पटना: बिहार में डबल इंजन की सरकार हटने के बाद से केंद्र से मिलने वाली मदद पर भी असर पड़ा है. बिहार सरकार लगातार आरोप लगा रही है कि बिहार को विशेष मदद नहीं मिल रही है. साथ ही बिहार के हिस्से की राशि भी केंद्र सरकार नहीं दे रही है.
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बिहार सरकार और केंद्र आमने-सामने: बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू का कहना है कि जीएसटी में बिहार को हर साल जितनी राशि मिलनी चाहिए, उसमें लगातार कमी हो रही है. वहीं केंद्रीय योजनाओं की राशि में भी बिहार की हिस्सेदारी बढ़ गई है, लेकिन केंद्र की हिस्सेदारी घट गई है. इसका बोझ सरकार पर पड़ रहा है. केंद्र से मिलने वाली मदद पर सियासत भी जारी है. भाजपा नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार बिहार को सबसे अधिक मदद दे रही है. केंद्र के मदद से ही बिहार का विकास हो रहा है.
केंद्र से मिलने वाली राशि में आई कमी: एक तरफ जहां बिहार सरकार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी लगातार कह रहे हैं कि बिहार को केंद्र से मदद नहीं मिल रही है, राशि में भी कटौती की जा रही है. बिहार सरकार की मानें तो 2014-15 में बिहार की हिस्सेदारी का लक्ष्य 41841 करोड़ रूपया था जिसमें मात्र 36963 करोड़ मिला. 2015-16 में लक्ष्य 50747 करोड़ मिलने का था 48922 करोड़ रुपए मिले.
राशि में लगातार कटौती: 2016-17 में लक्ष्य 55233 करोड़ रुपए का था लेकिन 48922 करोड़ रुपए ही मिला. 2019-20 में लक्ष्य 89121 करोड़ रुपए का था लेकिन मिला 63406 करोड़ रुपए, 2020-21 में लक्ष्य 9180 करोड़ रुपए था लेकिन मिला 59861 करोड़ रुपए मात्र मिले. वर्तमान वित्तीय वर्ष में जीएसटी मद से 120000 करोड़ रुपए मिलने का लक्ष्य है लेकिन दो तिमाही बीत जाने के बावजूद केवल 42000 ही बिहार को मिला है. पिछले 5 साल में बिहार को केंद्र सरकार से टैक्स मत में ₹6000 कम मिला है जबकि अनुदान की बात की जाए तो यह 60000 करोड़ रुपए कम मिला है.
केंद्र की हिस्सेदारी 8 प्रतिशत घटी: एनडीए से अलग होने के बाद लक्ष्य के तुलना में बिहार को और कम राशि मिल रही है. यही नहीं केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में भी हर साल बिहार को 4000 करोड़ का नुकसान हो रहा है. नीतीश कुमार लगातार केंद्रीय योजनाओं को घटाने की मांग करते रहे हैं लेकिन 2015-16 से पहले केवल 28 केंद्र प्रायोजित योजनाएं चल रही थी. 2023 में यह बढ़कर 100 से अधिक हो गया है और पिछले 7 वर्ष में ही 31000 करोड़ रुपए केंद्र से कम मिले हैं. केंद्र की हिस्सेदारी 29% से घटकर 21 फीसदी हो गई है.
"केंद्र से लगातार हो रही कटौती के कारण बिहार पर अपनी योजनाओं को लेकर काफी दबाव है. केंद्र सरकार चाहती है कि बिहार सरकार अपनी योजना नहीं चला सके, जिससे लोगों में नाराजगी हो लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है. नीतीश कुमार अपनी योजना जो जनता से किए गए वादे हैं उसे हर हाल में पूरा करेंगे."- चंदेश्वर सिंह चंद्रवंशी, सांसद जदयू
"केंद्र सरकार बिहार को सबसे अधिक मदद कर रही है. लेकिन बिहार सरकार ही राशि खर्च नहीं कर पा रही है. कई योजनाओं की राशि लौटयी जा रही है क्योंकि सरकार खर्च का हिसाब भी नहीं दे पा रही है. योजनाओं में बिहार सरकार घोटाला कर रही है."- डॉ रामसागर सिंह, प्रवक्ता भाजपा
एक्सपर्ट की राय: ए एन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर डॉ विद्यार्थी विकास का कहना है कि "केंद्रीय योजनाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है और केंद्र से जो बिहार को हिस्सेदारी मिलनी चाहिए उस हिसाब से भी राशि नहीं मिल रही है. इसका असर सीधे बिहार में चल रही योजनाओं पर पड़ रहा है. बिहार जैसे राज्यों को केंद्र सरकार से विशेष मदद मिलनी चाहिए और बिहार सरकार की यह मांग सही है क्योंकि नीति आयोग की रिपोर्ट में ही बिहार को सबसे पिछड़ा दिखाया जाता है."
एनडीए से अलग होने के बाद से आरोप: ऐसे बिहार में नीतीश कुमार जब एनडीए में थे तो केंद्र से सहयोग मिलने की बात लगातार कहते थे. एनडीए से निकलने के बाद से जदयू नेताओं की ओर से मदद ना मिलने का आरोप लगाया जा रहा है. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी लगातार कह रहे हैं कि केंद्र से बिहार को पर्याप्त राशि मिल रही है और उत्तर प्रदेश के बाद किसी राज्य को सबसे अधिक राशि मिल रही है तो वह बिहार है. बिहार से ढाई करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में केंद्र सरकार ने बड़ी भूमिका निभाई है.
"बिहार की बजट का 60% हिस्सा केंद्र पर निर्भर है और बिहार में केंद्र के तरफ से मेगा ब्रिज कई बड़े प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं. इसलिए केंद्र सरकार पर बिहार की उपेक्षा का आरोप लगाना सही नहीं है."- सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद