पटना: बिहार में जातीय जनगणना (Cast Census in Bihar) कराने का रास्त साफ हो गया है. सर्वदलीय बैठक के बाद गुरुवार को कैबिनट की बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया. नीतीश सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकार अपने खर्चे पर जातीय जनगणना कराएगी. वहीं इसको लेकर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को लेकर लगातार निशाना साधा जा रहा है. जायसवाल ने कहा था कि बिहार में जातीय जनगणना हो हम उसका समर्थन कर रहे हैं लेकिन बांग्लादेशी रोहिंग्या (Sanjay Jaiswal Rohingya Bangladeshi Statement ) जो बिहार में आकर बसे हुए हैं उनकी गणना नहीं होनी चाहिए. इसको लेकर एआईएमआईएम के विधायक दल के नेता अख्तरुल इमान ( AIMIM MLA Akhtarul Iman) ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.
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बीजेपी के बयान पर AIMIM का हमला: अख्तरुल इमान ने कहा है कि सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने बिहार में जातीय जनगणना को जरूरी बताया है. अब भारतीय जनता पार्टी के नेता इसको लेकर जो बयान दे रहे हैं वह ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी धर्म को आधार बनाकर लगातार राजनीति कर रही है और इस तरह की राजनीति करना बिहार में उचित नहीं है.
"अब जातीय जनगणना की बारी आई तो बांग्लादेशी और रोहिंग्या याद आने लगे हैं जो कि गलत है. जातीय जनगणना को लेकर जो निर्णय सर्वदलीय बैठक में हुई है उसी तरह इसको बिहार में कराना भी होगा. भाजपा कुछ कहे लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो निर्णय लिया है उसके आधार पर ही बिहार में जातीय जनगणना होगी. बीजेपी सबका साथ और सबका विकास की बात करती है तो उन्हें ये बात पता होना चाहिए कि कौन से वर्ग के लोग समाज मे कैसे रह रहे हैं और किसकी आर्थिक स्थिति क्या है?"- अख्तरुल इमान, एआईएमआईएम विधायक
राजद को लेकर कही ये बात: अख्तरुल इमान से जब सवाल किया गया कि बिहार में विधान परिषद का चुनाव होना है राष्ट्रीय जनता दल ने 3 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है तो उन्होंने कहा कि इन सब मसले पर राष्ट्रीय जनता दल से हमारी कोई बात नहीं हुई है. अब महागठबंधन से अलग हैं और हमारी सोच अलग है. अगर इन सब मुद्दों पर राजद के लोग हमसे बात करेंगे समय आने पर हम इसका जवाब देंगे. फिलहाल बिहार विधान परिषद चुनाव को लेकर राजद ने जो भी उम्मीदवार खड़ा किया है उसको लेकर हम किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दे सकते हैं.
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केंद्र नहीं करायेगी जातीय जणगणना : यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकार जातीय जनगणना नहीं कराने जा रही है. वहीं राज्यों को ये छूट मिली है कि अगर वो चाहें तो अपने खर्चे पर सूबे में जातीय जनगणना करा सकते हैं. वहीं बिहार में लगभग सभी दल एकमत हैं कि प्रदेश में जातीय जनगणना होनी चाहिए. भाजपा ने इसे लेकर केंद्र के फैसले के साथ खुद को खड़ा रखा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाल में ही इस मुद्दे पर मुलाकात की थी. सीएम लगातार जातीय जनगणना के पक्ष में बयान देते रहे हैं.
नीतीश कुमार के नेतृत्व में पीएम से मिला था शिष्टमंडल : जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की पहल पर ही पिछले साल 23 अगस्त को नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से शिष्टमंडल मिला था लेकिन केंद्र सरकार ने साफ मना कर दिया है. अब नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक कर इस पर फैसला लेने की बात कही है. ऐसे में इसमें क्या होता है इसपर सबकी निगाह टिकी रहेगी.
जातीय जनगणना को लेकर सरगर्मी तेज: बिहार में वोट के लिहाज से ओबीसी और ईबीसी बड़ा वोट बैंक है. दोनों की कुल आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है. और इसमें सबसे अधिक यादव जाति का वोट है जो 13 से 14% के आसपास अभी मान जा रहा है. जहां तक जातियों की बात करें तो 33 से 34 जातियां इस वर्ग में आती है. ऐसे तो जातीय जनगणना सभी जातियों की होगी लेकिन जेडीयू और आरजेडी की नजर ओबीसी और ईबीसी जाति पर ही है. दोनों अपना वोट बैंक इसे मानती रही है.
1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ: 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ है. इसलिए अनुमान पर ही बिहार में जातियों की आबादी का प्रतिशत लगाया जाता रहा है. बिहार में ओबीसी में 33 जातियां शामिल है तो वही ईबीसी में सवा सौ से अधिक जातियां हैं. ओबीसी और ईबीसी की आबादी में यादव 14 फीसदी, कुर्मी तीन से चार फीसदी, कुशवाहा 6 से 7 फीसदी, बनिया 7 से 8 फीसदी ओबीसी का दबदबा है. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कानून, गंगोता, धानुक, नोनिया, नाई, बिंद बेलदार, चौरसिया, लोहार, बढ़ई, धोबी, मल्लाह सहित कई जातियां चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं.
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