मुजफ्फरपुरः बिहार की सरकार भले ही अपनी प्रशासनिक व्यवस्था के चुस्त होने का दावा करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि प्रशासनिक व्यवस्था संवेदनशून्य है. इसका जीता जागता उदाहरण मुजफ्फरपुर शहर से महज चंद कदम की दूरी पर बना चंदवारा घाट पुल है.
इस पुल की हालत को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रशासनिक व्यवस्था का क्या हाल है. जहां 41 करोड़ की लागत से बूढ़ी गंडक नदी पर बना पुल एप्रोच पथ के अभाव में पांच सालों से बेकार पड़ा है.
अखाड़ा घाट पुल पर वाहनों का दबाव
मुजफ्फरपुर शहर को जाम की समस्या से निजात दिलाने में यह पुल बेहद अहम साबित हो सकता है. लेकिन इसके बाद भी यह पुल सिर्फ जमीन अधिग्रहण के पेंच में फंसकर पिछले कई वर्षो से बेकार पड़ा हुआ है.
ट्रैफिक जाम की वजह से शहर के इकलौते अखाड़ा घाट पुल पर भी वाहनों का काफी दबाव है. ऐसे में अब स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस पुल को शुरू करने के लिए दबाव बना रहे हैं.
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जमीन अधिग्रहण का रोना रो रहा प्रशासन
गौरतलब है कि जो पुल पांच वर्ष पहले पूर्ण हो जाना चाहिए वह अब तक अधूरा है. वहीं, जिला प्रशासन पिछले साल से ही इस पुल को शुरू करने में हो रही देरी के पीछे जमीन अधिग्रहण का रोना रो रहा है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर जमीन अधिग्रहण की इतनी कठिन समस्या थी तो यहां पर पुल कैसे बन गया.