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किशनगंज: सरना धर्म कोड लागू करने की मांग को लेकर आदिवासियों ने किया प्रदर्शन - किशनगंज में आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन

किशनगंज में आदिवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया. बताया जा रहा है कि सरना धर्म कोड की मांग को लेकर आदिवासियों ने किशनगंज रेलवे स्टेशन में रेलवे ट्रैक को जामकर प्रदर्शन किया.

Kisanganj
सरना धर्म कोड लागू करने की मांग को लेकर आदिवासियों ने की प्रदर्शन
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Published : Jan 31, 2021, 7:24 PM IST

किशनगंज: आदिवासी स्वयं को किसी भी संगठित धर्म का हिस्सा नहीं मानते हैं, इसलिए वे लंबे समय से अपने लिए अलग धर्म कोड 'सरना धर्म कोड' की मांग करते रहे हैं. इसी को लेकर रविवार को आदिवासी सेंगेल अभियान समिति के बैनर तले सैकड़ों आदिवासी 'सरना धर्म कोड' को लागू करने की मांग को लेकर किशनगंज रेलवे स्टेशन पर पहुंचे और ट्रेन रोककर रेलवे ट्रैक पर बैठे गए, जिसकी वजह से गुवाहाटी-दिल्ली और गुवाहाटी-कोलकाता रेलवे रूट बाधित हो गया.

आदिवासियों ने किया रेलवे ट्रैक जाम
आदिवासियों ने सरना धर्म कोड की मांग को लेकर रेलवे ट्रैक जाम कर घंटों प्रदर्शन किया. प्रदर्शन की वजह से घंटों ट्रेनों का परिचालन ठप रहा. रेलवे ट्रैक को जाम कर अपनी मांगों को लेकर इन लोगों ने विरोध जमकर प्रदर्शन किया. काफी मशक्कत के बाद आदिवासियों को समझा-बुझाकर करीब 1 घंटे बाद रेलवे ट्रैक खाली करवाया गया.

5 राज्यों किया गया रेल-रोड चक्का जाम
आदिवासी सेंगेल अभियंता समिति के प्रदेशाध्यक्ष विश्वनाथ टुडू ने बताया कि आदिवासी सेंग्ल अभियान की तरफ से आज देश के 5 राज्यों बिहार, बंगाल, ओडिशा, आसाम झारखंड में 2021 की जनगणना में आदिवासियों के 'सरना धर्म कोड' की मांग के लिए रेल-रोड चक्का जाम अभियान चलाया गया है.

आदिवासियों को नहीं मिली अब-तक धार्मिक पहचान
आदिवासी नेता ने बताया की भारत में 2021 जनगणना का वर्ष है, जिसमें भारत देश के आदिवासियों को अब तक धार्मिक पहचान और मान्यता के साथ शामिल होने का अधिकार प्राप्त नहीं है. उन्होंने बताया कि आज पूरे भारत में करीब 15 करोड़ आदिवासी हैं, लेकिन आजतक अनुच्छेद 25 के तहत उन्हें धार्मिक मान्यता नहीं मिली है. जिससे सभी आदिवासी आज संघर्षरत हैं.

विवाद की वजह

  • साल 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था, लेकिन साल 1962 के जनगणना प्रपत्र से इसे हटा दिया गया.
  • 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्य में रहने वाले लगभग 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र के अन्य कॉलम में सरना धर्म लिखा.
  • इस बीच 1931 से 2011 के दौरान आदिवासियों जनसंख्या 38.03 से घटकर 26.03 प्रतिशत हो गई है.
  • धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है.

जनगणना प्रपत्र में धर्म कोड क्या है
जनगणना प्रपत्र में कुल 7 कॉलम हैं. 6 कॉलम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म के लिए है. जबकि, सातवां कॉलम अन्य धर्म को अंकित करने के लिए है. आदिवासी मामलों के जानकारों की दलील है कि 2011 की जनगणना में 42.35 लाख आदिवासियों ने 7वें कॉलम में अपने धर्म का जिक्र किया. इनमें 41.31 लाख लोगों ने खुद को सरना धर्मावलंबी बताया. यानी 97% लोग सरना धर्म के पक्ष में थे. जबकि, महज 3% लोगों ने 7वें कॉलम में खुद के धर्म को आदिवासी या अन्य लिखा.

किशनगंज: आदिवासी स्वयं को किसी भी संगठित धर्म का हिस्सा नहीं मानते हैं, इसलिए वे लंबे समय से अपने लिए अलग धर्म कोड 'सरना धर्म कोड' की मांग करते रहे हैं. इसी को लेकर रविवार को आदिवासी सेंगेल अभियान समिति के बैनर तले सैकड़ों आदिवासी 'सरना धर्म कोड' को लागू करने की मांग को लेकर किशनगंज रेलवे स्टेशन पर पहुंचे और ट्रेन रोककर रेलवे ट्रैक पर बैठे गए, जिसकी वजह से गुवाहाटी-दिल्ली और गुवाहाटी-कोलकाता रेलवे रूट बाधित हो गया.

आदिवासियों ने किया रेलवे ट्रैक जाम
आदिवासियों ने सरना धर्म कोड की मांग को लेकर रेलवे ट्रैक जाम कर घंटों प्रदर्शन किया. प्रदर्शन की वजह से घंटों ट्रेनों का परिचालन ठप रहा. रेलवे ट्रैक को जाम कर अपनी मांगों को लेकर इन लोगों ने विरोध जमकर प्रदर्शन किया. काफी मशक्कत के बाद आदिवासियों को समझा-बुझाकर करीब 1 घंटे बाद रेलवे ट्रैक खाली करवाया गया.

5 राज्यों किया गया रेल-रोड चक्का जाम
आदिवासी सेंगेल अभियंता समिति के प्रदेशाध्यक्ष विश्वनाथ टुडू ने बताया कि आदिवासी सेंग्ल अभियान की तरफ से आज देश के 5 राज्यों बिहार, बंगाल, ओडिशा, आसाम झारखंड में 2021 की जनगणना में आदिवासियों के 'सरना धर्म कोड' की मांग के लिए रेल-रोड चक्का जाम अभियान चलाया गया है.

आदिवासियों को नहीं मिली अब-तक धार्मिक पहचान
आदिवासी नेता ने बताया की भारत में 2021 जनगणना का वर्ष है, जिसमें भारत देश के आदिवासियों को अब तक धार्मिक पहचान और मान्यता के साथ शामिल होने का अधिकार प्राप्त नहीं है. उन्होंने बताया कि आज पूरे भारत में करीब 15 करोड़ आदिवासी हैं, लेकिन आजतक अनुच्छेद 25 के तहत उन्हें धार्मिक मान्यता नहीं मिली है. जिससे सभी आदिवासी आज संघर्षरत हैं.

विवाद की वजह

  • साल 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था, लेकिन साल 1962 के जनगणना प्रपत्र से इसे हटा दिया गया.
  • 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्य में रहने वाले लगभग 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र के अन्य कॉलम में सरना धर्म लिखा.
  • इस बीच 1931 से 2011 के दौरान आदिवासियों जनसंख्या 38.03 से घटकर 26.03 प्रतिशत हो गई है.
  • धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है.

जनगणना प्रपत्र में धर्म कोड क्या है
जनगणना प्रपत्र में कुल 7 कॉलम हैं. 6 कॉलम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म के लिए है. जबकि, सातवां कॉलम अन्य धर्म को अंकित करने के लिए है. आदिवासी मामलों के जानकारों की दलील है कि 2011 की जनगणना में 42.35 लाख आदिवासियों ने 7वें कॉलम में अपने धर्म का जिक्र किया. इनमें 41.31 लाख लोगों ने खुद को सरना धर्मावलंबी बताया. यानी 97% लोग सरना धर्म के पक्ष में थे. जबकि, महज 3% लोगों ने 7वें कॉलम में खुद के धर्म को आदिवासी या अन्य लिखा.

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