पटना(बिहटा): बिहार के कुछ बड़े अस्पतालों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर अस्पतालों का हाल खस्ताहाल ही है. 15 साल से बिहार की सुशासन की सरकार ने स्वास्थ व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा इस पर खर्च किया है. लेकिन सूबे के कई हॉस्पिटल में आज भी उस स्तर की सुविधा नहीं है. जिसकी उम्मीद लोग बरसों से करते आ रहे हैं.
आज हम बात कर रहें हैं राजधानी से सटे बिहटा के रेफरल अस्पताल की. जहां के स्वास्थयकर्मी खौफ के साए में मरीजों का इलाज करते हैं. खुद मरीज भी यहां जान हाथेली पर लेकर आते हैं.
बिहार में जदयू के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के बजट को बढ़ाकर 10,000 करोड़ रुपये कर दिया है, जो कि 2005 में 278 करोड़ रुपये था. लेकिन बजट में इजाफा के बावजूद जब पटना से सटे इस रेफरल अस्पताल की हालत ठीक नहीं हो सकी तो बिहार के दूर दराज इलाके के अस्पतालों का क्या हाल होगा. ये अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं.
गरीबों का सहारा है रेफरल अस्पताल
दरअसल बिहटा प्रखंड के सभी 26 पंचायत के लोगों के लिए यह एक मात्र रेफरल अस्पताल है. जहां आस-पास के लोग इलाज कराने पहुंचते हैं. इलाके के गरीब लोगों के लिए ये अस्पताल ही है जो इमरजेंसी के वक्त भी लोगों के काम आता है.
'अस्पताल के ज्यादातर हिस्से की छत आए दिन गिरती रहती है. यहां काम करते हुए हमेशा डर बना रहता है. कई बार स्वास्थ्यकर्मी घायल हो चुके हैं'. मृत्युंजय कुमार, लैब टेक्नीशियन
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काफी जर्जर हो चुका है भवन
अस्पताल का भवन 1979 में ही बना था. जो अब काफी पुराना हो चुका है. कई बार इसकी शिकायत स्वास्थ्य और भवन निर्माण विभाग के साथ-साथ पीडब्ल्यूडी से भी की गई है, लेकिन भवन की मरम्मत कराकर छोड़ दिया जाता है. कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो जाता है.
'भवन के मलवे से कई बार स्वास्थ्यकर्मी घायल हो चुके हैं. संबंधित विभाग से कई बार शिकायत कर चुका हूं, लेकिन कोई पायदा नहीं हुआ'- डॉ. कृष्ण कुमार, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी
2020 में नई सरकार के गठन के स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी सरकारी अस्पतालों में सुविधा बढ़ाने की बात कही गई है. अब इस घोषणा के बाद कुछ बेहतर होने की आस में अस्पतालकर्मी रोजाना अपनी सेवाएं उसी तरह देते हैं और फिर घर चले जाते हैं.