नई दिल्लीः बिहार की कला (Art of bihar) और शिल्प को बढ़ावा देने और राज्य के बुनकरों के लिए स्थायी बाजार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चाणक्यपुरी में हस्तशिल्प, हथकरघा और अन्य कलाकृतियों की एक विस्तृत श्रृंखला की शुरुआत की गई. इस मौके पर स्थानिक आयुक्त (local commissioner) पलका साहनी (Palka Sawhney)ने बिहार भवन में शुक्रवार को आर्ट कियोस्क 'बिहारिका' और बिहार की कला देहरी, का लोकार्पण भी किया.
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दिल्ली के कनॉट प्लेस में अंबापाली बिहार एम्पोरियम के बाद बिहार के कलात्मक कौशल को 'बिहारिका' के रूप में एक और स्थायी ठिकाना मिल गया है. इसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी में बिहार के विभिन्न क्षेत्रों से बेहतरीन हस्तशिल्प और हथकरघा जनित विचारोत्तेजक इंस्टॉलेशन आर्ट को प्रोत्साहित करना है. मंजूषा कला, मधुबनी कला, सिक्की, सुजनी, पेपर माशे, बावन बूटी, ओबरा और मिथिला, तिरहुत, मगध, आंग और भोजपुर के कई अन्य प्रमुख कलाकृतियों से 'बिहारिका' को सुसज्जित किया गया है.
बिहार के विभिन्न क्षेत्रों के कलाकारों, बुनकरों, शिल्पकारों और क्यूरेटरों को स्थानीय कलाकारों और विक्रेताओं की सहायता से एक महत्वाकांक्षी साइट- विशिष्ट आयोगों को साकार करने के लिए आमंत्रित किया गया है. प्रत्येक कलाकार ने अपनी नई प्रदर्शनी के लिए दिल्ली और इसके ऐतिहासिक महत्व पर शोध किया है. ताकि प्रत्येक शिल्प खरीदारों और आगंतुकों के लिए सार्थक और प्रासंगिक हो.
स्थानिक आयुक्त ने कहा कि बिहार राज्य पारंपरिक रूप से मधुबनी कला या मिथिला पेंटिंग के लिए बाहरी दुनिया के लिए जाना जाता है और हम बिहार के विभिन्न जिलों के स्थानीय कलाकारों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि मधुबनी, मंजूषा, सिक्की, सुजनी सहित बिहार की वो लोक कलाएं जो वहां के लोगों की जीवन शैली का हिस्सा हैं, लेकिन बिहार के बाहर बहुत प्रसिद्ध नहीं हैं. वो लोगों के ज्ञान में आ सकते हैं और उन्हें प्रसिद्धि मिल सकती है.
पलका साहनी ने कहा कि पिछले दो वर्षों में हमने 200 से ज़्यादा कलाकारों को सूचीबद्ध किया है. दिल्ली-स्थित बिहार के कारीगरों ने भी अपनी कलाकृतियों को बिहारिका भेजने के लिए सहमति दी है. मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्षों में बिहारिका दिल्ली में अपनी अलग पहचान बनाएगा. जिससे लोकल बुनकरों और शिल्पकारों को असीम संभावनाएं मिल सकेंगी.
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यह अक्सर उद्धृत किया जाता है कि 'खानपान के इतिहास को सामान्य रूप से संस्कृति के इतिहास से अलग नहीं किया जा सकता है'. इस अभिव्यक्ति से एक सीख लेते हुए, प्रदर्शनी में भोजन और कला का मिश्रण देखने को मिलेगा, क्योंकि आगंतुक बिहार निवास के 'द पॉटबेली रेस्तरां' में बिहार के कई लोकप्रिय व्यंजनों का स्वाद चख सकेंगे. उन्होंने आगे कहा कि बिहारी व्यंजनों के मामले में पॉटबेली पहले से ही अग्रणी रहा है. बिहारिका के उद्घाटन के बाद लोगों को बिहार निवास आने के लिए अधिक रुचि बढ़ेगी.
बता दें कि यहां बिहार के कलाकारों द्वारा भेजी गई विभिन्न कृतियों को कियोस्क पर प्रदर्शित किया गया है. ये सभी खरीदारों और आगंतुकों के लिए उपलब्ध हैं. इन वस्तुओं को डिजिटल भुगतान के माध्यम से सीधे कलाकारों से खरीदा जा सकता है.