मुजफ्फपुर: तिरहुत में जंग-ए-आजादी की नींव वर्ष 1857 में ही पड़ गई थी. मुजफ्फरपुर जिले का बड़गांव इसका केंद्र बना. 1857 में बड़गांव के किसान नील की खेती करते थे. वहीं, अंग्रेज किसानों को काफी प्रताड़ित करते थे. ब्रिटिश कानून के खिलाफ बड़गांव के किसानों ने बिगुल फूंक दिया, विरोध के आरोप में दरोगा वारिस अली समेत 28 सपूतों को काला पानी की सजा दी गई. इस गांव में अंग्रेजों की कोठी और नील की फैक्ट्री आज भी स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाती है.
जबरन कराई जाती थी नील की खेती
देश जब अंग्रेजी हुकूमत के पैरों तले सिसक रहा था. कई हिस्सों में छिटपुट विरोध के स्वर उभरने लगे थे. ठीक उसी समय तिरहुत में आजादी की जंग की न्यू युवा किसानों ने रखी थी. उत्तर बिहार के तमाम जिलों में नील की खेती जबरन कराई जाती थी. जिसके बाद अंग्रेज बड़गांव स्थित अपनी फैक्ट्री में उसे बनवाने के लिए लाया करते थे. उसके अत्याचार से बड़गांव के किसान व्यथित थे. ऐसे में बड़गांव के युवा किसानों ने विद्रोह कर दिया. घोड़े पर खेती का निरीक्षण करने आए अंग्रेज अधिकारी को वहां की युवाओं ने जमीन पर पटक दिया था. ऐसी कई यातनाएं अंग्रेजों द्वारा दी गई थी.
16 सपूतों को दी गई थी काला पानी की सजा
किसानों की लड़ाई में पास के बरूराज थाना के तत्कालीन दरोगा वारिस अली खान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. बाद में अंग्रेजों ने दरोगा वारिस अली खान को फांसी की सजा दे दी. वहीं, गांव के 16 सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई. इनके अलावा तिरहुत जिले के 12 और सपूतों को काला पानी की सजा सुनाई गई. जिसमें से कई सपूतों ने सजा काटते-काटते दम तोड़ दिया.
फैक्ट्री का अवशेष आज भी है मौजूद
अंग्रेजों की क्रूरता और किसानों से उनकी जंग की गवाह बनी नील की उस ऐतिहासिक फैक्ट्री का अवशेष आज भी गांव में मौजूद है. वह कोठी भी अपने मूल रूप से गांव में खड़ी है जिसमें अंग्रेज रहा करते थे. देश और दुनिया को यह बताने का पक्का सबूत है कि अंग्रेजों ने यहां कितने जुल्म किए हैं.
शहीद परिवार के लोगों की हालत आज भी खराब
हालांकि, आज भी इस गांव के शहीद परिवार के लोगों की स्थिति काफी खराब है. मूलभूत सुविधाओं से आज भी यह लोग दूर हैं. किसी के घर में शौचालय नहीं है, तो किसी का घर नहीं है कोई बीमार है, सरकार पर सवाल उठना लाजमी है.