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Madhushravani festival: मिथिलांचल में मधुश्रावणी पर्व शुरू.. नवविवाहिताओं में उत्साह

मिथिलांचल में मधुश्रावणी पर्व शुरू हो गया है. यह पर्व नवविवाहिताओं के लिए ही खास होता है. इसे सिर्फ नई-नई शादी हुई महिलाएं ही करती हैं. घर की बुजुर्ग महिलाओं के सहयोग से यह परंपरा संपन्न होती है. पढ़ें पूरी खबर..

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Published : Jul 7, 2023, 4:24 PM IST

मधुबनी में मधुश्रावणी पूजा

मधुबनी : बिहार में मिथिलांचल का प्रसिद्ध मधुश्रावणी पर्व शुक्रवार से नाग देवता के पूजन के साथ शुरू हो गया है. यह पर्व नवविवाहिताएं करती हैं. व्रती महिलाओं ने शुक्रवार को नहा धोकर ससुराल से आये रंग बिरंगे कपड़े और आभूषण पहनकर नाग देवता की पूजा अर्चना शुरू की. सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को सम्पन्न होगी. इस व्रत में मुख्य रूप से गौरी और भगवान शिव की पूजा की जाती है. नाग देवता और दशहरा की पूजा अर्चना भी होती है.

ये भी पढ़ें : मिथिलांचल के प्रसिद्ध लोक पर्व मधुश्रावणी पर भी दिख रहा कोरोना का असर, घरों में पूजा कर रही हैं नवविवाहिताएं

सिर्फ अरवा भोजन करती हैं व्रती : नवविवाहिताएं इस व्रत के दौरान आरवा भोजन ग्रहण कर पूजन आरंभ करती हैं. यह व्रत नव विवाहिताएं बड़े ही धूमधाम से करती हैं. पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला यह व्रत धैर्य और त्याग का प्रतीक है. पर्व को लेकर शोभा झा ने बताया कि मधुश्रावणी व्रत श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू हुई है. इस बार 44 दिनों तक होगी. नवविवाहिताएं वंश वृद्धि, अहिबात वृद्धि के लिए, मान सम्मान के लिए यह व्रत रखती हैं.

मधुश्रावणी पूजा
मधुश्रावणी पूजा

सैकड़ों साल पुरानी है परंपरा : सालों साल से यह व्रत नवविवाहिताएं करती आ रही हैं. विशहरी माता की कृपा से मनोकामना पूरा होती है. पूजा के लिए मिट्टी के बने नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव की प्रतिमा बनाई जाती है और फिर उनकी पूजा फलों, मिठाईयों और फूलों से की जाती है. आठवें और नौवें दिन प्रसाद के रूप में खीर, रसगुल्ला का भोग लगाया जाता है. नवविवाहिता सुबह में फूल तोड़ती हैं विश्हारी, गौरी की पूजा होती है. शाम में फूल से डाली सजाया जाता है. महादेव गौरी की पूजा गीत गाते हुए डाली सजाई जाती है.

19 अगस्त को संपन्न होगा मधुश्रावणी : शोभा झा ने बताया कि सुबह उसी बासी फूल से विशहारी गौरी की पूजा अर्चना की जाती है. यह व्रत इस बार 19 अगस्त को संपन्न होगा. 18 जुलाई से मलमास शुरू हो रहा है. नवविवाहिताएं व्रत के दौरान सेंधा नमक का उपयोग कर सकती हैं और ससुराल से आए अनाज ग्रहण करेंगी. रंजू देवी ने बताया कि बुजुर्ग महिलाएं ही पूजा करने का विधि-विधान और तौर- तरीका बताती हैं. इसके अलावा कथा भी महिलाएं ही कहती हैं. पंडित का काम पुरुष नहीं महिलाएं ही करती हैं. नाग देवता की कथा भी कही जाती है.

मधुश्रावणी पूजा करती व्रती
मधुश्रावणी पूजा करती व्रती

"नवविवाहिता अपने मायके में यह व्रत करती हैं. इसमें नमक नहीं खाती हैं और जमीन पर सोती हैं. शाम में पूजा के बाद ससुराल से आए भोजन सामग्री को ही ग्रहण करती हैं. प्रतिदिन संध्या में नवविवाहिता आरती, सुहाग गीत और कोहबर गीत गाकर भोले शंकर को प्रसन्न करती हैं. यह व्रत मायके और ससुराल दोनों के सहयोग से होती"- शोभा झा, महिला पुरोहित

ससुराल पक्ष से व्रती के लिए आते हैं नए कपड़े : बता दें कि पूजन करने वाली नव विवाहिता ससुराल पक्ष से प्राप्त नए वस्त्र धारण करती हैं. परंपरा रही है कि नव विवाहिता के मायके के सभी सदस्यों के लिए कपड़ा, व्रती के लिए आभूषण, विभिन्न प्रकार के भोजन के लिए सामान भी ससुराल से ही आता है. नवविवाहिता महिलाओं में काफी उत्साह देखने को मिलता है. अंतिम दिन मधुश्रावणी मनाई जाती है. टेमीप्रथा का भी प्रयोग किया जाता है.

मधुबनी में मधुश्रावणी पूजा

मधुबनी : बिहार में मिथिलांचल का प्रसिद्ध मधुश्रावणी पर्व शुक्रवार से नाग देवता के पूजन के साथ शुरू हो गया है. यह पर्व नवविवाहिताएं करती हैं. व्रती महिलाओं ने शुक्रवार को नहा धोकर ससुराल से आये रंग बिरंगे कपड़े और आभूषण पहनकर नाग देवता की पूजा अर्चना शुरू की. सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को सम्पन्न होगी. इस व्रत में मुख्य रूप से गौरी और भगवान शिव की पूजा की जाती है. नाग देवता और दशहरा की पूजा अर्चना भी होती है.

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सिर्फ अरवा भोजन करती हैं व्रती : नवविवाहिताएं इस व्रत के दौरान आरवा भोजन ग्रहण कर पूजन आरंभ करती हैं. यह व्रत नव विवाहिताएं बड़े ही धूमधाम से करती हैं. पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला यह व्रत धैर्य और त्याग का प्रतीक है. पर्व को लेकर शोभा झा ने बताया कि मधुश्रावणी व्रत श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू हुई है. इस बार 44 दिनों तक होगी. नवविवाहिताएं वंश वृद्धि, अहिबात वृद्धि के लिए, मान सम्मान के लिए यह व्रत रखती हैं.

मधुश्रावणी पूजा
मधुश्रावणी पूजा

सैकड़ों साल पुरानी है परंपरा : सालों साल से यह व्रत नवविवाहिताएं करती आ रही हैं. विशहरी माता की कृपा से मनोकामना पूरा होती है. पूजा के लिए मिट्टी के बने नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव की प्रतिमा बनाई जाती है और फिर उनकी पूजा फलों, मिठाईयों और फूलों से की जाती है. आठवें और नौवें दिन प्रसाद के रूप में खीर, रसगुल्ला का भोग लगाया जाता है. नवविवाहिता सुबह में फूल तोड़ती हैं विश्हारी, गौरी की पूजा होती है. शाम में फूल से डाली सजाया जाता है. महादेव गौरी की पूजा गीत गाते हुए डाली सजाई जाती है.

19 अगस्त को संपन्न होगा मधुश्रावणी : शोभा झा ने बताया कि सुबह उसी बासी फूल से विशहारी गौरी की पूजा अर्चना की जाती है. यह व्रत इस बार 19 अगस्त को संपन्न होगा. 18 जुलाई से मलमास शुरू हो रहा है. नवविवाहिताएं व्रत के दौरान सेंधा नमक का उपयोग कर सकती हैं और ससुराल से आए अनाज ग्रहण करेंगी. रंजू देवी ने बताया कि बुजुर्ग महिलाएं ही पूजा करने का विधि-विधान और तौर- तरीका बताती हैं. इसके अलावा कथा भी महिलाएं ही कहती हैं. पंडित का काम पुरुष नहीं महिलाएं ही करती हैं. नाग देवता की कथा भी कही जाती है.

मधुश्रावणी पूजा करती व्रती
मधुश्रावणी पूजा करती व्रती

"नवविवाहिता अपने मायके में यह व्रत करती हैं. इसमें नमक नहीं खाती हैं और जमीन पर सोती हैं. शाम में पूजा के बाद ससुराल से आए भोजन सामग्री को ही ग्रहण करती हैं. प्रतिदिन संध्या में नवविवाहिता आरती, सुहाग गीत और कोहबर गीत गाकर भोले शंकर को प्रसन्न करती हैं. यह व्रत मायके और ससुराल दोनों के सहयोग से होती"- शोभा झा, महिला पुरोहित

ससुराल पक्ष से व्रती के लिए आते हैं नए कपड़े : बता दें कि पूजन करने वाली नव विवाहिता ससुराल पक्ष से प्राप्त नए वस्त्र धारण करती हैं. परंपरा रही है कि नव विवाहिता के मायके के सभी सदस्यों के लिए कपड़ा, व्रती के लिए आभूषण, विभिन्न प्रकार के भोजन के लिए सामान भी ससुराल से ही आता है. नवविवाहिता महिलाओं में काफी उत्साह देखने को मिलता है. अंतिम दिन मधुश्रावणी मनाई जाती है. टेमीप्रथा का भी प्रयोग किया जाता है.

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