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दिपावली को लेकर दीयों का निर्माण तेजी, पढ़िए क्या कहा कुम्हार ने?

कुम्हारों का कहना है कि दिपावली में मिट्टी के दीये, बर्तन, प्याली और कुछ खिलौने बनते हैं. लेकिन, इसकी बिक्री कम हो गई है.

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Published : Oct 16, 2019, 3:53 AM IST

कुम्हार

नालंदा: दिवाली आते ही दीपों का कोराबार शुरू हो गया है. मिट्टी के दीये के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों का निर्माण कार्य में तेजी हो गया है. लेकिन, कुम्हारों के मुताबिक दीयों की बिक्री सिर्फ दिपावली में होती है. जिससे कुम्हार परेशान हैं. उनका कहना है कि बेहतर जिन्दगी के लिए वह सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं.

कुम्हारों का कहना है कि दिपावली में मिट्टी के दीये, बर्तन, प्याली और कुछ खिलौने बनते हैं. लेकिन, इसकी बिक्री कम हो गई है. उन्होंने कहा कि लोग अब दीये की जगह मोमबत्ती जलाना पसंद कर रहे हैं. इस कारण उनको उचित लाभ नहीं मिल पाता है.

nalanda
मिट्टी के दीये

क्या कहते हैं कुम्हार?
कुम्हारों ने कहा कि मिट्टी की कीमत बढ़ गई है. जहां पहले 800 रुपया ट्रैक्टर मिट्टी मिलता था, अब 1300 रुपया ट्रैक्टर हो गया है. उन्होंने बढ़ती महंगाई को लेकर भी कहा कि महंगाई के बढ़ने के बावजूद दीयों की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई. हालांकि, कुम्हारों का यह भी कहना है कि प्लास्टिक के बैन होने से मिट्टी के बर्तन में बढ़ोतरी हो सकती है.

पेश है रिपोर्ट

'सरकार से नहीं मिली सहायता'
कुम्हारों ने बताया कि सरकार की तरफ से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि सरकार से अनुदान भी नहीं मिल रहा है जिससे अपना जीवन यापन सुधार सके. उनका यह भी कहना है कि जगह की कमी होने के कारण वह अपना व्यपार भी नहीं बढ़ा पा रहे हैं.

नालंदा: दिवाली आते ही दीपों का कोराबार शुरू हो गया है. मिट्टी के दीये के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों का निर्माण कार्य में तेजी हो गया है. लेकिन, कुम्हारों के मुताबिक दीयों की बिक्री सिर्फ दिपावली में होती है. जिससे कुम्हार परेशान हैं. उनका कहना है कि बेहतर जिन्दगी के लिए वह सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं.

कुम्हारों का कहना है कि दिपावली में मिट्टी के दीये, बर्तन, प्याली और कुछ खिलौने बनते हैं. लेकिन, इसकी बिक्री कम हो गई है. उन्होंने कहा कि लोग अब दीये की जगह मोमबत्ती जलाना पसंद कर रहे हैं. इस कारण उनको उचित लाभ नहीं मिल पाता है.

nalanda
मिट्टी के दीये

क्या कहते हैं कुम्हार?
कुम्हारों ने कहा कि मिट्टी की कीमत बढ़ गई है. जहां पहले 800 रुपया ट्रैक्टर मिट्टी मिलता था, अब 1300 रुपया ट्रैक्टर हो गया है. उन्होंने बढ़ती महंगाई को लेकर भी कहा कि महंगाई के बढ़ने के बावजूद दीयों की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई. हालांकि, कुम्हारों का यह भी कहना है कि प्लास्टिक के बैन होने से मिट्टी के बर्तन में बढ़ोतरी हो सकती है.

पेश है रिपोर्ट

'सरकार से नहीं मिली सहायता'
कुम्हारों ने बताया कि सरकार की तरफ से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि सरकार से अनुदान भी नहीं मिल रहा है जिससे अपना जीवन यापन सुधार सके. उनका यह भी कहना है कि जगह की कमी होने के कारण वह अपना व्यपार भी नहीं बढ़ा पा रहे हैं.

Intro:नालंदा। दीपों का त्योहार दीपावली की तैयारियां शुरू हो गई है। जिले में दीपावली को लेकर मिट्टी के बर्तन का निर्माण काम तेजी से शुरू कर दिया गया है। दीपावली में मिट्टी के बने दिए के अलावा चुका, प्याली, खिलौना की मांग बढ़ जाती है । दीयों से जहां घरों को जगमग किया जाता है वहीं मिट्टी के बने अन्य सामग्रियों से का इस्तेमाल पूजा-पाठ और बच्चों के खेलने में काम आता है।
हालांकि मिट्टी के बर्तन निर्माण में जुटे कारीगर को विशेष लाभ नही मिल पाता है जिससे कुम्हारों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इनका कहना है कि मिट्टी का भाव बाजार में काफी बढ़ गया है। पहले जहां 800 रुपैया ट्रेक्टर मिलता था वही आज 1300 रुपैया ट्रेक्टर हो गया है। वही महंगाई भी काफी बढ़ गयी है। लेकिन बाजार में दिया आज भी 50 पैसा से लेकर 2 रुपैया ही बिक पाता है।


Body:हालांकि इन्हें उम्मीद है कि बाजार में प्लास्टिक के प्रतिबंध के कारण मिट्टी के बर्तन के समान में वृद्धि हो सकती है। उम्मीद जताया कि मिट्टी के समान की मांग बढ़ने से उन्हें लाभ मिलेगा।
हालांकि सरकार के द्वारा किसी प्रकार की मदद नहीं मिलने से काफी निराश हैं । इनका कहना है कि सरकार द्वारा अब तक किसी प्रकार का कोई अनुदान उन लोगों को नहीं दिया गया जिससे वे लोग अपने जीवन यापन में सुधार ला सके। इतना ही नहीं उन लोगों के समक्ष निर्माण किए गए मिट्टी के बर्तनों को रखने के लिए कोई जगह नहीं है । जगह के अभाव के कारण काम कम करते हैं और छोटे-छोटे सामानों का ही निर्माण करा पाते हैं । सरकार द्वारा अगर इन्हें मदद दी जाए और जगह मुहैया कराई जाए तो यह लोग भी खुद को साबित करने में पीछे नहीं हटेंगे।
बाइट। रंजीत पंडित, कुम्हार
बाइट। सरयुग प्रसाद, कुम्हार
बहते। मंजू देवी, कुम्हार


Conclusion:
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