मुंगेर: इस वर्ष सूर्य का मकर राशि में परिवर्तन को लेकर पंचांग में भेद है, जिस वजह से मकर संक्रांति (Makar sankranti 2022) का त्योहार दो दिन यानी 14 और 15 जनवरी को मनाया जाएगा. आज के दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य, जप और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है. हालांकि कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए अधिक से अधिक राज्यों में गंगा स्नान करने पर रोक लगा दी गयी है. मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि को छोड़ते हुए अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर जाते हैं. इस दिन से सूर्यदेव की यात्रा दक्षिणायन से उत्तरायण दिशा की ओर होने लगती है. साथ ही दिन लंबे और राते छोटी होनी आरंभ हो जाती है.
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इस वर्ष यानी की 2022 में मकर सक्रांति 14 जनवरी और 15 जनवरी दोनों ही दिन मनाया जाएगा. मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान कर काले तिल का दान करने से घर में कलह दूर होती है और सुख शांति मिलती है. मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को लेकर मतभेद होने के कारण यह अंतर आ रहा है. इस संबंध में प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री ने बताया कि कोलकाता से निकलने वाले पंचांग के अनुसार सूर्य 14 जनवरी शुक्रवार 2:30 में मकर राशि में प्रवेश कर रहा है. वहीं, बनारस के पंचांग के अनुसार सूर्य शुक्रवार को रात्रि 8:00 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा. इस कारण बनारस के पंचांग के अनुसार शुक्रवार 14 जनवरी 2:30 से मकर सक्रांति लोग मना सकते हैं. मिथिला पंचांग के अनुसार, 14 जनवरी शुक्रवार को दोपहर 12 बजे से संक्रांति का पुण्यकाल आरंभ हो जाएगा. इस कारण से मिथिला पंचांग को मानने वाले 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाएंगे.
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बनारस पंचांग के अनुसार शनिवार को मकर संक्रांति मनाया जाएगा. हालांकि शुक्रवार और शनिवार दोनों ही दिन शुभ है. सक्रांति के बाद खरमास खत्म हो जाता है. खरमास खत्म होते ही शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. अविनाश शास्त्री ने बताया कि मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण दिशा में आ जाते हैं. उत्तरायण दिशा का अर्थ है कि सभी देवी देवता निंद्रा से जाग जाते हैं. इस कारण खरमास खत्म हो जाता है और शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. सभी देवी देवताओं के जगे रहने के कारण उनके सानिध्य में शुभ कार्य होने से कोई विघ्न बाधा नहीं आता है. इसलिए खरमास के बाद गृह प्रवेश, लग्न, शादी विवाह के कार्य शुरू कर दिए जाते हैं.
सक्रांति के दिन दान पुण्य का भी विशेष महत्व है. जानकारी देते हुए ज्योतिषाचार्य ने बताया कि तिल की उत्पत्ति सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु के शरीर से हुआ है और लक्ष्मी से गन्ने की उत्पत्ति हुई है. इस कारण काले तिल का दान तथा गन्ने से बने गुड़ का दान का विशेष महत्व है. लोग गंगा स्नान कर इन वस्तुओं का दान करें, तो घर मे सुख-शांति बनी रहती है. साथ ही धन धान्य की भी प्राप्ति होती है.
' मकर संक्रांति सूर्य की संक्रांति होती है. संक्रांति का अर्थ होता है परिवर्तन. सूर्य इसी दिन से उत्तरायर्णन होता है. इस वर्ष 14 और 15 दोनों ही दिन मनाया जाता है. मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए. जिन लोगों के घर के पास गंगा नदी नहीं है, वे गंगाजल थोड़ी मात्रा में लेकर घर के पानी में मिलाकर स्नान करें, तो भी वह गंगा स्नान के बराबर ही माना जाएगा. गंगा स्नान के बाद दान किया जाए तो और बेहतर है. दान पुण्य के बाद चूड़ा दही, तील से बने तिलकुट का सेवन करना चाहिए.' -आचार्य अविनाश शास्त्री, ज्योतिषाचार्य
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