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ध्यान दो सरकार! सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहा बिहार का सबसे बड़ा शोध संस्थान - बिहार की खबर

सरकार की अनदेखी के कारण बिहार का एएन सिन्हा संस्थान आज बदहाल है. यहां साल 2018 से कई पद खाली पड़े हैं. साथ ही 2016 से रेगुलर बहाली नहीं हुई है.

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Published : Jun 12, 2020, 9:23 PM IST

पटना: बिहार के सबसे बड़े शोध संस्थान को लेकर इन दिनों सरकारी उदासीनता का शिकार हो गई है. अब ना तो इसमें नियमित बहाली हो रही है और ना ही फैकेल्टी मेंबर की कमी पूरी हो पा रही है. नतीजा यह कि सामाजिक शोध संस्थान के रूप में विश्व भर में चर्चित के संस्थान में शोध कार्य प्रभावित हो रहा है.

बिहार के सबसे बड़े सामाजिक शोध संस्थान की स्थिति दिनों दिन बदतर होती जा रही है. इस संस्थान में ना सिर्फ अध्यक्ष और डायरेक्टर समेत तमाम पद खाली पड़े हैं, बल्कि बड़ी संख्या में फैकल्टी के पद भी खाली हैं. जिसके कारण शोध कार्य प्रभावित हो रहा है. सूत्रों के मुताबिक साल 2015 में बिहार के मुख्य सचिव के साथ बैठक में कई मुख्य मुद्दों पर चर्चा हुई थी. संस्थान की ग्रांट बढ़ाने को लेकर बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखने का वादा किया था. लेकिन वह वादा भी अब तक अधूरा है.

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एएन सिन्हा संस्थान, पटना

क्या कहती है 2017-18 की रिपोर्ट?
इसके अलावा शिक्षा विभाग को संस्थान में सैंक्शंड पदों के बारे में अधिसूचना जारी करनी थी. जिसके बाद केंद्र से मिलने वाला फंड भी बढ़ जाता. लेकिन 5 साल बाद भी उन पर अमल नहीं हो पाया है. जिसके कारण यह संस्थान हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान झेल रहा है. साल 2017-18 तक की संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक कुल खर्च लगभग 8 करोड़ रुपये हुए और नुकसान लगभग 4.28 करोड़ रुपये हुए. एएन सिन्हा संस्थान को फिलहाल आईसीएसएसआर से पंचम वेतन ग्रांट मिलता है. जबकि सातवां वेतनमान सब जगह पर लागू हो चुका है. इस कारण हर साल करोड़ों का नुकसान होता है. बता दें कि संस्थान में कुल 27 फैकल्टी मेंबर्स की जगह सिर्फ 16 से ही काम चल रहा है.

2018 से नहीं हुई है नियुक्ति
जानकारी के मुताबिक साल 2018 से ही संस्थान के डायरेक्टर के पद पर नियमित नियुक्ति नहीं हुई है. वहीं, 2016 से रजिस्ट्रार के पद पर रेगुलर बहाली ही नहीं हुई. इसके अलावा प्रशासक, लाइब्रेरियन, अकाउंटेंट के पद भी करीब 5 साल से खाली पड़े हैं. एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट के वरिष्ठ प्रोफेसर डीएम दिवाकर ने संस्थान से जुड़े कार्यों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि ये संस्थान सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि विश्व के सामाजिक शोध संस्थानों में अपनी एक अलग पहचान रखता है. हालांकि उन्होंने संस्थान की समस्याओं पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

पटना से अमित वर्मा की रिपोर्ट

आरजेडी ने लगाया सरकार पर आरोप
इधर राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि लोग लालू यादव को हर बात के लिए दोष देते हैं. लेकिन यहां तो 15 साल से नीतीश कुमार की सरकार है. उन्हें जवाब देना चाहिए कि बिहार के इस सबसे गरिमामई संस्थान की ऐसी हालत क्यों है?

संस्थान के प्रभारी निदेशक ने दी जानकारी
वहीं, संस्थान के प्रभारी निदेशक सतीश चंद्र झा ने कहा कि रोस्टर के मुताबिक बहाली की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी. उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार से रोस्टर क्लियर कर वैकेंसी की जानकारी मांगी है. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि इस संस्थान में ना तो फंड की कमी है और ना ही फैकल्टी मेंबर्स की. जितने शोध होने चाहिए उतने शोध भी इस संस्थान में नहीं हो रहे.

पटना: बिहार के सबसे बड़े शोध संस्थान को लेकर इन दिनों सरकारी उदासीनता का शिकार हो गई है. अब ना तो इसमें नियमित बहाली हो रही है और ना ही फैकेल्टी मेंबर की कमी पूरी हो पा रही है. नतीजा यह कि सामाजिक शोध संस्थान के रूप में विश्व भर में चर्चित के संस्थान में शोध कार्य प्रभावित हो रहा है.

बिहार के सबसे बड़े सामाजिक शोध संस्थान की स्थिति दिनों दिन बदतर होती जा रही है. इस संस्थान में ना सिर्फ अध्यक्ष और डायरेक्टर समेत तमाम पद खाली पड़े हैं, बल्कि बड़ी संख्या में फैकल्टी के पद भी खाली हैं. जिसके कारण शोध कार्य प्रभावित हो रहा है. सूत्रों के मुताबिक साल 2015 में बिहार के मुख्य सचिव के साथ बैठक में कई मुख्य मुद्दों पर चर्चा हुई थी. संस्थान की ग्रांट बढ़ाने को लेकर बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखने का वादा किया था. लेकिन वह वादा भी अब तक अधूरा है.

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एएन सिन्हा संस्थान, पटना

क्या कहती है 2017-18 की रिपोर्ट?
इसके अलावा शिक्षा विभाग को संस्थान में सैंक्शंड पदों के बारे में अधिसूचना जारी करनी थी. जिसके बाद केंद्र से मिलने वाला फंड भी बढ़ जाता. लेकिन 5 साल बाद भी उन पर अमल नहीं हो पाया है. जिसके कारण यह संस्थान हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान झेल रहा है. साल 2017-18 तक की संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक कुल खर्च लगभग 8 करोड़ रुपये हुए और नुकसान लगभग 4.28 करोड़ रुपये हुए. एएन सिन्हा संस्थान को फिलहाल आईसीएसएसआर से पंचम वेतन ग्रांट मिलता है. जबकि सातवां वेतनमान सब जगह पर लागू हो चुका है. इस कारण हर साल करोड़ों का नुकसान होता है. बता दें कि संस्थान में कुल 27 फैकल्टी मेंबर्स की जगह सिर्फ 16 से ही काम चल रहा है.

2018 से नहीं हुई है नियुक्ति
जानकारी के मुताबिक साल 2018 से ही संस्थान के डायरेक्टर के पद पर नियमित नियुक्ति नहीं हुई है. वहीं, 2016 से रजिस्ट्रार के पद पर रेगुलर बहाली ही नहीं हुई. इसके अलावा प्रशासक, लाइब्रेरियन, अकाउंटेंट के पद भी करीब 5 साल से खाली पड़े हैं. एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट के वरिष्ठ प्रोफेसर डीएम दिवाकर ने संस्थान से जुड़े कार्यों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि ये संस्थान सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि विश्व के सामाजिक शोध संस्थानों में अपनी एक अलग पहचान रखता है. हालांकि उन्होंने संस्थान की समस्याओं पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

पटना से अमित वर्मा की रिपोर्ट

आरजेडी ने लगाया सरकार पर आरोप
इधर राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि लोग लालू यादव को हर बात के लिए दोष देते हैं. लेकिन यहां तो 15 साल से नीतीश कुमार की सरकार है. उन्हें जवाब देना चाहिए कि बिहार के इस सबसे गरिमामई संस्थान की ऐसी हालत क्यों है?

संस्थान के प्रभारी निदेशक ने दी जानकारी
वहीं, संस्थान के प्रभारी निदेशक सतीश चंद्र झा ने कहा कि रोस्टर के मुताबिक बहाली की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी. उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार से रोस्टर क्लियर कर वैकेंसी की जानकारी मांगी है. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि इस संस्थान में ना तो फंड की कमी है और ना ही फैकल्टी मेंबर्स की. जितने शोध होने चाहिए उतने शोध भी इस संस्थान में नहीं हो रहे.

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