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बाढ़ से बेजुबानों का हाल-बेहाल, जान जोखिम में डालकर बुझानी पड़ती है पेट की आग

बाढ़ के कारण आम लोगों के साथ-साथ मवेशी भी काफी परेशान हैं. उनके सामने भी खाने-पीने का संकट आ गया है.

बाढ़ के कारण बढ़ी पशुपालकों को परेशानी
बाढ़ के कारण बढ़ी पशुपालकों को परेशानी
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Published : Aug 16, 2020, 7:21 PM IST

कटिहार: कोरोना के बीच बाढ़ के कारण लोगों का हाल बेहाल है. बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों के सामने खाने-पीने का संकट आन पड़ा है. सबसे ज्यादा परेशानी तो बेजुबानों को झेलनी पड़ रही है. मवेशी बाढ़ के पानी में जान खतरे में डालकर पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं.

स्थानीय पशुपालकों की मानें तो उन्हें 5 किलोमीटर दूर बाढ़ के पानी में तैरकर जाना पड़ता है. तब जाकर उन्हें कहीं चारा नसीब होता है. जिन्दगी बचाने की इस जद्दोजहद में कई बार पशुपालक और मवेशियों की जान चली जाती है. सरकार की ओर से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है.

katihar
जान जोखिम में डालकर जीने को मजबूर लोग

महानंदा नदी के कारण भारी तबाही
कटिहार के प्राणपुर प्रखंड के मनिया कोठी में चंद दिनों पहले खेतों में अगहनी धान के पौधे लगाए गए थे. लेकिन इलाके में आए सैलाब की तबाही के कारण धान पूरी तरह डूब गया. गाय-बैल और अन्य मवेशी इस बाढ़ के बीच चारा के लिए दूसरे किनारे पर जाते हैं. इलाके में महानंदा नदी के सैलाब के कारण भारी तबाही देखने को मिल रही है.

katihar
बाढ़ के कारण जीवन बाधित

10 से 15 फीट तक पानी
बाढ़ के कारण निचले इलाके में पानी घुस गया है. करीब 10 से 15 फीट पानी अब भी मौजूद है. बाढ़ का प्रभाव आम लोगों के साथ-साथ मवेशियों की जीवन पर भी पड़ा है. पशुपालक अजय महलदार बताते हैं कि पानी आ जाने से बहुत दिक्कतें हो रही हैं. कहीं घास-भूसे मिलते नहीं है इसलिए जहां घास मिलने की जानकारी मितली है, वहां जाना पड़ता है. सूखा चारा इतना महंगा मिलता है कि खरीदना संभव नहीं है.

katihar
पशुपालकों ने बताई आपबीती

नाकाफी साबित हो रही सरकारी मदद
बहरहाल सुशासन बाबू दावा करते हैं कि बाढ़ प्रभावित इलाके में पीड़ितों को हर मुमकिन मदद की जायेगी. साथ ही मवेशियों के लिए भी पशुपालन विभाग के जरिए सूखे चारे का बंदोबस्त कराया जाएगा. लेकिन जमीन पर सुशासन बाबू का यह दावा फेल नजर आता है. बेजुबान अपने पेट की आग बुझाने के लिए काफी जद्दोजहद करते दिख रहे हैं.

कटिहार: कोरोना के बीच बाढ़ के कारण लोगों का हाल बेहाल है. बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों के सामने खाने-पीने का संकट आन पड़ा है. सबसे ज्यादा परेशानी तो बेजुबानों को झेलनी पड़ रही है. मवेशी बाढ़ के पानी में जान खतरे में डालकर पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं.

स्थानीय पशुपालकों की मानें तो उन्हें 5 किलोमीटर दूर बाढ़ के पानी में तैरकर जाना पड़ता है. तब जाकर उन्हें कहीं चारा नसीब होता है. जिन्दगी बचाने की इस जद्दोजहद में कई बार पशुपालक और मवेशियों की जान चली जाती है. सरकार की ओर से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है.

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जान जोखिम में डालकर जीने को मजबूर लोग

महानंदा नदी के कारण भारी तबाही
कटिहार के प्राणपुर प्रखंड के मनिया कोठी में चंद दिनों पहले खेतों में अगहनी धान के पौधे लगाए गए थे. लेकिन इलाके में आए सैलाब की तबाही के कारण धान पूरी तरह डूब गया. गाय-बैल और अन्य मवेशी इस बाढ़ के बीच चारा के लिए दूसरे किनारे पर जाते हैं. इलाके में महानंदा नदी के सैलाब के कारण भारी तबाही देखने को मिल रही है.

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बाढ़ के कारण जीवन बाधित

10 से 15 फीट तक पानी
बाढ़ के कारण निचले इलाके में पानी घुस गया है. करीब 10 से 15 फीट पानी अब भी मौजूद है. बाढ़ का प्रभाव आम लोगों के साथ-साथ मवेशियों की जीवन पर भी पड़ा है. पशुपालक अजय महलदार बताते हैं कि पानी आ जाने से बहुत दिक्कतें हो रही हैं. कहीं घास-भूसे मिलते नहीं है इसलिए जहां घास मिलने की जानकारी मितली है, वहां जाना पड़ता है. सूखा चारा इतना महंगा मिलता है कि खरीदना संभव नहीं है.

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पशुपालकों ने बताई आपबीती

नाकाफी साबित हो रही सरकारी मदद
बहरहाल सुशासन बाबू दावा करते हैं कि बाढ़ प्रभावित इलाके में पीड़ितों को हर मुमकिन मदद की जायेगी. साथ ही मवेशियों के लिए भी पशुपालन विभाग के जरिए सूखे चारे का बंदोबस्त कराया जाएगा. लेकिन जमीन पर सुशासन बाबू का यह दावा फेल नजर आता है. बेजुबान अपने पेट की आग बुझाने के लिए काफी जद्दोजहद करते दिख रहे हैं.

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