नवादा: भारतीय संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य कुम्हार समुदाय के उत्पाद के बिना आज भी पूरा नहीं होता. लेकिन आज आधुनिकता की दौर में मानो कुम्हार के धंधे पर ग्रहण लग गया है. एक समय था जब लोग दीपावली के मौके पर मिट्टी का दीये जलाए जाते थे. अब लोगों पर आधुनिकता हावी हो गई है. मिट्टी का दीया अब लोगों के लिए भूली बिसरी यादें रह गईं हैं.
सनातन धर्म में मिट्टी के दीये बनाने की परंपरा को जीवंत रखने वाले कुम्हार जाति आज चाइनीज लाइट के धड़ल्ले से बिक्री के वजह से मिट्टी के दिये नहीं बेच पा रहे हैं. इस कारण इनके बच्चे पुश्तैनी धंधा से मुंह मोड़ने लगे हैं.
पुश्तैनी धंधा घाटे का सौदा
गोंदापुर में कुम्हार समुदाय का पुश्तैनी धंधा घाटे का सौदा बन गया है. नई पीढ़ी इस धंधे से कोसों दूर भाग रहे हैं. लागत और मेहनत के हिसाब से उन्हें अच्छी कमाई नहीं हो रही.
पुश्तैनी धंधे आधुनिकता का ग्रहण
दिवाली के त्यौहार के लिए दिए बनाने का कार्य 2 महीने पहले से शुरू हो जाता है. इसके लिए पूरे परिवार मिलकर दिया बनाने में लग जाते हैं. लेकिन बाजार में घटते मिट्टी के दीए की डिमांड से विवश होकर अब अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़ने के लिए मजबूर हैं.