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पटना में बैंकों के निजीकरण का विरोध शुरू, सड़क पर उतरे कर्मचारी

बैंकों के निजीकरण करने के फैसले को लेकर पटना में सरकारी बैंकों के कर्मचारियों का विरोध शुरू हो गया है. बैंक कर्मियों ने 16 और 17 दिसंबर को हड़ताल करने का एलान किया है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

बैंकों के निजीकरण का विरोध
बैंकों के निजीकरण का विरोध
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Published : Dec 16, 2021, 2:29 PM IST

पटना: केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए निजीकरण की तैयारियों के विरोध में बैंक कर्मियों ने 16 और 17 दिसंबर को हड़ताल पर जाने का फैसला लिया है. इसी कड़ी में गुरुवार की सुबह ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (All India Bank Officers Confederation) के बैनर तले सभी कर्माचारी निजीकरण का विरोध (Protest Against Privatization Of Bank) शुरू कर दिया है.

इसे भी पढ़ें: संभलकर करें पैसा खर्च, कल से चार दिन बैंक बंद

पटना के सभी सरकारी बैंकों के कर्मचारी बैंकों में ताला लगाकर सड़कों पर आ गए हैं. इस दौरान कर्माचरियों के साथ कन्फेडरेशन के राष्ट्रीय सचिव सुनील कुमार भी उपस्थित रहें. सभी कर्मचारी केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्राइवेटाइजेशन का विरोध करते नजर आए. वहीं राष्ट्रीय सचिव ने केंद्र सरकार से मांग करते हुए इस निजीकरण पर एक बार पुनः गौर करने का अनुरोध किया है.

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें: बैंकों के निजीकरण का फैसला नहीं बदला तो 16 और 17 दिसंबर को हड़ताल पर रहेंगे बैंककर्मी

कन्फेडरेशन के राष्ट्रीय सचिव सुनील कुमार कहते हैं इस निजीकरण से आम आदमी को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा. अगर हम बात करें ऋण की, तो आमलोगों को सबसे ज्यादा हर क्षेत्र में ऋण सरकारी बैंक प्रदान करता है. अगर इन बैंकों का निजीकरण कर दिया गया, तो आम लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. खासकर उन युवाओं को जिन्हें उनकी उच्च शिक्षा के लिए बैंक ऋण मुहैया कराता है.


'अगर पिछले 15 दिनों की बात करें, तो पिछले 15 दिनों में डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज के ट्वीट की बात की जाए, तो हर दिन सरकारी बैंकों के कार्य को सराहा जा रहा है. हर दिन ट्वीट के माध्यम से तारीफ की जा रही है. इसके बावजूद भी सरकार निजीकरण क्यों कर रही है?' -सुनील कुमार, राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन

सुनील बताते हैं कि हाल के दिनों में सरकारी बैंकों में जनधन खाते खोले गए. इसके साथ ही वैसे लोगों के खाते खोले गए जिनका आज तक खाता ही नहीं खोला गया था. ऐसे लोगों के खाते भी खुलवाए गए. इस कारण फाइनेंसियल इंक्लूजन बढ़ा. अगर सरकारी बैंक नहीं होते, तो जनधन खाता खोलने में लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता.

सुनील कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर कि अगर डाटा की बात करें, तो 90% एजुकेशन लोन सरकारी क्षेत्रों के बैंक कौन है उपलब्ध करवाया है. इसके साथ ही किसानों को कृषि लोन की उपलब्धता भी सरकारी बैंक ने उपलब्ध करायी है. एक भी प्राइवेट बैंक किसानों को कृषि लोन प्रदान नहीं करता. इसके साथ में कई तरह के लाभ सरकारी बैंकों के जरिए आम लोग उठा रहे हैं और इन सरकारी बैंकों का निजीकरण होता है.

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पटना: केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए निजीकरण की तैयारियों के विरोध में बैंक कर्मियों ने 16 और 17 दिसंबर को हड़ताल पर जाने का फैसला लिया है. इसी कड़ी में गुरुवार की सुबह ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (All India Bank Officers Confederation) के बैनर तले सभी कर्माचारी निजीकरण का विरोध (Protest Against Privatization Of Bank) शुरू कर दिया है.

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पटना के सभी सरकारी बैंकों के कर्मचारी बैंकों में ताला लगाकर सड़कों पर आ गए हैं. इस दौरान कर्माचरियों के साथ कन्फेडरेशन के राष्ट्रीय सचिव सुनील कुमार भी उपस्थित रहें. सभी कर्मचारी केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्राइवेटाइजेशन का विरोध करते नजर आए. वहीं राष्ट्रीय सचिव ने केंद्र सरकार से मांग करते हुए इस निजीकरण पर एक बार पुनः गौर करने का अनुरोध किया है.

देखें रिपोर्ट.

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कन्फेडरेशन के राष्ट्रीय सचिव सुनील कुमार कहते हैं इस निजीकरण से आम आदमी को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा. अगर हम बात करें ऋण की, तो आमलोगों को सबसे ज्यादा हर क्षेत्र में ऋण सरकारी बैंक प्रदान करता है. अगर इन बैंकों का निजीकरण कर दिया गया, तो आम लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. खासकर उन युवाओं को जिन्हें उनकी उच्च शिक्षा के लिए बैंक ऋण मुहैया कराता है.


'अगर पिछले 15 दिनों की बात करें, तो पिछले 15 दिनों में डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज के ट्वीट की बात की जाए, तो हर दिन सरकारी बैंकों के कार्य को सराहा जा रहा है. हर दिन ट्वीट के माध्यम से तारीफ की जा रही है. इसके बावजूद भी सरकार निजीकरण क्यों कर रही है?' -सुनील कुमार, राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन

सुनील बताते हैं कि हाल के दिनों में सरकारी बैंकों में जनधन खाते खोले गए. इसके साथ ही वैसे लोगों के खाते खोले गए जिनका आज तक खाता ही नहीं खोला गया था. ऐसे लोगों के खाते भी खुलवाए गए. इस कारण फाइनेंसियल इंक्लूजन बढ़ा. अगर सरकारी बैंक नहीं होते, तो जनधन खाता खोलने में लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता.

सुनील कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर कि अगर डाटा की बात करें, तो 90% एजुकेशन लोन सरकारी क्षेत्रों के बैंक कौन है उपलब्ध करवाया है. इसके साथ ही किसानों को कृषि लोन की उपलब्धता भी सरकारी बैंक ने उपलब्ध करायी है. एक भी प्राइवेट बैंक किसानों को कृषि लोन प्रदान नहीं करता. इसके साथ में कई तरह के लाभ सरकारी बैंकों के जरिए आम लोग उठा रहे हैं और इन सरकारी बैंकों का निजीकरण होता है.

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