मधुबनी: कोसी क्षेत्र में बसे लोगों की जिंदगी मुहाल बना हुआ है. इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की राज्य सरकार किसी प्रकार की सहायता कर नहीं रही है. लोगों का आरोप है कि हमलोगों को किसी प्रकार की कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती है. यहां आने वाले अधिकारी भी लालफीताशाही संस्कृति का शिकार रहता है. पूरे साल अपने बलबूते पर जीवन यापन करते हैं.
9 महीने बाढ़ का आतंक, 3 महीने सुखाड़ का डंक
इलाके के लोगों का कहना है कि यह क्षेत्र ऐसा है कि पूरे साल में नौ महीने इलाका बाढ़ की गोद में बैठा रहता है और बाकी के तीन महीने सुखाड़ का डंक झेलता है. इस कोसी नदी में महिला पुरुष अपनी जान को हथेली पर रखकर रास्ते की सफर करते हैं. मधेपुर प्रखंड अंतर्गत कोसी क्षेत्र में नदी पर पूल नहीं होने के कारण इलाके को लोग अपने बच्चे समेत मवेशियों को खाने का इंतजाम जान हथेली पर रखकर करते हैं. हालांकि सरकार बिहार में विकास की बहार होने की बात कहती है. लेकिन इलाके में सरकार के दावे के सभी दावे सरकारी कागजों में गुम हैं.
'तारणहार की तलाश'
स्थानीय बसिपट्टी पंचायत निवासी रंजन कुमार भिंड, सुखराम यादव और दुलारी देवी बताती हैं कि भारत तो आजाद हो चुकी है. लेकिन कोसी क्षेत्र आज भी गुलाम है. लोगों ने बताया कि कोसी क्षेत्र के लोग अंग्रेजों शासन नहीं बल्कि हमलोग बिहार सरकार के गुलाम हैं. इलके के विकास के नाम पर वोट तो करते हैं. लेकिन किसी भी जीतने के बाद हमें कोई देखने के लिए नहीं आता है. हमलोग बेबस होकर प्राकृति का दंश झेलने को मजबूर हैं. बिहार सरकार हमलोगों की लगातार अनदेखी कर रही है. सरकार के विकास की किरण आज तक कोसी इलाके में नहीं पहुंच पाई है.
'हालात दिन-प्रतिदिन हो रही बदतर'
लोगों ने बताया कि हमें नीतीश सरकार से इलाके के विकास को लेकर आशा थी. लेकिन जल्द ही आशाओं पर आंसुओं की बरसात हो गई. मधेपुर प्रखंड अंतर्गत कोसी क्षेत्र की हालत दिन पर दिन बद से बदतर हो रही है. हमलोगों का कोई भी मदद करने को तैयार नही हैं. इस कोरोना संक्रमण जैसी महामारी में भी यहां के लोग जैसे-तैसे अपनी जीवन नैया पार कर रहे हैं. लोगों ने बताया कि सरकार तो दूर की बात है. हमलोगों से भगवान ने भी मुंह फेर लिया है. इलाका पूरे साल में नौ महीने कोसी नदी के चपेट में रहते हैं और फिर तीन महीने सुखार की दहशत से कांपता हैं.इस कोसी क्षेत्र में अगर किसी की अचानक तबीयत बिगड़ जाती है. तो वह वहीं भगवान के प्यारा हो जाता है. क्योंकि इस गांव में न तो डॉक्टर पहुंच पाते हैं और न ही हमलोग मरीज को अस्पताल तक ले जा पाते हैं.
गौरतलब है कि मधेपुर प्रखंड मुख्यालय से तकरीबन तीस किलो मीटर दूरी तय करके इस गांव मे जाना पड़ता है. बसिपट्टी पंचायत में जाने के लिये तीन-तीन कोसी नदियों को पार करना पड़ता है. वो भी नाव के सहारे. प्राकृतिक विषमताओं से घिड़े इस पंचायत में किसी तरह की सरकारी मदद नहीं पुहंच पाती है. इस पंचायत में जाने के लिये कम से कम तीन से चार घण्टे का समय लगता है. लोगों का आरोप है कि पंचायत स्तर के जन प्रतिनिधि भी कभी हमलोगों को कोई सहायता मुहैया नहीं कराते. हर साल बरसात के मौसम में बाढ़ यहां के लोगों के आशियाने को बहा ले जाती है.