किशनगंजः जिले में मोहर्रम के चौथे दिन से ही ताजिया जुलूस निकाला जा रहा है. यह जुलूस विभिन्न मोहल्लों से होता हुआ कर्बला मैदान ले जाया जाता है. इस दौरान लाठियों और तलवार का करतब दिखाया जाता है. जिसे देखने के लिए सड़कों पर लोगों का हुजूम लगता है. शिया समुदाय के लोग ये मातम जुलूस निकालते हैं.
शिया समुदाय के लिए गम का त्योहार
इस्लाम धर्म में मोहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार मोहर्रम का महीना 1 सितंबर से शुरू हुआ है. इस महीने का दसवां दिन सबसे अहम होता है. इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहते हैं. इस साल रोज-ए-आशुरा यानी मोहर्रम 10 सितंबर को है. शिया मुस्लिम समुदाय इसे गम का महीना के तौर पर मनाते हैं. मुस्लमान समुदाय के लिए मोहर्रम का महीना बेहद खास माना जाता है, उसमें भी दसवें दिन का महत्व सबसे ज्यादा है.
हुई थी इमाम हुसैन की शहादत
किशनगंज में मोहर्रम शिया और सुन्नी दोनों समुदाय मनाते हैं. दोनों के लिए इसे मनाने का तरीका और मान्यताएं अलग-अलग हैं. जिले में मोहर्रम का चांद दिखते ही शिया मुस्लिमों के घरों और इमामबाड़ा में मजलिसों का दौर शुरू हो जाता है. इमाम हुसैन की शहादत के गम में शिया मुस्लिम मातम करते हुए जुलूस निकालते हैं. पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मोहर्रम मनाया जाता है.
सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था
वहीं, मोहर्रम में निकाले जाने वाले ताजिया जुलूस को लेकर प्रशासन ने शहर के मुख्य चौक-चौराहों पर पुलिस बल तैनात कर दिए हैं. इलाके में पुलिस अधिकारी लगातार गश्ती कर रहे हैं. गुरुवार से ताजिया जुलूस की शुरुआत हो चुकी है. 10 सितंबर को मोहर्रम के दिन विशाल जुलूस निकाला जाएगा. मोहर्रम को लेकर जिला प्रशासन शांति समिति और नागरिक एकता मंच के सदस्यों से भी सहयोग ले रहे हैं. ताकि जिला में शांति और सद्भाव का माहौल बना रहे.