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बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरस रहे लोग, बदतर स्थिति में रहने को हैं मजबूर - nawad

नवादा के भोलानगर गांव के दलित बस्ती में लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. इस कारण लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

भोलानगर गांव
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Published : Mar 28, 2019, 9:42 PM IST

नवादा: जिले के रोह प्रखंड स्थित भोलानगर गांव के दलित बस्ती के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. यहां सरकार का दलित प्रेम खोखला साबित हो रहा है. केंद्र हो या राज्य सरकार सभी शौचमुक्त गांवों में बड़े-बड़े आंकड़े दिखाते हैं. लेकिन, यहां की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं.

इस गांव तक जाने के लिए सड़कें नहीं है. अगर है भी तो उसमे बड़े-बड़े गढ्ढे हैं. तकरीबन 1000 की आबादी वाले इस मोहल्ले में प्राथमिक विद्यालय तो दूर बच्चों के लिए एक आंगनबड़ी केंद्र भी नहीं है.

दलित बस्ती की बदहास स्थिती

घरों में नहीं है शौचालय
वहीं, दूसरी ओर यह भोलानगर के दलित के पास एक शौचालय तक नहीं है. यहां के निवासी बिरजू मांझी के अनुसार यहां किसी के घर में शौचालय नहीं है. मुखिया से अगर शौचालय बनाने की बात कहते हैं तो उनका कहना है कि पहले शौचालय बनाओ तब हम पैसा देंगें.

पानी की भी है समस्या
वहीं, पानी की समस्या पर मांझी ने बताया कि यहां के लोग पानी बगैर मर रहे हैं. खेत में फसल पटवन के लिए जो बोरिंग चलता है. उस पानी को घड़ा और बाल्टी में पानी भर कर गांववाले अपना काम चलाते हैं. बहरहाल, सरकार विकास के कितने भी दावे कर ले मगर गांव में अभी भी स्थिती बद से बदतर है. लोगों को शौचालय से लेकर पानी तक की समस्या झेलना पड़ रहा है.

नवादा: जिले के रोह प्रखंड स्थित भोलानगर गांव के दलित बस्ती के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. यहां सरकार का दलित प्रेम खोखला साबित हो रहा है. केंद्र हो या राज्य सरकार सभी शौचमुक्त गांवों में बड़े-बड़े आंकड़े दिखाते हैं. लेकिन, यहां की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं.

इस गांव तक जाने के लिए सड़कें नहीं है. अगर है भी तो उसमे बड़े-बड़े गढ्ढे हैं. तकरीबन 1000 की आबादी वाले इस मोहल्ले में प्राथमिक विद्यालय तो दूर बच्चों के लिए एक आंगनबड़ी केंद्र भी नहीं है.

दलित बस्ती की बदहास स्थिती

घरों में नहीं है शौचालय
वहीं, दूसरी ओर यह भोलानगर के दलित के पास एक शौचालय तक नहीं है. यहां के निवासी बिरजू मांझी के अनुसार यहां किसी के घर में शौचालय नहीं है. मुखिया से अगर शौचालय बनाने की बात कहते हैं तो उनका कहना है कि पहले शौचालय बनाओ तब हम पैसा देंगें.

पानी की भी है समस्या
वहीं, पानी की समस्या पर मांझी ने बताया कि यहां के लोग पानी बगैर मर रहे हैं. खेत में फसल पटवन के लिए जो बोरिंग चलता है. उस पानी को घड़ा और बाल्टी में पानी भर कर गांववाले अपना काम चलाते हैं. बहरहाल, सरकार विकास के कितने भी दावे कर ले मगर गांव में अभी भी स्थिती बद से बदतर है. लोगों को शौचालय से लेकर पानी तक की समस्या झेलना पड़ रहा है.

Intro:नवादा। जिले के रोह प्रखंड स्थित भोलानगर गांव के दलित बस्ती के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। यहां सरकार के दलित प्रेम खोखला साबित हो रहा है। केंद्र हो या राज्य सरकार सभी शौचमुक्त गांवों बड़े-बड़े आंकड़े दिखाते हैं लेकिन, यहां की ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही बयां करती हैं।


Body:इस गांव तक जाने के लिए सड़कें नहीं है अगर है भी तो उसमे बड़े-बड़े गढ्ढे हैं। तक़रीबन 1000 की आबादी वाले इस मोहल्ले में छोटे-छोटे नैनिहालों के एक आंगनबड़ी केंद्र भी नहीं है प्राथमिक विद्यालय तो भूल ही जाइए। कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन को लेकर चंद दिनों में करोड़ों की लागत से एक दलित बस्ती को चकाचक कर दिया गया वहीं, दूसरी ओर यह भोलानगर के दलित के पास एक शौचालय तक नहीं है। मुहल्ले के बिरजू मांझी कहते हैं यहां किसी के घर में शौचालय नहीं है। है भी तो दो से तीन घर में। सरकार देता है भी तो उधर चपत कर जाता है। मुखिया कहता है पहले शौचालय बनाओ तब हम पैसा देंगें। हमलोग कहाँ से बनावेंगें बोलिए। वहीं, सौदागर मांझी को पानी को लेकर चिंता है कहते हैं, हमलोग पानी बग़ैर मर रहे हैं। खेत में फसल पटवन के लिए बोरिंग चलता है तो वहीं घैला, तसला और बाल्टी लेकर पानी भरने जाते हैं तब जाकर रातभर वही चलता है। नल नहीं मिला है जो मिला भी है तो होशियार उसे सब अपना-अपना दरवाज़े पर गरबा लिया। वहीं, विष्णुदेव मांझी को बच्चों की शिक्षा की चिंता है वो कहते हैं, हमारे यहां स्कूल नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं। बहुत परेशानी है।

जब बच्चे को पढ़ाई को लेकर एक महिला से सवाल किया तो उसने कहा, स्कूल रहेगा तब न पढ़ेगा। बरसात में सड़क पर घुटना भर कादो(कीचड़) रहता है। वहीं, संघी देवी गैस चूल्हा नहीं मिलने की बात कहती है। जब चूल्हा लेने जाते हैं कहता है आधार कार्ड दो, पैसा दो। तो अपना चूल्हे पर ही खाना पकाते हैं।


Conclusion:भलेहिं देश कितना भी तरक्क़ी कर ले लेकिन जब तक गरीबों को समुचित सरकारी सुविधाएं नहीं मिल जाती तब तरक्क़ी की बातें करना बेईमानी होगी। नेता ऐसे ही आते रहेंगे वोट लेकर जाते रहेंगे और देश के गरीब की स्थिति जस की तस बनी रहेगी।
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