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मधेपुरा: दौराम संत के नाम पर अंग्रेजों ने रेलवे स्टेशन का नाम रखा था दौराम मधेपुरा - दौराम संत

इतिहास विद डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि संत दौराम के कहने पर अंग्रेज ने ही यहां पर राम-जानकी मेला का आयोजन शुरू किया था, जो अब भी जारी है. हालांकि अब मेले का आयोजन हर वर्ष सरकारी स्तर पर किया जाता है.

madhepura
दौराम मधेपुरा स्टेशन
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Published : Jan 11, 2020, 1:33 PM IST

मधेपुरा: दौराम संत के नाम पर मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम दौराम मधेपुरा रखा गया था. इस इतिहास के बारे में इतिहासविद डॉ. सुरेश कुमार ने जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि अंग्रेज अपने शासनकाल में हिंदुस्तान के संतों की मान मर्यादा का भी ख्याल रखते थे. इसी के चलते अंग्रेजों ने मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम यहां के जाने माने संत के नाम पर रखा था.

मंदिर बनाने के लिए चालीस एकड़ दी जमीन
इतिहासविद डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि अंग्रेजों की ओर से वर्ष 1905 में जब मधेपुरा तक रेलवे लाईन बिछाई जा रही थी, तो लाईन के बीचों बीच दौराम नाम के संत का मंदिर आ गया था. इसके बाद अंग्रेज अपने रेलवे अधिकारी के साथ दौराम संत के पास पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि समाज हित में अपना मंदिर हटा लें. इसके बदले में अंग्रेजों ने संत दौराम को मंदिर बनाने के लिए पथराहा गांव में चालीस एकड़ जमीन दी और उनके नाम पर ही मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम दौराम मधेपुरा रखा गया.

देखें पूरी रिपोर्ट

जमीन को सरकार ने कब्जे में ले लिया
बता दें कि अब भी अंग्रेजों की तरफ से दी गई जमीन पर अर्धनिर्मित पक्का और टीना का मंदिर बना हुआ है. जहां राम और जानकी की मूर्ती स्थापित है. इतिहास विद डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि संत दौराम के कहने पर अंग्रेज ने ही यहां पर राम-जानकी मेला का आयोजन शुरू किया था, जो अब भी जारी है. हालांकि अब मेले का आयोजन हर वर्ष सरकारी स्तर पर किया जाता है. बता दें कि अंग्रेजों की ओर से मंदिर में दी गई सारी जमीन सरकार के कब्जे में चली गई है. इस स्थल को दौरामा डीह भी कहा जाता है.

मधेपुरा: दौराम संत के नाम पर मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम दौराम मधेपुरा रखा गया था. इस इतिहास के बारे में इतिहासविद डॉ. सुरेश कुमार ने जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि अंग्रेज अपने शासनकाल में हिंदुस्तान के संतों की मान मर्यादा का भी ख्याल रखते थे. इसी के चलते अंग्रेजों ने मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम यहां के जाने माने संत के नाम पर रखा था.

मंदिर बनाने के लिए चालीस एकड़ दी जमीन
इतिहासविद डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि अंग्रेजों की ओर से वर्ष 1905 में जब मधेपुरा तक रेलवे लाईन बिछाई जा रही थी, तो लाईन के बीचों बीच दौराम नाम के संत का मंदिर आ गया था. इसके बाद अंग्रेज अपने रेलवे अधिकारी के साथ दौराम संत के पास पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि समाज हित में अपना मंदिर हटा लें. इसके बदले में अंग्रेजों ने संत दौराम को मंदिर बनाने के लिए पथराहा गांव में चालीस एकड़ जमीन दी और उनके नाम पर ही मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम दौराम मधेपुरा रखा गया.

देखें पूरी रिपोर्ट

जमीन को सरकार ने कब्जे में ले लिया
बता दें कि अब भी अंग्रेजों की तरफ से दी गई जमीन पर अर्धनिर्मित पक्का और टीना का मंदिर बना हुआ है. जहां राम और जानकी की मूर्ती स्थापित है. इतिहास विद डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि संत दौराम के कहने पर अंग्रेज ने ही यहां पर राम-जानकी मेला का आयोजन शुरू किया था, जो अब भी जारी है. हालांकि अब मेले का आयोजन हर वर्ष सरकारी स्तर पर किया जाता है. बता दें कि अंग्रेजों की ओर से मंदिर में दी गई सारी जमीन सरकार के कब्जे में चली गई है. इस स्थल को दौरामा डीह भी कहा जाता है.

Intro:मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम दौरम मधेपुरा अंग्रेजों ने रखा था।इतिहास विद डॉ0सुरेश कुमार ने बताया कि दौरम नाम के संत थे उसी के नाम पर रेलवे स्टेशन है।


Body:अंग्रेज अपने शासन काल में हिंदुस्तान के संतों का भी मान मर्यादा का ख्याल रखते थे।इसी का परिणाम है कि अंग्रेजों ने मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम यहां के जाने माने संत के नाम पर रखे थे।मधेपुरा के इतिहास विद डॉ0सुरेश कुमार ने बताया कि अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1905 में जब मधेपुरा तक रेलवे लाईन बिछाया जा रहा था तो लाईन के बीचों बीच दौरम नाम के संत का मंदिर आ गया।इसके बाद अंग्रेजों ने अपने रेलवे अधिकारी के साथ दौरम संत के पास पहुंचा और उनसे आग्रह किया कि समाज हित में अपना मंदिर हटा लें।इसके बदले में अंग्रेजों ने संत दौरम को मंदिर बनाने के लिए पथराहा गांव में चालीस एकड़ जमीन दिया और उनके नाम पर ही मधेपुरा रेलवे स्टेशन का नाम दौरम मधेपुरा रख दिया गया था।बता दें कि अब भी अंग्रेजों के द्वारा दी गई जमीन पर अर्धनिर्मित पक्का और टीना का मंदिर बना हुआ है जहां रामजानकी का मूर्ती स्थापित है।इतिहास विद डॉ0सुरेश कुमार ने बताया कि संत दौरम के कहने पर अंग्रेज द्वारा ही यहां पर रामजानकी मेला का आयोजन शुरू किया गया था,जो अब भी जारी है।हालांकि अब मेले का आयोजन हर वर्ष सरकारी स्तर पर किया जाता है।उल्लेखनीय बात तो यह है कि अंग्रेजों द्वारा मंदिर में दी गई सारी जमीन सरकार के कब्जे में चला गया है।इस स्थल को दौरमा डीह भी कहा जाता है।बाइट-1---डॉ0सुरेश कुमार--इतिहास विद मधेपुरा।


Conclusion:मधेपुरा से रुद्रनारायण की रिपोर्ट।
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