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तालाब में म्यूजिकल फाउंटेन और बोटिंग का इंतजार कर रहे लोग, आवंटन के बावजूद गंदगी का अंबार

बोटिंग की सुविधा, मछली पालन और तालाब के किनारे फूलों की क्यारी का होना और बच्चों के खेलने के लिए झूले लगाना था. लेकिन नगर परिषद की घोर लापरवाही के कारण यह तालाब अपनी अस्तिव के लिए संघर्ष कर रहा है.

तालाब कूड़ेदान में तबदील
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Published : Mar 9, 2019, 8:26 PM IST

नवादा: नगर भवन परिसर स्थित तालाब जल संचयन के बजाय कूड़ेदान बनकर रह गया है. इस तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए कई पहल भी की जा चुकी हैं. लेकिन इसकी स्थिति जस की तस है.

5 साल पहले इस तालाब का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए 8 लाख रुपए आवंटित किए गए थे. जिसमें बोटिंग की सुविधा, मछली पालन और तालाब के किनारे फूलों की क्यारी का होना और बच्चों के खेलने के लिए झूले लगाना था. लेकिन नगर परिषद की घोर लापरवाही के कारण यह तालाब अपनी अस्तिव के लिए संघर्ष कर रहा है.

म्यूज़िकल फव्वारे भी थे

स्थानीय लोगों का कहना है कि एक समय में ये बड़की तालाब के नाम से जाना जाता था. इसके चारों तरफ सीढियां बनी हुई थी, यहां स्वच्छ पानी हुआ करता था. म्यूज़िकल फव्वारे भी लगाए गए थे लेकिन वो भी 15 दिनों तक चलने के बाद बंद हो गया.

तालाब कूड़ेदान में तबदील

नगर परिषद के अधिकारी ने नहीं दिया जवाब

पूर्व पार्षद सुरेश प्रसाद वर्मन का कहना है कि इस तालाब के लिए कुछ न कुछ पैसा हमेशा लगता रहता है. लेकिन कुछ भी काम नहीं हुआ है. वहीं नगर परिषद के अधिकारी अपनी व्यस्तता की दुहाई देकर कुछ भी बोलने से परहेज करते दिखे.

नवादा: नगर भवन परिसर स्थित तालाब जल संचयन के बजाय कूड़ेदान बनकर रह गया है. इस तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए कई पहल भी की जा चुकी हैं. लेकिन इसकी स्थिति जस की तस है.

5 साल पहले इस तालाब का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए 8 लाख रुपए आवंटित किए गए थे. जिसमें बोटिंग की सुविधा, मछली पालन और तालाब के किनारे फूलों की क्यारी का होना और बच्चों के खेलने के लिए झूले लगाना था. लेकिन नगर परिषद की घोर लापरवाही के कारण यह तालाब अपनी अस्तिव के लिए संघर्ष कर रहा है.

म्यूज़िकल फव्वारे भी थे

स्थानीय लोगों का कहना है कि एक समय में ये बड़की तालाब के नाम से जाना जाता था. इसके चारों तरफ सीढियां बनी हुई थी, यहां स्वच्छ पानी हुआ करता था. म्यूज़िकल फव्वारे भी लगाए गए थे लेकिन वो भी 15 दिनों तक चलने के बाद बंद हो गया.

तालाब कूड़ेदान में तबदील

नगर परिषद के अधिकारी ने नहीं दिया जवाब

पूर्व पार्षद सुरेश प्रसाद वर्मन का कहना है कि इस तालाब के लिए कुछ न कुछ पैसा हमेशा लगता रहता है. लेकिन कुछ भी काम नहीं हुआ है. वहीं नगर परिषद के अधिकारी अपनी व्यस्तता की दुहाई देकर कुछ भी बोलने से परहेज करते दिखे.

Intro:नवादा। कहते हैं जल ही जीवन है। और इसलिए हमारे पूर्वजों ने जल संचयन के लिए तालाब का निर्माण का निर्माण किया। यह बात भी सच हैं कि उस वक्त चापाकल भी किसी इक्के-दुक्के जगहों पर मिलती थी। आज के समय उत्पन्न हुए जल संकट में वहीं कहीं तालाब वरदान साबित हो रही है। लेकिन, शहर के मध्य एक विशाल तालाब जल संचयन के वजाय कूड़े फेंकने के पंपिंग जोन बनकर रह गयी। नगर भवन परिसर स्थित इस तालाब को कई बार सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार की बातें की गई। मोठे पैसे भी इसपे खर्च किए गए लेकिन मौजूदा हालात देखकर तो यही लगता है कि यह सिर्फ और सिर्फ यह तालाब सोने का अंडा देनेवाली तालाब बनकर रह गई है। तालाब के नाम पर लूट का नमूना अगर देखना हो तो एकबार इस तालाब को देखा जा सकता है।


Body:दिनों-दिनों सिकुड़ता जा रहा है यह तालाब

कभी एकड़ों में फैली हुआ करती थी यह तालाब आज अपनी अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में है। कहा जाता है कि इसमें खुरी नदी के का पानी को जोड़ा गया था।

8 लाख की लागत से हुई थी सौंदर्यीकरण का काम,आज नगण्य

कहा जाता है कि, 2014 के मार्च में इस तालाब का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए 8 लाख रुपए आवंटित किए गए थे। जिसमें, बोटिंग की सुविधा, मछली पालन और तालाब के किनारे फूलों की क्यारी का होना और बच्चों के खेलने के लिए झूले आदि लगाना था। लेकिन नगर परिषद की घोर लापरवाही के कारण आज यह तालाब अपनी अस्तिव के लिए संघर्षरत है।

क्या कहते हैं लोग

स्थानीय नमूना जी का कहना है, जहां पर टाउन हॉल है एक समय में बड़की तालाब के नाम से जाना जाता था इसके चारों तरफ़ सीढियां बनी हुई थी, स्वच्छ पानी हुआ करता था, सीमेंटेड कुर्सियां बनी हुई थी हमलोग बचपन में वहां बैठा करते थे। बाद में वहां म्यूज़िकल फव्वारे भी लगाए गए थे लेकिन वो भी 15 दिनों तक चलने के बाद बंद हो गया। जब बोले तो कहा गया कि जब सभा या कोई आयोजन होगा तब चलेगा। आज यह तालाब कूड़े का डंपिंग जोन बनकर रह गया है। यह सब प्रशासन की लापरवाही से हुआ है। साथ ही इसमें हमारे लोगों की भी कुछ गलतियां है।

अविनाश कुमार का कहना है कि नागरनके बीचो-बीच इस तालाब का सौंदर्यीकरण हो जाता तो हमलोगो के लिए अच्छा होता। उठने बैठने के लिए सही होता।

वहीं, पूर्व पार्षद सुरेश प्रसाद वर्मन का कहना है कि, इसमें कुछ न कुछ पैसा हमेशा लगता रहता है लेकिन वैसा कुछ भी नहीं बना की यहां के लोग शैर-सपाटा कर सके। अभी जो है वो भी नगर परिषद की भेंट चढ़ गई है। पता नहीं इसमें पैसा लगता है या नहीं लगता है वो तो देख ही रहे हैं क्या स्थिति है।

वहीं, नगर परिषद के जिम्मेदार अधिकारी अपनी व्यस्तता की दुहाई देकर कुछ भी बोलने से परहेज कर रहे हैं।


Conclusion:तालाब की मौजूदा हालात को देखकर यही सवाल उठता हैं कि क्या यह तालाब जल संरक्षण के वजाय प्रशासन के लिए सोने का अंडा देने के लिए ही रह गई है?
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