. सदन में करीब 10 साल तक कांग्रेस विधायक दल के नेता भी रहे थे.
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