पटना: जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे से देश और दुनिया को बचाने का बीड़ा बच्चों ने उठा लिया है. बिहार के हजारों स्कूलों से 80 लाख से भी अधिक बच्चों ने संकल्प लिया है कि वे अपने परिजनों और परिचितों को खेतों में पुआल नहीं जलाने देने के लिए जागरूक करेंगे. बिहार ऐसे काम के लिए पहला राज्य बना है.
विशेष सत्र का आयोजन
कृषि विभाग की मदद से राज्य के सभी सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्रार्थना के बाद बच्चों ने सामूहिक रूप से खेतों में फसल अवशेष को नहीं जलाने देने की शपथ ली है. बाद में स्कूलों में विशेष सत्र आयोजित कर बच्चों को पराली जलाने के नुकसान के बारे में बताया गया. इसके लिए बच्चों के बीच चार पन्ने की रंगीन बुकलेट भी बांटे गए.
दोषियों पर कार्रवाई
प्रदूषण की समस्या न फैले इसके लिए बच्चों को पराली जलाने से रोका जा रहा है. इसके लिए सरकार लोगों को जगरूक भी कर रही है. सरकार की तरफ से कृषि यंत्रों पर अनुदान भी 80 फीसद तक कर दिया गया है. बुआई से कटाई और डंठल बांधने तक के यंत्रों की खरीदारी पर अनुदान दिया जा रहा है. बावजूद इसके अगर रोक नहीं लगती है तो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
सरकार भी गंभीर
सरकार भी इस समस्या को गंभीरता से ले रही है. सभी जिलों के डीएम को आगाह कर दिया गया है कि किसी भी तरह इस प्रवृति को रोकना है. आदेश दिया गया है कि प्रतिदिन रिपोर्ट भेजकर इसकी जानकारी दी जाए की कहां-कहां खेतों में पुआल जलाया गया. साथ ही, किसानों को रोकने के लिए प्रशासनिक स्तर पर क्या किया गया है.
उपला जलाने से नुकसान
कृषि विभाग के कर्मी के अनुसार अवशेष जलाने से जहां पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. वहीं धरती की 6 इंच भूमि में पोषक तत्व होता है जो फसल को बेहतर बनाने में सहायक होता है वह पोषक तत्व आग जलाने के बाद नष्ट हो जाता है. जिस कारण पैदावार काफी कम होती है. यह कानूनन रूप से अपराध भी है. कृषि विभाग के कर्मियों का बताना है कि मिट्टी में मित्र और शत्रु दोनों प्रकार के कीट पाए जाते हैं जो आग जलाने के बाद नष्ट हो जाता है. इसलिए फसल के अवशेष को खेतों में ना जला कर उसका उपयोग जैविक खाद बनाने में किया जा सकता है.
जैविक खाद बनाने का तरीका
किसान फसल के अवशेषों को अपने खेतों में न जला कर अगर उस अवशेष में पानी डालकर उसे संडा कर खाद के रूप में उपयोग करें तो उत्पादन में काफी बढ़ोतरी होगी. खाद बनाने के लिए अवशेषों में पानी डालकर और उसमें वेस्ट डी कंपोजर नामक केमिकल का उपयोग कर उसे जैविक खाद बनाया जाए और उसका उपयोग फसल में करने पर उत्पादन में काफी वृद्धि होती है. वह खेतों और फसलों के लिए काफी लाभदायक भी साबित होता है.
किसानों की शिकायत
अवशेष जलाने वाले किसानों ने कैमरे से बचते हुए ऑफ द रिकॉर्ड बताया कि वह ऐसा जानकारी के अभाव में कर रहे हैं. उन्हें यह पता नहीं कि अवशेष जलाने से वातावरण के साथ-साथ खेतों के लिए यह कितना नुकसानदेह होता है. इसके लिए कृषि विभाग की ओर से उन्हें अब तक जागरूक नहीं किया गया है. लिहाजा वह अवशेष को जलाकर उसे खाद के रूप में प्रयोग करने की बात कहते हैं. उन्हें यह भी नहीं मालूम कि सरकार की ओर से इसके लिए कठोर कानून भी बनाए गए हैं. लिहाजा जानकारी के अभाव में किसान अवशेषों को जलाने में जुटे हुए हैं. अगर इससे होने वाले नुकसान की सही जानकारी उन्हें दी जाती है या मिल गई है तो अब वह भविष्य में ऐसा नहीं करेंगे.