किशनगंज: जिले में खेती का ट्रेंड बदलने लगा है. परंपरागत खेती को छोड़ जिले के किसान अब कैश क्रॉप की खेती की ओर रुख करने लगे हैं. इसी क्रम में कई किसान रेशम उत्पादन कर लागत से 4 गुना ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. इसकी खेती अन्य फसलों की खेती के अपेक्षा काफी सरल और कम मेहनत वाली होती है.
जानकारी के मुताबिक किशनगंज के मोती हारा तालुका में किसानों ने रेशम के पौधे की खेती शुरू की है. इससे वे समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं. शहतूत की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि एक बार शहतूत का पौधा लगाने के बाद 17 से 20 साल तक आसानी से उससे रेशम तैयार किया जाता है.
खेती बहुल इलाका है किशनगंज
गौरतलब है कि किशनगंज मुख्यतः धान, मक्का और केला की खेती के लिए जाना जाता है. हर वर्ष आने वाली बाढ़ की वजह से फसल बर्बाद हो जाती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. किसानों ने बताया कि शहतूत से तैयार रेशम को बेचने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता है. रेशम के तैयार होते ही व्यापारी आते है और नकद पैसा देकर घर से ही रेशम खरीद कर ले जाते हैं.
किसानों ने बताए फायदे
रेशम का उत्पादन करने वाले किसानों का कहना है कि इसके पौधों को प्रतिवर्ष खेतों में नहीं लगाना पड़ता है. एक बार पौधा लगा देने के बाद कई वर्षों तक इसके पत्तों से रेशम तैयार किया जाता है. वहीं रेशम के कीड़े जीविका की ओर से समय से मुहैया करा दिए जाते हैं. जिले के किसान तैयार रेशम को मालदा से आने वाले रेशम व्यापारियों को बेच देते हैं.
जिला परियोजना पदाधिकारी ने दी जानकारी
किशनगंज जिला के परियोजना पदाधिकारी अवधेश कुमार ने बताया कि इस खेती मे किसानो को अत्यधिक लाभ है. इसमें कभी किसानों को नुकसान नहीं होता है. साथ ही इस खेती को मौसम के मार का भी डर नहीं है. जहां लॉकडाउन मे सभी वर्ग को नुकसान सहना पड़ा है. वहीं रेशम किसान इस समय में भी मुनाफा कमा रहे हैं.