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बिहार वेटनरी कॉलेज: जर्सी की बजाए देसी गायों पर हो रहा शोध, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की कोशिश

बिहार वेटनरी कॉलेज के प्रोफेसर ने बताया कि बिहार का तापमान जर्सी जैसी हाइब्रिड नस्ल की गायों के अनुकूल नहीं है. आजकल इन गायों में बढ़ते तापमान के कारण बीमारियां देखने को मिल रही हैं.

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Published : Jun 2, 2019, 5:50 PM IST

बिहार वेटनरी कॉलेज

पटना: बिहार वेटनरी कॉलेज पशु-पक्षियों पर शोध के लिए मशहूर है. यहां अनेकों प्रकार के पशु-पक्षियों की हाइब्रिड प्रजातियों पर शोध होता रहता है. इन दिनों बिहार वेटनरी कॉलेज गायों की देसी नस्ल और शैवाल नस्ल के ज्यादा से ज्यादा प्रजनन पर जोर दे रहा था. लेकिन, अब उन्होंने इसे रोक दिया है. कारण यह है कि गाय की हाइब्रिड नस्लें यहां के बढ़ते तापमान को सहन नहीं कर पा रही थी.

दरअसल, बिहार वेटनरी कॉलेज ने जर्सी जैसे अन्य हाइब्रिड नस्ल की गायों को बढ़ावा देना बंद कर दिया है. वेटनरी कॉलेज इसके बजाय अब देसी, साहिवाल और सीतामढ़ी जिले की बचौर ब्रीड पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. प्रयास है कि इनसे फायदा लिया जा सके.

जानकारी देते प्रोफेसर

मौसम भिन्नता के कारण बीमार पड़ रही गायें
बिहार वेटनरी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ मनोज कुमार ने बताया कि अब बिहार का तापमान जर्सी जैसी हाइब्रिड नस्ल की गायों के लिए अनुकूल नहीं है. आजकल इन गायों में बढ़ते तापमान के कारण बीमारियां अधिक देखने को मिल रही हैं. इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम है. इस कारण दूध उत्पादन बढ़ाने का जो लक्ष्य था वह पूरा नहीं हो पा रहा है. गाय ज्यादातर बीमार रह रही हैं. जिस कारण वह ज्यादा दूध नहीं दे पाती हैं.

देसी गायों पर दिया जा रहा ध्यान
डॉ मनोज कुमार ने यह भी बताया कि बिहार वेटनरी कॉलेज अब देसी शैवाल और सीतामढ़ी जिले के बचौर ब्रीड को किसानों के बीच बढ़ावा दे रहा है. आमतौर पर देसी गाय दूध कम देती है. देसी गाय के दूध के उत्पादन में वृद्धि हो इसके लिए को शोध का काम चल रहा है. यह शोध कॉलेज का न्यूट्रिशियन डिपार्टमेंट कर रहा है. गायों के वजन के अनुसार उनका क्या खाना होना चाहिए और गर्भवती गायों को क्या और कितना खाना है, यह सब विभाग शोध कर रहा है. ताकि दूध उत्पादन में वृद्धि हो सके.

पटना: बिहार वेटनरी कॉलेज पशु-पक्षियों पर शोध के लिए मशहूर है. यहां अनेकों प्रकार के पशु-पक्षियों की हाइब्रिड प्रजातियों पर शोध होता रहता है. इन दिनों बिहार वेटनरी कॉलेज गायों की देसी नस्ल और शैवाल नस्ल के ज्यादा से ज्यादा प्रजनन पर जोर दे रहा था. लेकिन, अब उन्होंने इसे रोक दिया है. कारण यह है कि गाय की हाइब्रिड नस्लें यहां के बढ़ते तापमान को सहन नहीं कर पा रही थी.

दरअसल, बिहार वेटनरी कॉलेज ने जर्सी जैसे अन्य हाइब्रिड नस्ल की गायों को बढ़ावा देना बंद कर दिया है. वेटनरी कॉलेज इसके बजाय अब देसी, साहिवाल और सीतामढ़ी जिले की बचौर ब्रीड पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. प्रयास है कि इनसे फायदा लिया जा सके.

जानकारी देते प्रोफेसर

मौसम भिन्नता के कारण बीमार पड़ रही गायें
बिहार वेटनरी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ मनोज कुमार ने बताया कि अब बिहार का तापमान जर्सी जैसी हाइब्रिड नस्ल की गायों के लिए अनुकूल नहीं है. आजकल इन गायों में बढ़ते तापमान के कारण बीमारियां अधिक देखने को मिल रही हैं. इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम है. इस कारण दूध उत्पादन बढ़ाने का जो लक्ष्य था वह पूरा नहीं हो पा रहा है. गाय ज्यादातर बीमार रह रही हैं. जिस कारण वह ज्यादा दूध नहीं दे पाती हैं.

देसी गायों पर दिया जा रहा ध्यान
डॉ मनोज कुमार ने यह भी बताया कि बिहार वेटनरी कॉलेज अब देसी शैवाल और सीतामढ़ी जिले के बचौर ब्रीड को किसानों के बीच बढ़ावा दे रहा है. आमतौर पर देसी गाय दूध कम देती है. देसी गाय के दूध के उत्पादन में वृद्धि हो इसके लिए को शोध का काम चल रहा है. यह शोध कॉलेज का न्यूट्रिशियन डिपार्टमेंट कर रहा है. गायों के वजन के अनुसार उनका क्या खाना होना चाहिए और गर्भवती गायों को क्या और कितना खाना है, यह सब विभाग शोध कर रहा है. ताकि दूध उत्पादन में वृद्धि हो सके.

Intro:बिहार वेटरनरी कॉलेज बिहार पशु पक्षियों पर शोध के लिए मशहूर है. यहां अनेकों प्रकार के पशु पक्षियों के हाइब्रिड प्रजातियों पर शोध होते रहता है. आजकल बिहार वेटरनरी कॉलेज गायों की देसी नस्ल और शैवाल नस्ल के ज्यादा से ज्यादा प्रजनन पर जोर दे रहा है. गाय के जर्सी और अन्य हाइब्रिड नस्ल का बढ़ावा देना अब बिहार वेटरनरी कॉलेज ने बंद कर दिया है. कारण यह है कि गाय की हाइब्रिड नस्लें यहां के बढ़ते तापमान को सहन नहीं कर पा रही है.


एक्सक्लूसिव


Body:आजकल बिहार वेटरनरी कॉलेज जर्सी जैसे अन्य हाइब्रिड नस्ल की गायों को किसानों के लिए बढ़ावा देना बंद कर दिया है. अब वेटरनरी कॉलेज इसके बजाय अब देसी, साहिवाल और सीतामढ़ी जिले की बचौर ब्रीड पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. बिहार वेटरनरी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ मनोज कुमार ने बताया कि अब बिहार का तापमान जर्सी जैसे हाइब्रिड नस्ल के गायों के लिए अनुकूल नहीं है. आजकल इन गायों में बढ़ते तापमान के कारण बीमारियां अधिक देखने को मिल रही है क्योंकि इनका रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होता है. इस कारण दूध का उत्पादन बढ़ाने का जो लक्ष्य था वह पूरा नहीं हो पा रहा है क्योंकि गाय बीमार रह रही हैं जिस कारण वह ज्यादा दूध नहीं दे पा रही है. इन हाइब्रिड गायो की रखरखाव के प्रति यहां के किसान सही से ध्यान नहीं देते हैं और इनको रखरखाव की बेहतर व्यवस्था की जरूरत होती है.


Conclusion:डॉ मनोज कुमार ने बताया कि इसी कारण बिहार वेटरनरी कॉलेज अब देसी शैवाल और सीतामढ़ी जिले के बचौर ब्रीड को किसानों के बीच बढ़ावा दे रहा है. आमतौर पर देसी गाय दूध कम देती है. देसी गाय के दूध के उत्पादन में वृद्धि हो इसके लिए को शोध का काम चल रहा है. यह शोध कॉलेज का न्यूट्रीशन डिपार्टमेंट कर रहा है. गायों की वजन के अनुसार उनका क्या खाना होना चाहिए और गर्भवती गायों को क्या खाना देना चाहिए और कितना देना चाहिए इस पर भी शोध हो रहा है ताकि देसी गायों में दूध का उत्पादन बढ़े.
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