पटना: आज नवरात्रि 2023 का पांचवां दिन है. इस दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है. आचार्य रामशंकर दूबे बताते हैं कि स्कंद माता की पूजा अर्चना विधिपूर्वक करने से सुख समृद्धि के साथ-साथ संतान की प्राप्ति होती है. स्कंदमाता का स्वरूप बहुत ही प्यारा है. मां की चार भुजाएं हैं. जिसमें दो हाथों में कमल है. एक हाथ में कार्तिक के बाल रूप में बैठे हुए हैं और एक अन्य हाथ में मां आशीर्वाद देते हुए नजर आ रही हैं. माता सिंह पर सवार है लेकिन वह इस रूप में कमल में विराजमान है. स्कंद माता को श्वेत रंग प्रिय है. आचार्य कहते हैं कि मां की उपासना में श्वेत रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए और पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र धारण करके पूजा करें, जिससे कि माता अपने भक्तों पर असीम कृपा बनाए रखती हैं.
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क्या है मां स्कंदमाता की पूजा विधि?: आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि जो भी भक्त माता रानी की पूजा अर्चना करते हैं, उनको सुबह में उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए. उसके बाद गणेश जी की पूजा वंदन से शुरुआत करनी चाहिए. कलश की पूजा करें, इसके बाद मां दुर्गा और उनके स्वरूप की पूजा आरंभ करें. गंगाजल से अपने शरीर को शुद्ध करें इसके बाद माता को अक्षत पान पत्ता, कसैली, कुमकुम, सिंदूर, लौंग और इलायची चढ़ाएं. माता रानी को भोग में ऋतु अनुसार फल फूल चढ़ाएं. घी का दीपक जलाएं. धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें, दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंत में दुर्गा माता के स्कंद माता स्वरूप की आरती उतारें.
"जो भी भक्त सच्चे मन से भक्ति पूर्वक स्कंदमाता स्वरूप की पूजा अर्चना करते हैं. मां अपने भक्तों पर पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं. मां की उपासना से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और काम में तरक्की होती है"- रामशंकर दूबे, आचार्य
क्या है पौराणिक कथा?: रामशंकर दूबे ने बताया कि भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है. स्कंदमाता से पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. तारकासुर नाम का एक राक्षस था. जिसकी मृत्यु केवल शिवपुत्र से ही संभव था. तब मां पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कंद कार्तिकेय का दूसरा नाम को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करते हेतु स्कंद माता का रूप लिया. उन्होंने भगवान स्कंद को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था. कहा जाता है कि स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के पश्चात भगवान अस्कंद ने तारकासुर का वध किया था. इसलिए माता को स्कंद माता स्वरूप से पूजा की जाती है.
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