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सुशासन राज में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, पीठ पर मरीज, नींद में जिम्मेदार - Chief Minister Nitish Kumar

बिहार सरकार प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर बड़े-बड़े वादे करती है, लेकिन इसकी पोल खोलती हुई दो शर्मनाक तस्वीर मुजफ्फरपुर जिले से सामने आई हैं.

पीठ पर जिंदगी नींद में अस्पताल
पीठ पर जिंदगी नींद में अस्पताल
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Published : Feb 23, 2021, 6:01 PM IST

Updated : Feb 23, 2021, 9:08 PM IST

मुजफ्फरपुर: 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'. यह टैग लाइन सूबे के हर जिले के गली-मुहल्ले में देखने को मिल जाती है. लेकिन बहार का आलम यह है कि जिस विकास की बयार की बात नीतीश कुमार कर रहे हैं. उस विकास के पायदान में बिहार का स्थान सबसे नीचे है. बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ती नजर आ रही है. इसकी जीती जागती दो तस्वीर मुजफ्फरपुर जिले से सामने आई है, जो ये बताने के लिए काफी है कि यहां का स्वास्थ्य सिस्टम कितना सड़ चुका है. स्वास्थ्य व्यवस्था को जिले में बस 'ढोया' जा रहा है.

देखें रिपोर्ट.

पढ़े: विकास की बयार में अछूता रह गया बिहटा का रेफरल अस्पताल

"नहीं मिली शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस"
पहला मामला मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल से सामने आया है. यहां इलाज कराने पहुंची एक महिला का अस्पताल पहुंचते ही निधन हो गया. जिसके बाद महिला का शव ले जाने के लिए परिजन सरकारी एम्बुलेंस चालकों और अस्पताल के कर्मियों से गुहार लगाते रहे, लेकिन उनको एम्बुलेंस नहीं मिल पाई. जिसके बाद परेशान परिजन मृतक महिला का शव ई-रिक्शा पर लादकर घर लेकर गए.

मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल
मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल

"2 घंटे से अस्पताल में एम्बुलेंस का इंताजार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक अस्पताल की ओर से एम्बुलेंस नहीं मिली है और न ही कोई हमारी बात सुन रहा है. अब मजबूरन रिक्शे में शव को ले जाना पड़ रहा है"- कमल साह, मृतक महिला का बेटा

नहीं मिली शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस
नहीं मिली शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस

"बीमार पिता को पीठ पर बिठा कर अस्पताल में घुमता रहा पुत्र"
वहीं, दूसरी ओर मुजफ्फरपुर के सबसे बड़े अस्पताल SKMCH में अपने बीमार पिता का इलाज कराने पहुंचे एक व्यक्ति को अपने पिता के लिए स्ट्रेचर भी नसीब नहीं हुआ. जिससे परेशान पुत्र अपने पिता को पीठ पर बिठाकर सरकारी अस्पताल के चक्कर काटता रहा.

पीठ पर जिंदगी
पीठ पर जिंदगी

"सवालों के घेरे में रहा है अस्पताल"
दरअसल, मुजफ्फरपुर का एसकेएमसीएच पहले भी कई बार सवालों के घेरे में आ चुका है. 2019 में चमकी बुखार ने अपना कहर इसी अस्पताल में मचाया था. उस समय भी यहां स्वास्थ्य संसाधनों का बड़ा अभाव था, जिसके चलते 170 से ज्यादा बच्चों को अपनी जान गवानी पड़ी थी. इतना कुछ होने के बाद भी स्वास्थ्य अधिकारियों की नींद आज भी नहीं खुली है.

इटीवी भारत की टीम ने जब एसकेएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ गोपाल शंकर सहनी से इसको लेकर बातचीत की तो उन्होंने कहा कि "मुझे आपके माध्यम से इसकी जानकारी मिली है. इसकी मैं तहकीकात करुंगा और इसमें कहा लैकिंग है उसको भी दुरुस्त करूंगा"

SKMCH अस्पताल
SKMCH अस्पताल

पढ़े: पश्चिम चंपारण: दशकों बाद बदली अस्पताल की तस्वीर, अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हुआ रेफरल अस्पताल

"इतना बजट आवंटित करने के बाद भी क्या बदलेगा कुछ?
बता दें कि, राज्य सरकार ने इस बार के बजट में स्वास्थ्य विभाग को 13 हजार 264.87 करोड़ का बजट दिया है, लेकिन क्या इन रूपयों से जमीनी हकीकत बदलेगी. इसका अनुमान आप इन तस्वीरों को देख कर लगा सकते हैं.

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार का हाल बेहाल
नीति आयोग की 'एसडीजी भारत सूचकांक' में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के क्षेत्र में राज्यों की प्रगति के आधार पर उनके प्रदर्शन को आंका जाता है. जिसमें केरल पहले पायदान पर है तो बिहार अंतिम पायदान पर काबिज है. यही नहीं बिहार की हालत पड़ोसी राज्य यूपी और झारखंड से भी खराब है. वहीं, यही हालत बिहार के स्वास्थ्य महकमे का भी है. 'स्वस्थ्य राज्य प्रगतिशील भारत’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में राज्यों की रैंकिंग से यह बात सामने आई है, कि बिहार की स्वास्थय व्यवस्था दम तोड़ चुकी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक इन्क्रीमेन्टल रैंकिंग यानी पिछली बार के मुकाबले सुधार के स्तर के मामले में 21 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 21वें स्थान के साथ सबसे नीचे है.

मुजफ्फरपुर: 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'. यह टैग लाइन सूबे के हर जिले के गली-मुहल्ले में देखने को मिल जाती है. लेकिन बहार का आलम यह है कि जिस विकास की बयार की बात नीतीश कुमार कर रहे हैं. उस विकास के पायदान में बिहार का स्थान सबसे नीचे है. बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ती नजर आ रही है. इसकी जीती जागती दो तस्वीर मुजफ्फरपुर जिले से सामने आई है, जो ये बताने के लिए काफी है कि यहां का स्वास्थ्य सिस्टम कितना सड़ चुका है. स्वास्थ्य व्यवस्था को जिले में बस 'ढोया' जा रहा है.

देखें रिपोर्ट.

पढ़े: विकास की बयार में अछूता रह गया बिहटा का रेफरल अस्पताल

"नहीं मिली शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस"
पहला मामला मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल से सामने आया है. यहां इलाज कराने पहुंची एक महिला का अस्पताल पहुंचते ही निधन हो गया. जिसके बाद महिला का शव ले जाने के लिए परिजन सरकारी एम्बुलेंस चालकों और अस्पताल के कर्मियों से गुहार लगाते रहे, लेकिन उनको एम्बुलेंस नहीं मिल पाई. जिसके बाद परेशान परिजन मृतक महिला का शव ई-रिक्शा पर लादकर घर लेकर गए.

मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल
मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल

"2 घंटे से अस्पताल में एम्बुलेंस का इंताजार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक अस्पताल की ओर से एम्बुलेंस नहीं मिली है और न ही कोई हमारी बात सुन रहा है. अब मजबूरन रिक्शे में शव को ले जाना पड़ रहा है"- कमल साह, मृतक महिला का बेटा

नहीं मिली शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस
नहीं मिली शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस

"बीमार पिता को पीठ पर बिठा कर अस्पताल में घुमता रहा पुत्र"
वहीं, दूसरी ओर मुजफ्फरपुर के सबसे बड़े अस्पताल SKMCH में अपने बीमार पिता का इलाज कराने पहुंचे एक व्यक्ति को अपने पिता के लिए स्ट्रेचर भी नसीब नहीं हुआ. जिससे परेशान पुत्र अपने पिता को पीठ पर बिठाकर सरकारी अस्पताल के चक्कर काटता रहा.

पीठ पर जिंदगी
पीठ पर जिंदगी

"सवालों के घेरे में रहा है अस्पताल"
दरअसल, मुजफ्फरपुर का एसकेएमसीएच पहले भी कई बार सवालों के घेरे में आ चुका है. 2019 में चमकी बुखार ने अपना कहर इसी अस्पताल में मचाया था. उस समय भी यहां स्वास्थ्य संसाधनों का बड़ा अभाव था, जिसके चलते 170 से ज्यादा बच्चों को अपनी जान गवानी पड़ी थी. इतना कुछ होने के बाद भी स्वास्थ्य अधिकारियों की नींद आज भी नहीं खुली है.

इटीवी भारत की टीम ने जब एसकेएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ गोपाल शंकर सहनी से इसको लेकर बातचीत की तो उन्होंने कहा कि "मुझे आपके माध्यम से इसकी जानकारी मिली है. इसकी मैं तहकीकात करुंगा और इसमें कहा लैकिंग है उसको भी दुरुस्त करूंगा"

SKMCH अस्पताल
SKMCH अस्पताल

पढ़े: पश्चिम चंपारण: दशकों बाद बदली अस्पताल की तस्वीर, अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हुआ रेफरल अस्पताल

"इतना बजट आवंटित करने के बाद भी क्या बदलेगा कुछ?
बता दें कि, राज्य सरकार ने इस बार के बजट में स्वास्थ्य विभाग को 13 हजार 264.87 करोड़ का बजट दिया है, लेकिन क्या इन रूपयों से जमीनी हकीकत बदलेगी. इसका अनुमान आप इन तस्वीरों को देख कर लगा सकते हैं.

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार का हाल बेहाल
नीति आयोग की 'एसडीजी भारत सूचकांक' में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के क्षेत्र में राज्यों की प्रगति के आधार पर उनके प्रदर्शन को आंका जाता है. जिसमें केरल पहले पायदान पर है तो बिहार अंतिम पायदान पर काबिज है. यही नहीं बिहार की हालत पड़ोसी राज्य यूपी और झारखंड से भी खराब है. वहीं, यही हालत बिहार के स्वास्थ्य महकमे का भी है. 'स्वस्थ्य राज्य प्रगतिशील भारत’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में राज्यों की रैंकिंग से यह बात सामने आई है, कि बिहार की स्वास्थय व्यवस्था दम तोड़ चुकी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक इन्क्रीमेन्टल रैंकिंग यानी पिछली बार के मुकाबले सुधार के स्तर के मामले में 21 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 21वें स्थान के साथ सबसे नीचे है.

Last Updated : Feb 23, 2021, 9:08 PM IST
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