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महानंदा नदी की गोद में 200 परिवार कर रहे गुजर-बसर, सता रहा 2017 का डर - बिहार में बाढ़ का डर

किशनगंज के मंझोक गांव के लोग बाढ़ के खतरे से डर रहे हैं. लोगों को यह डर सता रहा है कि उन्हें कहीं फिर से उनकी जिन्दगी तबाह न हो जाए.

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Published : Jun 23, 2020, 5:49 PM IST

किशनगंज: बिहार में बाढ़ का खतरा फिर से मंडराना शुरू हो गया है. महानंदा नदी के प्रलय से पूरा किशनगंज आज भी डरा हुआ है. 3 साल बीतने के बाद भी मंझोक गांव के लोगों का डर आज भी बना हुआ है. यहां सड़क किनारे 200 परिवार अपनी बदतर जिन्दगी जीने को मजबूर हैं. उन्हें डर सता रहा है कि कहीं फिर से महानंदा का पानी उनकी जिन्दगी न तबाह कर दे.

2017 से सहमे हैं लोग
ग्रामीणों का कहना है कि साल 2017 के बाढ़ में उनका पूरा गांव कट गया था. 2-4 घर बचे और स्कूल किसी भी तरह से बच गया. लेकिन जिनका भी घर बचा है, वो लोग डर से घरों में नहीं रहते हैं. उन्होंने ये बी कहा कि इसके अलावा बच्चों को स्कूल भी भेजना अब दुश्वार हो गया है. दरअसल, स्कूल जाने वाली सड़क बाढ़ में समा गई. ग्रामीणों ने बताया कि पिछले तीन साल से उनके बच्चे स्कूल तक नहीं जा रहे हैं.

kishanganj
प्रभावित इलाकों का जायजा लेते ग्रामीण

'सरकारी सुविधाओं से हैं वंचित'
वहीं, अन्य ग्रामीणों का कहना है कि उनकी जिन्दगी जानवरों जैसी हो गई है. ग्रामीण विष्णू रविदास ने बताया कि कटाव वाले क्षेत्र में रहने के कारण हमारे बच्चे स्कूल तक नहीं जा पाते हैं. उन्होंने कहा कि किसी प्रकार की सरकारी सहयाता तक नसीब नहीं होती है. यहां तक कि इस इलाके में बिजली की भी सुविधा भी नहीं है.

देखिए खास रिपोर्ट

अनुमंडल पदाधिकारी ने दी जानकारी
वहीं, इस मामले में अनुमंडल पदाधिकारी शाहनवाज अहमद नियाजी ने बताया कि इस गांव मे 200 परिवार हैं. जो महानंंदा के प्रलय में विस्थापित हो गए थे. उन्होंने कहा कि वो पिछ्ले तीन सालों से सड़क किनारे गुजर-बसर करने को विवश हैं. ऐसे लोगों के लिए विभाग के तरफ से इन सभी परिवारों को किसी दूसरे पंचायत में बसाया जाएगा. जल्द ही इन्हें सभी तरह की सरकारी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

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बाढ़ से ग्रामीणों में डर

2017 में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने को मजबूर
बता दें कि किशनगंज में साल 2017 भीषण बाढ़ आई थी. जिसमें करीब 200 परिवारों की जिन्दगी बर्बाद हो गई थी. महानंदा नदी में पानी बढ़ने से लोग अपना घर छोड़कर चले गए थे. ग्रामीणों के मुताबिक उस दरम्यान न सरकार और न ही प्रशासन के किसी अधिकारी ने मदद की. इस बात को तीन साल बीत चुके हैं. ऐसे में एक बार फिर से ग्रामीण झुग्गी-झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. लेकिन ग्रामीणों को अब फिर से साल 2017 का डर सता रहा है.

किशनगंज: बिहार में बाढ़ का खतरा फिर से मंडराना शुरू हो गया है. महानंदा नदी के प्रलय से पूरा किशनगंज आज भी डरा हुआ है. 3 साल बीतने के बाद भी मंझोक गांव के लोगों का डर आज भी बना हुआ है. यहां सड़क किनारे 200 परिवार अपनी बदतर जिन्दगी जीने को मजबूर हैं. उन्हें डर सता रहा है कि कहीं फिर से महानंदा का पानी उनकी जिन्दगी न तबाह कर दे.

2017 से सहमे हैं लोग
ग्रामीणों का कहना है कि साल 2017 के बाढ़ में उनका पूरा गांव कट गया था. 2-4 घर बचे और स्कूल किसी भी तरह से बच गया. लेकिन जिनका भी घर बचा है, वो लोग डर से घरों में नहीं रहते हैं. उन्होंने ये बी कहा कि इसके अलावा बच्चों को स्कूल भी भेजना अब दुश्वार हो गया है. दरअसल, स्कूल जाने वाली सड़क बाढ़ में समा गई. ग्रामीणों ने बताया कि पिछले तीन साल से उनके बच्चे स्कूल तक नहीं जा रहे हैं.

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प्रभावित इलाकों का जायजा लेते ग्रामीण

'सरकारी सुविधाओं से हैं वंचित'
वहीं, अन्य ग्रामीणों का कहना है कि उनकी जिन्दगी जानवरों जैसी हो गई है. ग्रामीण विष्णू रविदास ने बताया कि कटाव वाले क्षेत्र में रहने के कारण हमारे बच्चे स्कूल तक नहीं जा पाते हैं. उन्होंने कहा कि किसी प्रकार की सरकारी सहयाता तक नसीब नहीं होती है. यहां तक कि इस इलाके में बिजली की भी सुविधा भी नहीं है.

देखिए खास रिपोर्ट

अनुमंडल पदाधिकारी ने दी जानकारी
वहीं, इस मामले में अनुमंडल पदाधिकारी शाहनवाज अहमद नियाजी ने बताया कि इस गांव मे 200 परिवार हैं. जो महानंंदा के प्रलय में विस्थापित हो गए थे. उन्होंने कहा कि वो पिछ्ले तीन सालों से सड़क किनारे गुजर-बसर करने को विवश हैं. ऐसे लोगों के लिए विभाग के तरफ से इन सभी परिवारों को किसी दूसरे पंचायत में बसाया जाएगा. जल्द ही इन्हें सभी तरह की सरकारी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

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बाढ़ से ग्रामीणों में डर

2017 में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने को मजबूर
बता दें कि किशनगंज में साल 2017 भीषण बाढ़ आई थी. जिसमें करीब 200 परिवारों की जिन्दगी बर्बाद हो गई थी. महानंदा नदी में पानी बढ़ने से लोग अपना घर छोड़कर चले गए थे. ग्रामीणों के मुताबिक उस दरम्यान न सरकार और न ही प्रशासन के किसी अधिकारी ने मदद की. इस बात को तीन साल बीत चुके हैं. ऐसे में एक बार फिर से ग्रामीण झुग्गी-झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. लेकिन ग्रामीणों को अब फिर से साल 2017 का डर सता रहा है.

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