पटनाः कार्तिक मास को त्योहारों का महीना कहा जाता है. धनतेरस से ही त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. 22 अक्टूबर धनतेरस और इसके बाद 23 अक्टूबर (Narak Chaturdashi on 23 October) को नरक चतुर्दशी और हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाएगा. छोटी दीपावली, रूप चौदस, नरक चौदस, रूप चतुर्दशी और नरका पूजा के नामों से भी जाना जाता है. दिवाली से पहले और धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi after Dhanteras) की महिमा अलग है. इस दिन के पूजन का खास महत्व है. इस दिनमृत्यु के देवता यानी यमराज की भी पूजा होती है. साथ ही मान्यता है कि नरकासुर का वध कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने किया था. इस खुशी में भी इस दिन नरक चतुर्दशी के नाम से मनाया जाता है और दीये जलाए जाते हैं. इस दिन दीप दान भी किया जाता है. नरकचतुर्दशी के दिन दीपदान करने, दीये जलाने और पूजन की कुछ खास नियम और विधियां हैं.
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नरक चतुर्दशी का मुहूर्त : पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है. नरक चतुर्दशी दीपावली के एक दिन पहले और धनतेरस के एक दिन बाद पड़ती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 23 अक्टूबर को शाम 6 बजे से हो रही है. वहीं, चतुर्दशी तिथि का समापन 24 अक्टूबर शाम 5 बजे होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार नरक चुतर्दशी 23 अक्टूबर को मनाई जाएगी. शास्त्रों के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन अधिकतर लोग 5 दिए जलाते हैं. इसमें से एक दीपक पूजा घर, दूसरा रसोईघर, तीसरा पानी पीने वाले जगह, चौथा पीपल के पेड़ और पांचवा दिया मुख्य द्वार पर जलाना शुभ माना जाता है, लेकिन आप चाहे तो 5 की जगह 7, 13 या फिर 14 दीपक भी जला सकते हैं.
नरक चतुर्दशी की पूजन विधि और महत्वः इसे छोटी दीपावली, रूप चौदस, नरक चौदस, रूप चतुर्दशी और नरका पूजा के नामों से भी जाना जाता है. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है. रूप चौदस के दिन शाम के समय दीपक जलाए जाते हैं और चारों ओर रोशनी की जाती है. नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है.शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार इस दिन शाम को चार बात्तियों वाला दीपक घर के बाहर कूड़े के ढेर पर जलाना चाहिए. खास यह कि दीपक पुराना होना चाहिए. इसके पीछे मान्यता यह है कि स्थान चाहे कोई भी हो शुभता का वास हर जगह है. समय विशेष पर उसका महत्व होता है. इस क्रिया से पूर्व सुबह-सुबह सरसों का तेल और उपटन लगाकर स्नान करना चाहिए. इस दिन यमराज के निमित्त तर्पण करना जरूरी है.
नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे पौराणिक मान्यताएंः नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं है. विष्णु और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार नरकासुर राक्षस ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को परेशान कर रखा था. असुर ने संतों के साथ 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर रखा था. जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता और ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए. सभी लोगों ने आग्रह किया कि भगवान आप नरकासुर का अंत कर पृथ्वी से पाप का भार कम करें. भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का शाप था. इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध किया. जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी. इस कारण इस दिन नरकासुर के अंत की खुशी में नरक चतुर्दशी मनाया जाता है.
इसी दिन से शुरू हुई दीपदान की परंपराः पुराण में वर्णित है कि नरकासुर के वध के बाद श्रीकृष्ण ने कन्याओं को बंधन से मुक्त करवाया. मुक्ति के बाद कन्याओं ने भगवान कृष्ण से गुहार लगाई कि समाज अब उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा, इसके लिए आप कोई उपाय निकालें. हमारा सम्मान वापस दिलवाएं. समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से 16 हजार कन्याओं से विवाह कर लिया. 16 हजार कन्याओं को मुक्ति और नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में घर-घर दीपदान की परंपरा शुरू हुई. इसके अलावा नरक चतुर्दशी के दिन यमदेव के लिए दीपक जलाकर सुख समृद्धि की कामना की जाती है.