मुंगेरः ट्रेन और बस से प्रवासियों को उनके घर तक पहुंचाने की सरकारी घोषणाएं हवा हवाई साबित हो रही है. बिहार सरकार ने प्रवासियों को लाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है. बिहार में प्रवासी मजदूर रोजाना ट्रक पर भेड़ बकरियों की तरह लदकर अपने गृह जिला लौट रहे हैं.
जानवरों की तरह ढोये जा रहे हैं इंसान
बिहार की सभी सीमाओं पर चेक पोस्ट बनाए गए हैं. एक जिले में एक दर्जन के करीब चेक पोस्ट 24 घंटे चल रहे हैं. इस पर 200 से अधिक कर्मी प्रतिनियुक्त हैं. यहां प्रवेश करने वाली सभी गाड़ियों का नंबर लिखा जाता है. फिर भी इन बाबुओं की नजर ऐसे ट्रकों पर क्यों नहीं पड़ती, जिस पर जानवरों की तरह इंसान ढोये जा रहे हैं. प्रवासियों को उनके जिला वापस लाने के लिए सरकार के करोड़ों रुपये का बजट कहां खर्च हो रहा है?
मुंबई से आए थे प्रवासी
मुंबई से आए 70 प्रवासी मुंगेर के रास्ते ट्रक से कटिहार जा रहे थे. इन प्रवासियों ने बताया कि तकरीबन 2 महीने तक ये लोग मुंबई में बिना काम किये ही रुके रहे. पैसे खत्म होने के बाद पैदल ही मुंबई से अपने घर कटिहार के लिए निकल गए. किसी तरह बिहार के बॉर्डर पर आ गए. यहां सीमा चेक पोस्ट पर तैनात अधिकारियों ने रोक लिया और पूछताछ की. बाद में एक खाली ट्रक रुकवा कर हम लोगों को उस पर बिठा दिया.
एक ट्रक में मुश्किल से 15 से 20 लोग खड़े होकर आ सकते हैं. लेकिन प्रवासियों की मजबूरी है कि 70 से अधिक लोग भेड़ बकरियों की तरह ट्रक में बैठकर यात्रा कर रहे हैं. ट्रक के अंदर सोशल डिस्टेंसिंग की बात छोड़िए एक दूसरे की गोद में बैठकर लोग यात्रा करने को मजबूर हैं.
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अनजान बने हुए हैं सरकारी बाबू
हालात ये है कि एक ट्रक पर 70 से ज्यादा मजदूर आते हैं. सरकारी बाबू सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं. आखिर सरकार और सिस्टम की नजर इन पर क्यों नहीं पड़ती? क्या ये बिहार के निवासी नहीं है? इन सारे सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं है. सब कुछ सिस्टम के सामने हो रहा है. लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है.
प्रशासन ने ट्रक में बैठाकर भेजा गृह जिला
ट्रक के उप चालक संगीत कुमार ने बताया कि बिहार सीमा में प्रशासन ने हम लोगों से पूछा कटिहार जा रहे हो तो इन सभी को ट्रक से ले जाओ कोई परेशानी नहीं होगी. हम लोग अधिकारी की बात मानकर सभी को ट्रक पर बिठा लिया. शुक्रवार की देर रात चले हैं, रविवार सुबह तक कटिहार पहुंच जाएंगे.