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मुजफ्फरपुर में लीची की फसल ने किसानों को किया मायूस, इस वर्ष भी पैदावार कम होने की संभावना - लीची के व्यापारी

मुजफ्फरपुर के किसानों को लीची से काफी सहारा मिलता है. लेकिन चमकी बुखार और लॉकडाउन के वजह से लीची की अच्छी पैदावार न होने से किसानों और व्यापारियों के बीच मायूसी छाई हुई है.

लीची
लीची
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Published : Apr 5, 2021, 11:14 AM IST

Updated : Apr 22, 2021, 3:07 PM IST

मुजफ्फरपुर: पूरी दुनिया में अपनी शाही लीची की मिठास के लिए मुजफ्फरपुर काफी मशहूर है. लेकिन यह लीची पिछले तीन सालों से किसान के लिए आमदनी के बजाय दर्द का सबब बनते जा रही है. कभी चमकी बुखार से जुड़े मामले के लिए बदनामी का दाग, तो कभी कोरोना को लेकर लॉकडाउन की वजह से बाजार नहीं मिलने पर परेशानी. वहीं जलवायु परिवर्तन से लीची में लगे कम फल किसानों की मुश्किल को बढ़ा रहे है.

इसे भी पढ़ें: घर-घर तक आम और लीची पहुंचाने की तैयारी कर रहा डाक विभाग

व्यापारियों और किसानों हो सकता है घाटा
इस वर्ष व्यापारियों और किसानों को लीची की पैदावार कम होने की संभावना दिख रही है. जिससे लीची उत्पादन करने वाले किसान और पहले से बगीचा खरीदने वाले व्यापारी दोनों को इस बार घाटा नजर आ रहा है. वहीं लीची में फल कम आने की वजह से इस बार बाहर के लीची के बड़े व्यापारी भी बाग खरीदने के लिए शहर नहीं पहुंच रहे हैं.

पेड़ों पर लगा लीची.
पेड़ों पर लगा लीची.

जलजमाव के कारण लीची में कमी
इस बार भारी बारिश और लंबे समय तक जलजमाव की वजह से लीची में बेहद कमी नजर आ रही है. अधिकांश लीची के बगीचे में मंजर की जगह नए लाल पत्ते आ गए है. लीची बागानों को खरीदने वाले स्थानीय व्यपारियों की माने तो इस बार महज 30 से 40 फीसदी पेड़ों में नजर आए हैं. ऊपर से तेज धूप और उच्च तापमान भी लीची के फसल के लिए बहुत सही नहीं है.

पेड़ों पर किया जा रहा छिड़काव.
पेड़ों पर किया जा रहा छिड़काव.

ये भी पढ़ें: मुजफ्फरपुर की शाही लीची नहीं, अब मुजफ्फरपुर का थाई चीकू भी होगा फेमस

13 हजार हेक्टेयर भूमि पर लीची की बागवानी
व्यापारी और किसान दवाओं के छिड़काव और बगीचों की सिंचाई कर बची-खुची फसल को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. गौरतलब है कि जिले में करीब 13 हजार हेक्टेयर भूमि पर लीची की बागवानी मौजूद है, जो मुजफ्फरपुर के किसानों की आमदनी में बड़ा योगदान देती है.

लीची की पेदावार.
लीची की पेदावार.

लीची उत्पादन संघ के अध्यक्ष बच्चा सिंह कहते हैं कि, "जिले में तकरीबन 12 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं. प्रत्येक साल करीब 400 करोड़ का कारोबार होता है. बिहार के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और नेपाल की मंडियों में इसकी खपत होती है. फसल अच्छी होने पर 15 हजार टन तक उत्पादन होता है. पिछले साल करीब 10 हजार टन ही उत्पादन हुआ था. इस बार भी फसल कमजोर है."

32 हजार हेक्टेयर में होती है लीची की खेती
बिहार की देश के लीची उत्पादन में कुल 40 फीसदी हिस्सेदारी है. तिरहुत प्रक्षेत्र के कृषि विभाग के संयुक्त निदेषक सुरेंद्र नाथ कहते हैं कि राज्य में कुल लीची का 70 फीसदी उत्पादन इस क्षेत्र में होता है. लीची उत्पादन के लिए मुजफ्फरपुर देश में अव्वल है. बिहार में कुल 32 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है. अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं. राज्य में पिछले साल 1,000 करोड़ रुपये का लीची का व्यवसाय हुआ था. इनमें मुजफ्फरपुर की भागीदारी 400 करोड़ रुपये की थी.

लीची का बगान.
लीची का बगान.

बता दें कि बिहार की शाही लीची अपने मीठे स्वाद और खास सुगंध के लिए जानी जाती है. यह मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली, पूर्वी चंपारण और बेगूसराय के इलाकों में पैदा की जाती है.

पढ़ें: लीची के पेड़ों से मंजर गायब, कम उत्पादन की आशंका ने बढ़ाई चिंता

पढ़ें: घर-घर तक आम और लीची पहुंचाने की तैयारी कर रहा डाक विभाग

पढ़ें: मुजफ्फरपुर की शाही लीची नहीं, अब मुजफ्फरपुर का थाई चीकू भी होगा फेमस

पढ़ें: मुजफ्फरपुरः जलजमाव से सैकड़ों हेक्टेयर में लगे आम-लीची के पेड़ सूखे, कम हुई किसानों की आमदनी

मुजफ्फरपुर: पूरी दुनिया में अपनी शाही लीची की मिठास के लिए मुजफ्फरपुर काफी मशहूर है. लेकिन यह लीची पिछले तीन सालों से किसान के लिए आमदनी के बजाय दर्द का सबब बनते जा रही है. कभी चमकी बुखार से जुड़े मामले के लिए बदनामी का दाग, तो कभी कोरोना को लेकर लॉकडाउन की वजह से बाजार नहीं मिलने पर परेशानी. वहीं जलवायु परिवर्तन से लीची में लगे कम फल किसानों की मुश्किल को बढ़ा रहे है.

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व्यापारियों और किसानों हो सकता है घाटा
इस वर्ष व्यापारियों और किसानों को लीची की पैदावार कम होने की संभावना दिख रही है. जिससे लीची उत्पादन करने वाले किसान और पहले से बगीचा खरीदने वाले व्यापारी दोनों को इस बार घाटा नजर आ रहा है. वहीं लीची में फल कम आने की वजह से इस बार बाहर के लीची के बड़े व्यापारी भी बाग खरीदने के लिए शहर नहीं पहुंच रहे हैं.

पेड़ों पर लगा लीची.
पेड़ों पर लगा लीची.

जलजमाव के कारण लीची में कमी
इस बार भारी बारिश और लंबे समय तक जलजमाव की वजह से लीची में बेहद कमी नजर आ रही है. अधिकांश लीची के बगीचे में मंजर की जगह नए लाल पत्ते आ गए है. लीची बागानों को खरीदने वाले स्थानीय व्यपारियों की माने तो इस बार महज 30 से 40 फीसदी पेड़ों में नजर आए हैं. ऊपर से तेज धूप और उच्च तापमान भी लीची के फसल के लिए बहुत सही नहीं है.

पेड़ों पर किया जा रहा छिड़काव.
पेड़ों पर किया जा रहा छिड़काव.

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13 हजार हेक्टेयर भूमि पर लीची की बागवानी
व्यापारी और किसान दवाओं के छिड़काव और बगीचों की सिंचाई कर बची-खुची फसल को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. गौरतलब है कि जिले में करीब 13 हजार हेक्टेयर भूमि पर लीची की बागवानी मौजूद है, जो मुजफ्फरपुर के किसानों की आमदनी में बड़ा योगदान देती है.

लीची की पेदावार.
लीची की पेदावार.

लीची उत्पादन संघ के अध्यक्ष बच्चा सिंह कहते हैं कि, "जिले में तकरीबन 12 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं. प्रत्येक साल करीब 400 करोड़ का कारोबार होता है. बिहार के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और नेपाल की मंडियों में इसकी खपत होती है. फसल अच्छी होने पर 15 हजार टन तक उत्पादन होता है. पिछले साल करीब 10 हजार टन ही उत्पादन हुआ था. इस बार भी फसल कमजोर है."

32 हजार हेक्टेयर में होती है लीची की खेती
बिहार की देश के लीची उत्पादन में कुल 40 फीसदी हिस्सेदारी है. तिरहुत प्रक्षेत्र के कृषि विभाग के संयुक्त निदेषक सुरेंद्र नाथ कहते हैं कि राज्य में कुल लीची का 70 फीसदी उत्पादन इस क्षेत्र में होता है. लीची उत्पादन के लिए मुजफ्फरपुर देश में अव्वल है. बिहार में कुल 32 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है. अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं. राज्य में पिछले साल 1,000 करोड़ रुपये का लीची का व्यवसाय हुआ था. इनमें मुजफ्फरपुर की भागीदारी 400 करोड़ रुपये की थी.

लीची का बगान.
लीची का बगान.

बता दें कि बिहार की शाही लीची अपने मीठे स्वाद और खास सुगंध के लिए जानी जाती है. यह मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली, पूर्वी चंपारण और बेगूसराय के इलाकों में पैदा की जाती है.

पढ़ें: लीची के पेड़ों से मंजर गायब, कम उत्पादन की आशंका ने बढ़ाई चिंता

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Last Updated : Apr 22, 2021, 3:07 PM IST
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