मधेपुरा: बिहार में कोसी, गंडक, बागमती, कमला बलान, गंगा, बूढ़ी गंडक, सरयू, पुनपुन, महानंदा, सोन, लखनदेई, अवधारा, फाल्गू, ये वो नदियां हैं जो हर साल तबाही का कारण बनती हैं. बिहार में बाढ़ (Bihar flood) एक ऐसी कहानी बन चुकी है जिसके हालात में साल दर साल कभी कोई सुधार होता नहीं दिखा. वहीं मधेपुरा (Madhepura) जिले में भी बाढ़ के पानी से लोग त्रस्त आ चुके हैं. साथ ही लोग अपनी जान बचाकर गांव छोड़कर भाग रहे हैं.
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जिला के चौसा और आलमनगर प्रखंड (Alamnagar Block) के कई पंचायतों में बाढ़ का पानी घुस चुका है. लेकिन इसके बाद भी प्रशासन बेखबर है. जिले के चौसा प्रखंड के फुलौत पूर्वी, फुलौत पश्चिमी, मोरसंडा आलमनगर प्रखंड के रतवारा, कपसिया, सोनामुखी, खापुर समेत कई पंचायतों में खासकर निचले इलाकों में बाढ़ के पानी ने लोगों को दहशत में ला दिया है. कोसी नदी (Kosi River In Madhepura) में जलस्तर बढ़ते ही बाढ़ का पानी घुसने लगा है. जिसके कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है.
आश्चर्य इस बात की है कि बाढ़ का पानी तांडव मचा रहा है और अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हुए हैं. बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोग माल-मवेश, बाल बच्चे और खाना-पीना लेकर ऊंचे स्थानों पर शरण ले रहे हैं. बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि पानी से निकलने के लिए सरकारी स्तर पर नाव की भी व्यवस्था नहीं की गई है. निजी नाव संचालक जबरन मनमाना पैसा वसूल रहे हैं. इस मुश्किल की घड़ी में गरीब और लाचार मनमाना पैसा देने को मजबूर भी हैं.
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बता दें कि मधेपुरा जिला के चौसा और आलमनगर प्रखंड में कुल 17 पंचायत हैं. यह सभी पंचायत हर वर्ष बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र घोषित होता है. जिससे हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो जाती है. साथ ही साथ बाढ़ के पानी आने से लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. हर वर्ष कई लोगों की बाढ़ के पानी में डूबने से मौत भी हो जाती है. इतना ही नहीं अब तो पशुओं के लिए चारे की भी समस्या उत्पन्न हो गई है. लोग अपने-अपने मवेशी को लेकर ऊंचे स्थानों पर जाने को मजबूर हैं.
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोगों का कहना है कि हर वर्ष 4-6 महीने तक सड़क पर खुले आसमान के नीचे ही जीवन व्यतीत करना पड़ता है. इसके अलावे झंडापुर, करेलिया, अमनी, मुसहरी, घसकपूरा बासा समेत कई गांवों को कोसी नदी अपने चपेट में ले रही है. लेकिन कटाव रोकने की दिशा में सरकार और स्थानीय प्रशासन कोई सार्थक पहल नहीं कर रहा है. अब तक इन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सरकारी नाव की भी व्यवस्था नहीं की गई है.