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'सुशासन' वाले सिस्टम से सवाल, आखिर 15 साल में क्यों नहीं बदला बिहार?

बिहार में कोरोना का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. मौतों की संख्या नया रिकॉर्ड बना रहा है, लोग त्राहिमाम कर रहे हैं, सरकार बैठकें कर रही हैं पर जमीनी हकीकत क्या है. पढ़ें इस रिपोर्ट में

पटना
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Published : Apr 27, 2021, 11:09 PM IST

Updated : Apr 28, 2021, 4:02 PM IST

पटना: कोरोना के कहर से पूरा बिहार कराह रहा है. सरकारी व्यवस्था के नाम पर बात तो बड़ी-बड़ी की जा रही है लेकिन इन बातों की एक भी बानगी जमीन पर नहीं उतर रही है. अब तो आलम यह है कि अगर आप के किसी परिचित को कोरोना हो जाये तो बस यह मान लीजिए की अब जो करेंगे भगवान ही करेंगे, क्योकि इंसानों वाली हर व्यवस्था सरकारी बदइंतजामी की भेंट चढ़ गयी है.

15 साल बनाम 15 साल का राज
सबसे बड़ी त्रासदी राजनीति के इस पहलू की है कि नीतीश कुमार 15 साल बनाम 15 साल के जिस राग को गा रहे थे, अब उस राग का हर सरगम बिहार के सीने को छलनी कर रहा है. साथ ही बिहार के लोगों को अथाह दर्द और गम दे रहा है. अब तो बिहार को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि वह अपने किस गौरव पर इतराए और अथाह दर्द को कैसे विसराए.

ये भी पढ़ें- बिहार में कोरोना का सबसे भयानक रूप, 24 घंटे में रिकॉर्ड 85 लोगों की गई जान

दरअसल, बिहार यह सवाल भी नहीं उठा सकता है क्योंकि जवाब देने वाले कह देंगे 15 साल पहले क्या था हम न्याय के साथ विकास कर रहे हैं. बिहार का मन अब यह कराह कर पूछ रहा है कि हे 15 साल के तुलनाधारी सत्ताधीश, ऑक्सीजन की कमी त्रासदी जनित हो सकती है, जिस पर आप कुछ कर ही नहीं सकते, लेकिन यह बताइए डॉक्टर कहां हैं, नर्स कहां हैं, अस्पताल कहां हैं? 15 साल में बिहार जितना आगे बढ़ा, जरूरत बढ़ी उसे लेकर क्या हुआ. अब बता दीजिए सरकार क्योंकि लोग पूछ रहे हैं आखिर क्यों बोले बिहार.

डॉक्टर कहां हैं?
बिहार की व्यवस्था पर डॉक्टर कहां है यह सवाल नया नहीं है. पटना के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले पीएमसीएच में 15 साल में शायद ही कोई दिन रहा हो साहब, जब बिहार की जनता ने यह सवाल न किया हो. ऐसा नहीं है कि यह एक बार की बात है, जब-जब बिहार को जरूरत पड़ी है, हालात और व्यवस्था पर बिहार खूब रोया है. शायद आप के जेहन से बात उतर गयी हो. आपके स्वास्थ्य विभाग की तैयारी गंडामन की घटना को लेकर क्या कमाल की थी कि बच्चों के लेकर आ रही एम्बुलेंस का तेल गांधी सेतु पर खत्म हो गया था. उसके बाद क्या हुआ आप के खास लोग बताए होंगे. पीएमसीएच पहुंच रहे बच्चों के लिए आप की तैयारी कमाल की थी.

"गांधी मैदान से पतंगबाजी तक कराहा बिहार"
गांधी मैदान में रावण को मारने गयी पटना की जनता जिस तरह से मारी गयी और उसके बाद इलाज के लिए अस्पताल में जो इंतजाम था वह भी बिहार ने देखा था और पूरा बिहार रोया भी था. पटना की पतंगबाजी भी कमाल की ही थी, जिनके लोगों की जान गयी वे आज तक नहीं समझे की आखिर उसमें हुआ क्या. हां, राजभवन के सामने बने लालफीताशाही का कारनामा जरूर बिहार की रोती जनता ने भोगा था.

ईटीवी भारत GFX
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जांच करने वाले साहब कहां हैं? जांच का क्या हुआ किसी खास को पता हो सकता है बिहार नहीं जानता. यह बिहार की जनता पूछ रही है, बिहार की हर बीमारी जब आप को पता है तो आखिर इलाज करने वाले कहां हैं?15 साल पहले क्या था, 15 साल में क्या है और 15 साल बाद क्या होगा तो ये हालात क्यों है- इसका क्या जवाब दे बिहार.

ये भी पढ़ें- तेजस्वी यादव का छलका दर्द, कहा- 'इतना असहाय कभी अनुभव नहीं किया'

बिहारी कहां हैं?
बिहारी हुनरमंद हैं और अपनी मेहनत से जहां रहते हैं कमाते हैं. देश में रोटी कहीं कमा कर खाई जा सकती है. लेकिन कितना बिहार बाहर है, और ये बिहारी आज किस हाल में हैं जानने वाला कोई नहीं है. बिहारी कहां हैं किस हाल में है इसकी जानकारी का कोई इंतजाम नहीं है. कोरोना ने सांस रोकने की जिस रणनीति को जिस मुकम्मल तैयारी के साथ अंजाम दे रहा है, उससे एक बात साफ है कि जो तैयारी बिहार सरकार की है उसमें बिहारी कहां हैं किस हाल में है जानने वाला कोई नहीं है.

अस्पताल में बेड और दवा नहीं
अस्पताल में बेड और दवा नहीं

कोरोना के पहले वेव में यह कह दिया गया था कि कोई शौक से कहीं जा सकता है, लेकिन बिहार में हम हर बिहारी को काम दे सकते हैं. आखिर इस दावे को अगर बिहार की जनता हकीकत मान लेती तो हालात क्या होते? लोग बाहर हैं यह आप को पता है, लेकिन किस हाल में है जाने कौन? संख्या भी कम नहीं है, सरकारी आंकड़ों के अनुसार 20 लाख से ज्यादा हैं. आखिर बिहार क्या बोले कि इनकी हाल और सुध लेने वाला कौन है?

'8 किलो राशन, बिहार में है सुशासन'
बिहार सहित देश में जब पहली बार लॉक डाउन लगा था तो सरकार ने 'वन नेशन वन राशन कार्ड' का नारा दिया. बिहार में भी योजना को रूप देने के लिए काम शुरू हुआ, जो चल रहा होगा लेकिन जिसके भरोसे बिहार की जनता को नीतीश कुमार बुला रहे हैं उसमें बिहार के लोगे के लिए महत्वाकांक्षी योजना 8 किलो राशन का है. बिहार के जो लोग बाहर हैं उनके वापस आने पर उनको 8 किलो राशन मिलेगा और इसका कारण है कि बिहार में सुशासन की सरकार है. 8 किलो राशन से यह सरकार आप को हर सुविधा दे दे रही.

ये भी पढ़ें- RJD विधायक ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए दिए 1 करोड़ 35 लाख

यही वजह रही कि नीतीश कुमार ने सबको बिहार आने को कह दिया. इसी 8 किलो राशन से बच्चों की पढ़ाई और परिवार का पालन हो जाएगा. नीतीश के खास और कभी उनके सत्ता के उत्तराधिकारी रहे जीतन राम मांझी ने बिहार में लॉकडाउन लगाने के समर्थन की शर्त रख दी जिसमें बच्चों की फीस, ईएमआई और बिजली बिल शामिल है, लेकिन यह भी सियासत से ज्यादा नहीं है.

अस्पताल में बेड और दवा नहीं, डॉक्टर और नर्स नहीं
अस्पताल में बेड नहीं है, दवा नहीं है, सांस देने वाली हवा नहीं है इसके लिए हाहाकार मचा है, कोरोना का त्राहिमाम मचा है. डॉक्टर और नर्स नहीं तो क्या हुआ, इसके अभाव में भले ही मर जाए बिहार तो क्या हुआ, 'नीतीशे कुमार है'. राजनीति में सब है, बस बिहार के जवाब के लिए नहीं है.

कोरोना में बिगड़े सरकारी व्यवस्था का हाल यह है कि अस्पतालों में गैस खत्म होने तक पर सरकार के पास इंतजाम नहीं रहता है. विपक्ष का आरोप है कि सरकार ही बदइंतजामी की सबसे बड़ी वजह है. जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव ने आरोप लगाया है कि सरकार के लोग मिलकर व्यवस्था को बिगाड़ रहे हैं.

ईटीवी भारत GFX
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40 हजार में सांस वाली हवा
नीतीश कुमार जी यह सच्चाई है, पटना में भले ऑक्सीजन के नहीं होने की बात हो, लेकिन यह भी सही है कि 40 हजार में एक ऑक्सीजन सिलेंडर मिल रहा है. मैं इसका भुक्तभोगी हूं और गवाह भी. सरकारी अस्पताल में बेड नहीं है, प्राइवेट का रेट यही है जो आप देख रहे हैं. बड़ा सवाल यही है कि जब सबको यह पता है कि इस तरह की कालाबाजारी हो रही है तो रोक क्यों नहीं लग रही? बिहार के इस अमंगल के लिए कौन जिम्मेदार है, और वे कौन हैं जो इस व्यवस्था में अमृत पी रहे हैं?

ये भी पढ़ें- राजद के पूर्व विधायक विजय कुमार की कोरोना से मौत, पार्टी में शोक की लहर

बेबस बिहार आज मौत पर भी सियासत के सुर ही सुन रहा है, क्योंकि सियासत तो होगी ही. कोरोना कब कहां दस्तक दे जाए इसकी गारंटी नहीं है. अस्पताल में बेड नहीं मिलेगा इसकी गारंटी है. ऑक्सीजन नहीं मिलेगी यह तय है. डॅाक्टर मिलेंगे गारंटी नहीं है. आप के जीवन का क्या होगा नहीं कहा जा सकता. इंतजामों के लिए सिर्फ उच्च स्तरीय बैठक कर रही है सरकार. इसके आगे क्या बोले बिहार.

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ये भी पढ़ें- PHQ ने पुलिसकर्मियों से की कोरोना टीका लेने की अपील, कहा- 'हमें आप सभी पर है गर्व'

पटना: कोरोना के कहर से पूरा बिहार कराह रहा है. सरकारी व्यवस्था के नाम पर बात तो बड़ी-बड़ी की जा रही है लेकिन इन बातों की एक भी बानगी जमीन पर नहीं उतर रही है. अब तो आलम यह है कि अगर आप के किसी परिचित को कोरोना हो जाये तो बस यह मान लीजिए की अब जो करेंगे भगवान ही करेंगे, क्योकि इंसानों वाली हर व्यवस्था सरकारी बदइंतजामी की भेंट चढ़ गयी है.

15 साल बनाम 15 साल का राज
सबसे बड़ी त्रासदी राजनीति के इस पहलू की है कि नीतीश कुमार 15 साल बनाम 15 साल के जिस राग को गा रहे थे, अब उस राग का हर सरगम बिहार के सीने को छलनी कर रहा है. साथ ही बिहार के लोगों को अथाह दर्द और गम दे रहा है. अब तो बिहार को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि वह अपने किस गौरव पर इतराए और अथाह दर्द को कैसे विसराए.

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दरअसल, बिहार यह सवाल भी नहीं उठा सकता है क्योंकि जवाब देने वाले कह देंगे 15 साल पहले क्या था हम न्याय के साथ विकास कर रहे हैं. बिहार का मन अब यह कराह कर पूछ रहा है कि हे 15 साल के तुलनाधारी सत्ताधीश, ऑक्सीजन की कमी त्रासदी जनित हो सकती है, जिस पर आप कुछ कर ही नहीं सकते, लेकिन यह बताइए डॉक्टर कहां हैं, नर्स कहां हैं, अस्पताल कहां हैं? 15 साल में बिहार जितना आगे बढ़ा, जरूरत बढ़ी उसे लेकर क्या हुआ. अब बता दीजिए सरकार क्योंकि लोग पूछ रहे हैं आखिर क्यों बोले बिहार.

डॉक्टर कहां हैं?
बिहार की व्यवस्था पर डॉक्टर कहां है यह सवाल नया नहीं है. पटना के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले पीएमसीएच में 15 साल में शायद ही कोई दिन रहा हो साहब, जब बिहार की जनता ने यह सवाल न किया हो. ऐसा नहीं है कि यह एक बार की बात है, जब-जब बिहार को जरूरत पड़ी है, हालात और व्यवस्था पर बिहार खूब रोया है. शायद आप के जेहन से बात उतर गयी हो. आपके स्वास्थ्य विभाग की तैयारी गंडामन की घटना को लेकर क्या कमाल की थी कि बच्चों के लेकर आ रही एम्बुलेंस का तेल गांधी सेतु पर खत्म हो गया था. उसके बाद क्या हुआ आप के खास लोग बताए होंगे. पीएमसीएच पहुंच रहे बच्चों के लिए आप की तैयारी कमाल की थी.

"गांधी मैदान से पतंगबाजी तक कराहा बिहार"
गांधी मैदान में रावण को मारने गयी पटना की जनता जिस तरह से मारी गयी और उसके बाद इलाज के लिए अस्पताल में जो इंतजाम था वह भी बिहार ने देखा था और पूरा बिहार रोया भी था. पटना की पतंगबाजी भी कमाल की ही थी, जिनके लोगों की जान गयी वे आज तक नहीं समझे की आखिर उसमें हुआ क्या. हां, राजभवन के सामने बने लालफीताशाही का कारनामा जरूर बिहार की रोती जनता ने भोगा था.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX

जांच करने वाले साहब कहां हैं? जांच का क्या हुआ किसी खास को पता हो सकता है बिहार नहीं जानता. यह बिहार की जनता पूछ रही है, बिहार की हर बीमारी जब आप को पता है तो आखिर इलाज करने वाले कहां हैं?15 साल पहले क्या था, 15 साल में क्या है और 15 साल बाद क्या होगा तो ये हालात क्यों है- इसका क्या जवाब दे बिहार.

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बिहारी कहां हैं?
बिहारी हुनरमंद हैं और अपनी मेहनत से जहां रहते हैं कमाते हैं. देश में रोटी कहीं कमा कर खाई जा सकती है. लेकिन कितना बिहार बाहर है, और ये बिहारी आज किस हाल में हैं जानने वाला कोई नहीं है. बिहारी कहां हैं किस हाल में है इसकी जानकारी का कोई इंतजाम नहीं है. कोरोना ने सांस रोकने की जिस रणनीति को जिस मुकम्मल तैयारी के साथ अंजाम दे रहा है, उससे एक बात साफ है कि जो तैयारी बिहार सरकार की है उसमें बिहारी कहां हैं किस हाल में है जानने वाला कोई नहीं है.

अस्पताल में बेड और दवा नहीं
अस्पताल में बेड और दवा नहीं

कोरोना के पहले वेव में यह कह दिया गया था कि कोई शौक से कहीं जा सकता है, लेकिन बिहार में हम हर बिहारी को काम दे सकते हैं. आखिर इस दावे को अगर बिहार की जनता हकीकत मान लेती तो हालात क्या होते? लोग बाहर हैं यह आप को पता है, लेकिन किस हाल में है जाने कौन? संख्या भी कम नहीं है, सरकारी आंकड़ों के अनुसार 20 लाख से ज्यादा हैं. आखिर बिहार क्या बोले कि इनकी हाल और सुध लेने वाला कौन है?

'8 किलो राशन, बिहार में है सुशासन'
बिहार सहित देश में जब पहली बार लॉक डाउन लगा था तो सरकार ने 'वन नेशन वन राशन कार्ड' का नारा दिया. बिहार में भी योजना को रूप देने के लिए काम शुरू हुआ, जो चल रहा होगा लेकिन जिसके भरोसे बिहार की जनता को नीतीश कुमार बुला रहे हैं उसमें बिहार के लोगे के लिए महत्वाकांक्षी योजना 8 किलो राशन का है. बिहार के जो लोग बाहर हैं उनके वापस आने पर उनको 8 किलो राशन मिलेगा और इसका कारण है कि बिहार में सुशासन की सरकार है. 8 किलो राशन से यह सरकार आप को हर सुविधा दे दे रही.

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यही वजह रही कि नीतीश कुमार ने सबको बिहार आने को कह दिया. इसी 8 किलो राशन से बच्चों की पढ़ाई और परिवार का पालन हो जाएगा. नीतीश के खास और कभी उनके सत्ता के उत्तराधिकारी रहे जीतन राम मांझी ने बिहार में लॉकडाउन लगाने के समर्थन की शर्त रख दी जिसमें बच्चों की फीस, ईएमआई और बिजली बिल शामिल है, लेकिन यह भी सियासत से ज्यादा नहीं है.

अस्पताल में बेड और दवा नहीं, डॉक्टर और नर्स नहीं
अस्पताल में बेड नहीं है, दवा नहीं है, सांस देने वाली हवा नहीं है इसके लिए हाहाकार मचा है, कोरोना का त्राहिमाम मचा है. डॉक्टर और नर्स नहीं तो क्या हुआ, इसके अभाव में भले ही मर जाए बिहार तो क्या हुआ, 'नीतीशे कुमार है'. राजनीति में सब है, बस बिहार के जवाब के लिए नहीं है.

कोरोना में बिगड़े सरकारी व्यवस्था का हाल यह है कि अस्पतालों में गैस खत्म होने तक पर सरकार के पास इंतजाम नहीं रहता है. विपक्ष का आरोप है कि सरकार ही बदइंतजामी की सबसे बड़ी वजह है. जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव ने आरोप लगाया है कि सरकार के लोग मिलकर व्यवस्था को बिगाड़ रहे हैं.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX

40 हजार में सांस वाली हवा
नीतीश कुमार जी यह सच्चाई है, पटना में भले ऑक्सीजन के नहीं होने की बात हो, लेकिन यह भी सही है कि 40 हजार में एक ऑक्सीजन सिलेंडर मिल रहा है. मैं इसका भुक्तभोगी हूं और गवाह भी. सरकारी अस्पताल में बेड नहीं है, प्राइवेट का रेट यही है जो आप देख रहे हैं. बड़ा सवाल यही है कि जब सबको यह पता है कि इस तरह की कालाबाजारी हो रही है तो रोक क्यों नहीं लग रही? बिहार के इस अमंगल के लिए कौन जिम्मेदार है, और वे कौन हैं जो इस व्यवस्था में अमृत पी रहे हैं?

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बेबस बिहार आज मौत पर भी सियासत के सुर ही सुन रहा है, क्योंकि सियासत तो होगी ही. कोरोना कब कहां दस्तक दे जाए इसकी गारंटी नहीं है. अस्पताल में बेड नहीं मिलेगा इसकी गारंटी है. ऑक्सीजन नहीं मिलेगी यह तय है. डॅाक्टर मिलेंगे गारंटी नहीं है. आप के जीवन का क्या होगा नहीं कहा जा सकता. इंतजामों के लिए सिर्फ उच्च स्तरीय बैठक कर रही है सरकार. इसके आगे क्या बोले बिहार.

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Last Updated : Apr 28, 2021, 4:02 PM IST
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