पटना: बिहार में लोग कोरोना (Corona) संक्रमण से डरे हुए हैं. लोग अभी इससे उबरे भी नहीं है कि अब फंगस (Fungus) का खतरा मंडराने लगा है. लगातार लोग इसकी चपेट में भी आ रहे हैं. आयुर्वेद के जानकारों का दावा है कि धूपन विधि से फंगस और बैक्टीरिया को खत्म किया जाता है, यह विधि लगभग 5 हजार साल पुरानी है.
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धूपन विधि से वायरस का खात्मा
धूपन विधि के माध्यम से बैक्टीरिया और फंगस को खत्म करने में काफी लाभकारी साबित होता है. पुराने समय में आयुर्वेद की धूपन विधि से ही लोग बैक्टीरिया और फंगस को खत्म करने का काम किया करते थे. यह आयुर्वेद की काफी पुरानी पद्धति है. बता दें कि आयुर्वेद में आंखों से नहीं देखे जा सकने वाले जीवाणु, विषाणु, कवक और अन्य सूक्ष्मजीवों को राक्षस, भूत, ग्रह, कृमि इत्यादि नामों से भी जाना जाता है.
5 हजार साल पुरानी पद्धति
ये सूक्ष्मजीव आयुर्वेद के धूपन विधि के माध्यम से नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इसे स्टेरलाइजेशन क्रिया भी कहते हैं. आयुर्वेद की इस धूपन विधि से क्रियाकल्प या उपक्रम किए जाने वाले स्थान जैसे ऑपरेशन थिएटर और समस्त चिकित्सालय को स्टेरलाइजेशन किया जाता है. यह काफी प्राचीन विधि मानी जाती है. बात दें कि आयुर्वेद में इसे धूपन के रूप में निर्देशित किया गया है. इससे सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं. साथ ही उनमें रोग बढ़ाने की क्षमता कम हो जाती है.
बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
इस क्रिया से शरीर में दुष्प्रभाव रहित रोगों से बचाव होता है. साथ ही अगर इसका धुंआ सांस के रास्ते से फेफड़ों में भी जाता है, तो औषधीय गुण से युक्त होने के कारण इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है. ये शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करता है. साथ ही बुखार इत्यादि लक्षणों से मुक्त करने में सहायक होता है.
''धूपन विधि काफी पुरानी विधि है और यह काफी लाभकारी साबित होती है. 8 तरह के तत्वों को मिलाकर यह धूपन विधि की जाती है. ये बैक्टीरिया को मारने में काफी लाभकारी साबित हुआ है. कई सारे आयुर्वेद कॉलेजों में धूपन विधि के माध्यम से आज भी अस्पतालों का स्टेरलाइजेशन किया जाता है. धूपन विधि आयुर्वेद की काफी लाभदायक विधि है. यह विधि लगभग 5 हजार साल पुरानी आयुर्वेदिक पद्धति है.''- डॉ. विजेन्द्र कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज पटना
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धूपन विधि में 8 तरह की अष्टक धूप
- निम्ब त्वक 1 भाग (2 किलोग्राम)
- कुष्ठ (कूठ) 1 भाग (2 किलोग्राम)
- वचा (वच) 1 भाग (2 किलोग्राम)
- सर्षप (सरसों) 1/4 भाग (500 ग्राम)
- गुग्गुलु 1/4 भाग (500 ग्राम)
- शहद 1/8 भाग (250 ग्राम)
- घृत 1/8 भाग (250 ग्राम)
- सैन्धव लवण 1/16 भाग (125 ग्राम)
बता दें कि कोरोना महामारी के दौर में एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर विवाद तेज है. एलोपैथ या फिर आयुर्वेद से कोरोना के इलाज को लेकर चल रहे विवाद पर पटना के राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के डॉक्टर ने बताया कि इस मसले पर विवाद गलत है.