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यहां 32 लोगों के कंधों पर सवार होकर विदा होती है मां

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Published : Oct 6, 2022, 4:16 PM IST

ऐसे तो लोग मां की मूर्ति को जलाशयों, नदियों तक ले जाने के लिए वाहनों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन बिहार के मुंगेर में बड़ी दुर्गा मां मंदिर में नवरात्र (Vijayadashami 2022 ) में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन का तरीका ही अनोखा (Farewell to Maa Durga in Munger) है. पढ़ें पूरी खबर

मां दुर्गा की विदाई
मां दुर्गा की विदाई

मुंगेर: शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri 2022) में दस दिनों तक मां दुर्गा की अराधना के बाद दशमी तिथि (दशहारा) के दिन मां की विदाई करने की परंपरा है. इस दौरान पंडालों में स्थापित दुर्गा मां की पूजाकर स्थापित मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. यहां मां की प्रतिमा विसर्जन (Maa Durga immersed in Munger) के लिए ठीकरा (मां के बैठने की जगह) बनाई जाती है, जिसे 32 लोग उठाते हैं, जो कंहार जाति के होते हैं. इस साल 45 किलोग्राम चांदी से ठीकरा बनाया गया है.

ये भी पढ़ें: बोतल में मां दुर्गा की ईको-फ्रेंडली मूर्ति, देखकर हो जाएंगे हैरान

दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन का तरीका ही अनोखा : मुंगेर में इस अनोखे दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. बुजुर्ग लोगों का कहना है कि यह काफी दिनों से यहां होता आ रहा है जो अब परंपरा बना गया है और इस परंपरा का निर्वहन आज की पूजा समितियां भी कर रही है.

32 लोगों के कंधों पर होती है माता विदा : मुंगेर बड़ी दुर्गा दुर्गा स्थान समिति के अध्यक्ष दीपक प्रसाद वर्मा कहते हैं कि यहां प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमा विसर्जन तब ही होता है जब 32 कंहार इनकी विदाई के लिए यहां उपस्थित हों और कंधा दें. वे कहते हैं कि इसके लिए उन कंहार जाति के लोगों को पूर्व में निमंत्रण दिया जाता है. वे बताते हैं कि इनकी संख्या का खास ख्याल रखा जाता है कि 32 से ना ज्यादा हों और ना कम हो. जनश्रुतियों के मुताबिक, वर्षों पहले एक बार समिति के लोग यहां की प्रतिमा के विसर्जन के लिए वाहन लाए थे परंतु दुर्गा मां की प्रतिमा अपने स्थान से हिली तक नहीं थी. विसर्जन के दौरान यहां हजारों लोग यहां इकट्ठे होते हैं.

प्रतिमा के विसर्जन से पहले पूरे शहर में भ्रमण: इधर, समिति के मंत्री देव नंदन प्रसाद बताते हैं कि प्रतिमा के विसर्जन के पूर्व पूरे शहर में भ्रमण करवाया जाता है. इस दौरान चौक-चौराहों पर प्रतिमा की विधिवत पूजा-अर्चना भी की जाती है. इसके अलावे दुर्गा प्रतिमा के आगे-आगे अखाड़ा पार्टी के कलाकार चलते हैं जो ढोल और नगाड़े की थाप पर तरह-तरह के कलाबाजी और करतब दिखाते रहते हैं. इसके बाद प्रतिमा गंगा घाट पहुंचता है, जहां मां की प्रतिमा को विसर्जित कर उनकी विदाई दी जाती है.

''बीच-बीच में मां में श्रद्धा रखने वाले लोग भी इस ठीकरा को कंधा देकर अपने आपको धन्य समझते हैं. सभी लोग दुर्गा मां की विदाई के समय नम आंखों से इनकी विदाई करते हैं, लेकिन अगले साल आने की कामना भी करते हैं.'' - देव नंदन प्रसाद, मंत्री, बड़ी दुर्गा दुर्गा स्थान

मुंगेर: शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri 2022) में दस दिनों तक मां दुर्गा की अराधना के बाद दशमी तिथि (दशहारा) के दिन मां की विदाई करने की परंपरा है. इस दौरान पंडालों में स्थापित दुर्गा मां की पूजाकर स्थापित मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. यहां मां की प्रतिमा विसर्जन (Maa Durga immersed in Munger) के लिए ठीकरा (मां के बैठने की जगह) बनाई जाती है, जिसे 32 लोग उठाते हैं, जो कंहार जाति के होते हैं. इस साल 45 किलोग्राम चांदी से ठीकरा बनाया गया है.

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दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन का तरीका ही अनोखा : मुंगेर में इस अनोखे दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. बुजुर्ग लोगों का कहना है कि यह काफी दिनों से यहां होता आ रहा है जो अब परंपरा बना गया है और इस परंपरा का निर्वहन आज की पूजा समितियां भी कर रही है.

32 लोगों के कंधों पर होती है माता विदा : मुंगेर बड़ी दुर्गा दुर्गा स्थान समिति के अध्यक्ष दीपक प्रसाद वर्मा कहते हैं कि यहां प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमा विसर्जन तब ही होता है जब 32 कंहार इनकी विदाई के लिए यहां उपस्थित हों और कंधा दें. वे कहते हैं कि इसके लिए उन कंहार जाति के लोगों को पूर्व में निमंत्रण दिया जाता है. वे बताते हैं कि इनकी संख्या का खास ख्याल रखा जाता है कि 32 से ना ज्यादा हों और ना कम हो. जनश्रुतियों के मुताबिक, वर्षों पहले एक बार समिति के लोग यहां की प्रतिमा के विसर्जन के लिए वाहन लाए थे परंतु दुर्गा मां की प्रतिमा अपने स्थान से हिली तक नहीं थी. विसर्जन के दौरान यहां हजारों लोग यहां इकट्ठे होते हैं.

प्रतिमा के विसर्जन से पहले पूरे शहर में भ्रमण: इधर, समिति के मंत्री देव नंदन प्रसाद बताते हैं कि प्रतिमा के विसर्जन के पूर्व पूरे शहर में भ्रमण करवाया जाता है. इस दौरान चौक-चौराहों पर प्रतिमा की विधिवत पूजा-अर्चना भी की जाती है. इसके अलावे दुर्गा प्रतिमा के आगे-आगे अखाड़ा पार्टी के कलाकार चलते हैं जो ढोल और नगाड़े की थाप पर तरह-तरह के कलाबाजी और करतब दिखाते रहते हैं. इसके बाद प्रतिमा गंगा घाट पहुंचता है, जहां मां की प्रतिमा को विसर्जित कर उनकी विदाई दी जाती है.

''बीच-बीच में मां में श्रद्धा रखने वाले लोग भी इस ठीकरा को कंधा देकर अपने आपको धन्य समझते हैं. सभी लोग दुर्गा मां की विदाई के समय नम आंखों से इनकी विदाई करते हैं, लेकिन अगले साल आने की कामना भी करते हैं.'' - देव नंदन प्रसाद, मंत्री, बड़ी दुर्गा दुर्गा स्थान

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