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मुजफ्फरपुर: नील की ये फैक्ट्री आज भी दिलाती है स्वतंत्रता आंदोलन की याद

उत्तर बिहार के तमाम जिलों में नील की खेती जबरन कराई जाती थी. जिसके बाद अंग्रेज बड़गांव स्थित अपनी फैक्ट्री में उसे बनवाने के लिए लाया करते थे.

फैक्ट्री का अवशेष
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Published : Apr 28, 2019, 8:24 AM IST

Updated : Apr 28, 2019, 1:14 PM IST

मुजफ्फपुर: तिरहुत में जंग-ए-आजादी की नींव वर्ष 1857 में ही पड़ गई थी. मुजफ्फरपुर जिले का बड़गांव इसका केंद्र बना. 1857 में बड़गांव के किसान नील की खेती करते थे. वहीं, अंग्रेज किसानों को काफी प्रताड़ित करते थे. ब्रिटिश कानून के खिलाफ बड़गांव के किसानों ने बिगुल फूंक दिया, विरोध के आरोप में दरोगा वारिस अली समेत 28 सपूतों को काला पानी की सजा दी गई. इस गांव में अंग्रेजों की कोठी और नील की फैक्ट्री आज भी स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाती है.

जबरन कराई जाती थी नील की खेती
देश जब अंग्रेजी हुकूमत के पैरों तले सिसक रहा था. कई हिस्सों में छिटपुट विरोध के स्वर उभरने लगे थे. ठीक उसी समय तिरहुत में आजादी की जंग की न्यू युवा किसानों ने रखी थी. उत्तर बिहार के तमाम जिलों में नील की खेती जबरन कराई जाती थी. जिसके बाद अंग्रेज बड़गांव स्थित अपनी फैक्ट्री में उसे बनवाने के लिए लाया करते थे. उसके अत्याचार से बड़गांव के किसान व्यथित थे. ऐसे में बड़गांव के युवा किसानों ने विद्रोह कर दिया. घोड़े पर खेती का निरीक्षण करने आए अंग्रेज अधिकारी को वहां की युवाओं ने जमीन पर पटक दिया था. ऐसी कई यातनाएं अंग्रेजों द्वारा दी गई थी.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

16 सपूतों को दी गई थी काला पानी की सजा
किसानों की लड़ाई में पास के बरूराज थाना के तत्कालीन दरोगा वारिस अली खान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. बाद में अंग्रेजों ने दरोगा वारिस अली खान को फांसी की सजा दे दी. वहीं, गांव के 16 सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई. इनके अलावा तिरहुत जिले के 12 और सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई. जिसमें से कई सपूतों ने सजा काटते-काटते दम तोड़ दिया.

फैक्ट्री का अवशेष आज भी है मौजूद
अंग्रेजों की क्रूरता और किसानों से उनकी जंग की गवाह बनी नील की उस ऐतिहासिक फैक्ट्री का अवशेष आज भी गांव में मौजूद है. वह कोठी भी अपने मूल रूप से गांव में खड़ी है जिसमें अंग्रेज रहा करते थे. देश और दुनिया को यह बताने का पक्का सबूत है कि अंग्रेजों ने यहां कितने जुल्म किए हैं.

शहीद परिवार के लोगों की हालत आज भी खराब
हालांकि, आज भी इस गांव के शहीद परिवार के लोगों की स्थिति काफी खराब है. मूलभूत सुविधाओं से आज भी यह लोग दूर हैं. किसी के घर में शौचालय नहीं है, तो किसी का घर नहीं है कोई बीमार है, सरकार पर सवाल उठना लाजमी है.

मुजफ्फपुर: तिरहुत में जंग-ए-आजादी की नींव वर्ष 1857 में ही पड़ गई थी. मुजफ्फरपुर जिले का बड़गांव इसका केंद्र बना. 1857 में बड़गांव के किसान नील की खेती करते थे. वहीं, अंग्रेज किसानों को काफी प्रताड़ित करते थे. ब्रिटिश कानून के खिलाफ बड़गांव के किसानों ने बिगुल फूंक दिया, विरोध के आरोप में दरोगा वारिस अली समेत 28 सपूतों को काला पानी की सजा दी गई. इस गांव में अंग्रेजों की कोठी और नील की फैक्ट्री आज भी स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाती है.

जबरन कराई जाती थी नील की खेती
देश जब अंग्रेजी हुकूमत के पैरों तले सिसक रहा था. कई हिस्सों में छिटपुट विरोध के स्वर उभरने लगे थे. ठीक उसी समय तिरहुत में आजादी की जंग की न्यू युवा किसानों ने रखी थी. उत्तर बिहार के तमाम जिलों में नील की खेती जबरन कराई जाती थी. जिसके बाद अंग्रेज बड़गांव स्थित अपनी फैक्ट्री में उसे बनवाने के लिए लाया करते थे. उसके अत्याचार से बड़गांव के किसान व्यथित थे. ऐसे में बड़गांव के युवा किसानों ने विद्रोह कर दिया. घोड़े पर खेती का निरीक्षण करने आए अंग्रेज अधिकारी को वहां की युवाओं ने जमीन पर पटक दिया था. ऐसी कई यातनाएं अंग्रेजों द्वारा दी गई थी.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

16 सपूतों को दी गई थी काला पानी की सजा
किसानों की लड़ाई में पास के बरूराज थाना के तत्कालीन दरोगा वारिस अली खान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. बाद में अंग्रेजों ने दरोगा वारिस अली खान को फांसी की सजा दे दी. वहीं, गांव के 16 सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई. इनके अलावा तिरहुत जिले के 12 और सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई. जिसमें से कई सपूतों ने सजा काटते-काटते दम तोड़ दिया.

फैक्ट्री का अवशेष आज भी है मौजूद
अंग्रेजों की क्रूरता और किसानों से उनकी जंग की गवाह बनी नील की उस ऐतिहासिक फैक्ट्री का अवशेष आज भी गांव में मौजूद है. वह कोठी भी अपने मूल रूप से गांव में खड़ी है जिसमें अंग्रेज रहा करते थे. देश और दुनिया को यह बताने का पक्का सबूत है कि अंग्रेजों ने यहां कितने जुल्म किए हैं.

शहीद परिवार के लोगों की हालत आज भी खराब
हालांकि, आज भी इस गांव के शहीद परिवार के लोगों की स्थिति काफी खराब है. मूलभूत सुविधाओं से आज भी यह लोग दूर हैं. किसी के घर में शौचालय नहीं है, तो किसी का घर नहीं है कोई बीमार है, सरकार पर सवाल उठना लाजमी है.

Intro:तिरहुत में जंगे आजादी की नीव वर्ष 1857 में ही पड़ गई थी मुजफ्फरपुर जिला का बड़गांव गांव इसका केंद्र बना 1857 में बड़गांव के किसान नील की खेती करते थे वही अंग्रेज किसानों को काफी प्रताड़ित करते थे वे ब्रिटिश कानून के खिलाफ बड़गांव के किसान ने बिगुल फूंक दिया विरोध के आरोप में दरोगा वारिस अली समेत 28 सपूतों को काला पानी की सजा दी गई इस गांव में अंग्रेजों की कोठी और नील की फैक्ट्री आज भी स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाती है

देश जब अंग्रेजी हुकूमत के पैरों तले सिसक रहा था कई हिस्सों में छिटपुट विरोध के स्वर उभरने लगे थे ठीक उसी समय तिरहुत में आजादी की जंग की न्यू युवा किसानों ने रख दिया था बता दे कि उत्तर बिहार के तमाम जिलों में नील की खेती जबरन कराया जाता था जिसके बाद अंग्रेज बड़गांव स्थित अपनी फैक्ट्री में उसे बनवाने के लिए लाया करते थे उसके अत्याचार से बड़गांव के किसान व्यथित थे ऐसे में बड़गांव के युवा किसानों ने विद्रोह कर दिया घोड़े पर खेती का निरीक्षण करने आए अंग्रेज अधिकारी को वहां की युवाओं ने जमीन पर पटक दिया

किसानों की लड़ाई में पास के बरूराज थाना के तत्कालीन दरोगा वारिस अली खान भी बढ़ चढ़ के हिस्सा लिए थे बाद में अंग्रेजों ने दरोगा वारिस अली खान को फांसी की सजा दे दी वही गांव के 16 सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई इनके अलावा तिरहुत जिले के 12 और सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई जिसमें से कई सपूतों ने सजा काटते काटते दम तोड़ दिया

अंग्रेजों की क्रूरता और किसानों से उनकी जंग कीवी गवाह बनी नील की उस ऐतिहासिक फैक्ट्री का अवशेष आज भी गांव में मौजूद है वह कोठी भी अपने मूल रूप से गांव में खड़ी है जिसमें अंग्रेज रहा करते थे देश और दुनिया को यह बताने का पक्का सबूत है कि अंग्रेज ने यहां कितनी जुल्म की हैं
लेकिन आज भी इस गांव के शहीद परिवार के लोगों की स्थिति काफी दुर्लभ है सरकार की तरफ से इन्हें मूलभूत सुविधाओं से आज भी यह लोग दूर है किसी के घर में शौचालय नहीं है तो किसी का घर नहीं है कोई बीमार है सरकार पर सवाल उठना लाजमी है





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Last Updated : Apr 28, 2019, 1:14 PM IST
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