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नालंदा: पौधों को रक्षासूत्र बांध लिया गया सुरक्षा का संकल्प

पर्यावरण प्रेमी अरुण बिहारी शरण और धीरज कुमार ने कहा कि इस परिस्थितियों में भी त्योहार मानवीय जीवन में सुखद परिवर्तन लाते हैं और उसमें हर्षोल्लास व नवीनता का संचार करते हैं.

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Published : Aug 3, 2020, 5:22 PM IST

नालंदा: बिहारशरीफ के बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में बिहारी उद्यान में पर्यावरण प्रेमियों ने एकत्र होकर प्रकृति के साथ संस्कृति की रक्षा के लिए पेड़ों को रक्षासूत्र बांध कर उनकी रक्षा का संकल्प लिया. ये पर्व कोरोना वायरस संक्रमण के चलते सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए मनाया गया.

प्रकृति की रक्षा का पर्व
इस मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि रक्षाबंधन महज भाई-बहन के स्नेह का पर्व न होकर संपूर्ण प्रकृति की रक्षा का पर्व है. आज जब हम रक्षाबंधन पर्व को एक नये रूप में मनाने की बात करते हैं तो हमें समाज, परिवार और देश से भी परे जिसे बचाने की जरूरत है, वह है प्रकृति. शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति प्रकृति के रक्षण के लिए पौधे लगाता है और उन्हें बचाता है. वह दीर्घकाल तक स्वर्ग में निवास करते हुए इंद्र के समान सुख भोगता है.

वृक्षों की रक्षा का संकल्प
दरअसल, पेड़-पौधे बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के वातावरण में स्वयं को अनुकूल रखते हुए मनुष्य जाति को जीवन दे रहे होते हैं. ऐसे में इस धरा को बचाने के लिए राखी के दिन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना भी बेहद जरूरी हो गया है. देखा जाए तो वृक्षों को देवता मानकर उनकी पूजा करने में मानव जाति का स्वार्थ निहित रहा है. इसलिए जो प्रकृति आदिकाल से हमें निस्वार्थ भाव से केवल देती ही आ रही है, उसकी रक्षा के लिए भी हमें इस दिन कुछ तो करना ही चाहिए.

धरती पर हरियाली लाना अहम जिम्मेदारी
इस दौरान सचिव राकेश बिहारी शर्मा ने लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि वृक्षों से ही मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण प्राणवायु प्राप्त होती है. इसलिए वृक्षों की रक्षा हम सभी की अहम जिम्मेदारी है. पर्यावरण सुरक्षा और सजगता आदिम युग से है. आदिवासी लोग हरे-भरे पेड़ों की पूजा करते हैं और कामना की जाती है कि धरती की हरियाली बनी रहे. त्योहार सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं व पूर्व संस्कारों पर आधारित होते हैं. हमें यदि पर्यावरण बचना है तो धरती पर पेड़ लगाना ही होगा. इस दौरान पर्यावरण प्रेमी सविता बिहारी, स्वाति कुमारी, विकास कुमार, आशीष कुमार सहित सुजल कुमार उपस्थित रहे.

नालंदा: बिहारशरीफ के बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में बिहारी उद्यान में पर्यावरण प्रेमियों ने एकत्र होकर प्रकृति के साथ संस्कृति की रक्षा के लिए पेड़ों को रक्षासूत्र बांध कर उनकी रक्षा का संकल्प लिया. ये पर्व कोरोना वायरस संक्रमण के चलते सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए मनाया गया.

प्रकृति की रक्षा का पर्व
इस मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि रक्षाबंधन महज भाई-बहन के स्नेह का पर्व न होकर संपूर्ण प्रकृति की रक्षा का पर्व है. आज जब हम रक्षाबंधन पर्व को एक नये रूप में मनाने की बात करते हैं तो हमें समाज, परिवार और देश से भी परे जिसे बचाने की जरूरत है, वह है प्रकृति. शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति प्रकृति के रक्षण के लिए पौधे लगाता है और उन्हें बचाता है. वह दीर्घकाल तक स्वर्ग में निवास करते हुए इंद्र के समान सुख भोगता है.

वृक्षों की रक्षा का संकल्प
दरअसल, पेड़-पौधे बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के वातावरण में स्वयं को अनुकूल रखते हुए मनुष्य जाति को जीवन दे रहे होते हैं. ऐसे में इस धरा को बचाने के लिए राखी के दिन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना भी बेहद जरूरी हो गया है. देखा जाए तो वृक्षों को देवता मानकर उनकी पूजा करने में मानव जाति का स्वार्थ निहित रहा है. इसलिए जो प्रकृति आदिकाल से हमें निस्वार्थ भाव से केवल देती ही आ रही है, उसकी रक्षा के लिए भी हमें इस दिन कुछ तो करना ही चाहिए.

धरती पर हरियाली लाना अहम जिम्मेदारी
इस दौरान सचिव राकेश बिहारी शर्मा ने लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि वृक्षों से ही मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण प्राणवायु प्राप्त होती है. इसलिए वृक्षों की रक्षा हम सभी की अहम जिम्मेदारी है. पर्यावरण सुरक्षा और सजगता आदिम युग से है. आदिवासी लोग हरे-भरे पेड़ों की पूजा करते हैं और कामना की जाती है कि धरती की हरियाली बनी रहे. त्योहार सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं व पूर्व संस्कारों पर आधारित होते हैं. हमें यदि पर्यावरण बचना है तो धरती पर पेड़ लगाना ही होगा. इस दौरान पर्यावरण प्रेमी सविता बिहारी, स्वाति कुमारी, विकास कुमार, आशीष कुमार सहित सुजल कुमार उपस्थित रहे.

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