नालंदा: बिहार के नालंदा में कद्दू की एक अलग किस्म उगाई जा रही है. जो सेहत के लिए रामबाण है. नालंदा में मौजूद एक कद्दू का पेड़ जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. लोग इसे विदेशी कद्दू भी कह रहे हैं. इस बात से लोग हैरान हैं कि यह विदेशी कद्दू पेड़ में फल रहा है.
सालों भर पेड़ पर फलता है ये कद्दूः फलता यूं तो कद्दू लत्ती में होता है और फलता है, जिससे लोग विभिन्न प्रकार की सब्जी और दूसरे डिशेज बनाते हैं और उसे चाव से खाते हैं. नालंदा में ये कद्दू पेड़ पर साल भर फलता है और लोग इसे देखने के लिए पहुंचते हैं. इसे नर्सरी की सजावट के लिए लगाया गया था लेकिन इसे लोग अब खरीदकर ले जाते हैं, जो औषधीय पौधों के तौर पर बेचते हैं, साथ ही खाने में भी इसका इस्तेमाल करते हैं.
कद्दू के पेड़ की ऊंचाई 20 से 30 फीट हैः यह कद्दू स्वाद में बिल्कुल अलग है. जिसे महीने में सिर्फ़ एक से दो बार खाने में इस्तेमाल करते हैं. यह कद्दू ज़िला मुख्यालय बिहारशरीफ़ स्थित मंडलकारा के निकट भावना नर्सरी में लगता है. इस पेड़ की ऊंचाई 20 से 30 फीट ऊंची होती है. यह कद्दू गोलाकार और 20 इंच गोलाई में है. जिसकी जानकारी किसान सुरेंद्र राम ने दी. उन्होंने आगे बताया कि कद्दू का पेड़ 20 साल से है. जो यहां के लोगों के लिए बिल्कुल अलग और खास है.
महिलाओं के लिए काफी लाभदायक है यह कद्दूः इस कद्दू को कलाबस कहा जाता है. मूल रूप से यह अमेरिका और उसके आसपास के देशों में पाया जाता है. इसे सेंट लूसिया का राष्ट्रीय पौधा भी कहा जाता है. विदेशी लोग बड़े चाव से इस फल को खाते हैं. अधिक मात्रा में आयरन होने की वजह से महिलाओं के लिए यह फल काफी लाभदायक है. रक्त की कमी एवं कुपोषित को भी खिलाया जाता है. यह भी कहा जाता है कि इसके रस की तासीर ठंडी होती है, जिसे खाने से दिमाग तथा शरीर को आराम मिलता है.
पारंपरिक दवाइयों में होता है इसका इस्तेमालः इस पेड़ की खासियत आपको बता दें कि यह दूर से देखने पर लगता है कि शायद किसी फल का पेड़ होगा. इसके तनों की मोटाई भी फलदार पेड़ों की तरह ही है. यह डालियों और घनी पत्तियों से भरा रहता है. इसकी पत्तियां अमरूद की पत्तियों जैसी दिखती हैं. यह कोई आम कद्दू नहीं है, इसका इस्तमाल पारंपरिक दवाई ओर मधुमेह के नियंत्रण में होता है.