लखीसराय: कहते हैं कि मां-बाप खुद धूप में रहकर अपने बच्चों को छांव में रखते हैं. बच्चों को कोई परेशानी न हो, इसको लेकर हर संभव कोशिश करते हैं. इसका एक जीता-जागता उद्हारण बिहार के लखीसराय जिले से सामने आया है. यहां एक किसान दंपति ने दिन-रात खेतों में मेहनत कर अपने बच्चों की जिंदगी संवार दी है. बच्चों को आने वाले समय में खेतों में हल न जोतना पड़े, इसको लेकर ये मां-बाप पूरी कोशिश कर रहे हैं.
खेती कर बच्चों का बनाया भविष्य: बता दें कि जिला समाहरणालय से महज 12 किलोमीटर दूर महिसोना पंचायत के खैरी गांव में किसान मां-पिता अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए दिन-रात खेतों में काम करते हैं. इन्होंने हल्दी की खेती कर एक अपने बच्चों के भविष्य को बनाकर गांव में अपना नाम रौशन किया है. आज इनके बच्चे अपने काम को लेकर दूसरे प्रदेशों में रह रहे हैं.
लखीसराय में हल्दी की खेती: किसान दंपति अपने घर से 500 मीटर की दुरी पर खेती करने निकलते हैं. इनका करीबन एक बीघा से अधिक जमीन है, जिसमें हल्दी का पौधा लगाये हुए हैं और हर दिन अच्छी उपज हो इसके लिए धूप में भी कड़ी मेहनत करते हैं. इसको लेकर सुष्मा देवी ने बताया कि बच्चों के लिए ये सब करना पड़ता है.
एक से दो हजार रुपए का होता है मुनाफा: किसान पिता सिंकदर महतो ने बताया कि लगभग एक कट्ठा जमीन में तीन क्विटंल फसल का उत्पादन होता है. इसको उपजाने में तीन से चार हजार रुपये की लागत होती है, जिससे एक से दो हजार रूपये का फायदा होता है. लेकिन मजदूरी को अगर जोड़ा जाए तो वो भी नहीं बचता.
"खेती करने के लिए सबसे पहले खेतों की जुताई करते हैं, इसके बाद हल्दी का परना बांधना पड़ता है. फिर आलु जैसे ही जमीन में गाड़ा जाता है. इसके बाद कीटनाशक दवा देकर पटवन करते हुए फिर इसे कोड़ते हैं. इस तरह से तीन महीने में इसकी फसल बनकर तैयार हो जाती है."- सिकंदर महतो, किसान पिता
"हर दिन खेती को लेकर अपने खेत में आते हैं. आलू की तरह हल्दी को रोपना और उखाड़ना पड़ता है. इससे हम अपने बच्चों का परवरिस करते हैं. हल्दी तीन से चार महीने में उपज जाती है."- सुष्मा देवी, किसान मां
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