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कैसे बनेगा डिजिटल बिहार? कैमूर के 100 से अधिक गांवों में आज भी नहीं मिलता मोबाइल टॉवर , इंटरनेट तो दूर की बात

कैमूर के चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों गांव हैं जहां बुनियादी सुविधा तक मौजूद नहीं है. गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता है ऐसे में इंटरनेट की बात करना बेमानी लगती है.

गांव का नहीं हुआ विकास
गांव का नहीं हुआ विकास
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Published : Aug 2, 2020, 5:07 PM IST

Updated : Aug 3, 2020, 4:34 PM IST

कैमूर: कोरोना महामारी के कारण सामाजिक और आर्थिक जीवन प्रभावित है. इस काल ने सरकार के डिजिटल इंडिया के कई दावों की पोल खोल दी है. यह बता दिया है कि भले की भारत इंटरनेट की खपत में विश्व गुरु क्यों न हो. लेकिन इसकी पहुंच अभी सम्पूर्ण भारत तक नहीं हो सकी है. कोरोना के इस विकट परिस्थिति में एक तरफ जहां सरकार डिजिटल शिक्षा पर जोर दे रहा है तो दूसरी तरफ कैमूर के चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों गांव हैं, जहां के लोगों का सामना आज भी इंटरनेट से नहीं हुआ है.

चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में गांवों की संख्या लगभग 120 है. जहां इंटरनेट तो दूर की बात है, मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता है. ऐसे में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि इस काल ने देश में डिजिटल गैप को न सिर्फ बढ़ावा दिया है, बल्कि सरकार को आईना दिखाने का भी काम किया है. वहीं, कैमूर पहाड़ी श्रृंखला में 150 से अधिक ऐसे गांव है जो डिजिटल शिक्षा से दूर हैं.

kaimur
कैमूर पहाड़ियों का नजारा

कैमूर की साक्षरता दर
कैमूर की साक्षरता दर 71.01 प्रतिशत है. जिसमें पुरुष और महिलाओं की बात की जाए तो क्रमशः 81.49 और 59.56 प्रतिशत है. ईटीवी भारत की टीम में कैमूर के घने जंगलों में बसे गांव से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर डिजिटल इंडिया और बिहार की हकीकत जानने की कोशिश की. चैनपुर विधानसभा के करीब 120 गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं है. यही नहीं कैमूर पहाड़ों पर बसे सैकड़ों गांवों में आज भी ऐसे हजारों घर परिवार हैं जिनके घर मे टीवी तक नहीं है. यहां के लोगों को बुनियादी सुविधा तक नसीब नहीं है.

kaimur
गांव में नहीं हुआ विकास

नहीं है डिजिटल शिक्षा की गुंजाइश
जिला मुख्यालय करीब 27 किमी जबकि विश्व प्रसिद्ध मां मुंडेश्वरी धाम से महज 15 किमी दूर पहाड़ के तराई में बसे रामगढ़ पंचायत के गांव मोकरी खोह, चुआ, पढुरी पथलोईआ गांव के ग्रामीणों ने बताया कि गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं आता है. ऐसे में मां मुंडेश्वरी धाम जो कि करीब 15 किमी दूर है वहां जाकर कॉल करते है. ऐसे में इन इलाकों में इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा की दूर-दूर तक कोई गुंजाइश नहीं है.

kaimur
प्राथमिक स्कूलों में मौजूद नहीं है सुविधाएं

ऐसे दिन बिताते हैं बच्चे
गांव के स्कूली बच्चों ने बताया कि विद्यालय करीब 5 महीनों से बन्द है. कोई शिक्षक भी स्कूल नहीं आते है. ऐसे में बच्चे गांव में रहते हैं और पूरे दिन बकरी, गाय चराते हैं. बच्चों ने बताया कि उन्हें पढ़ाई पसंद है. लेकिन कोई संसाधन नहीं है. बावजूद घर पर रोज शाम खुद से थोड़ा बहुत पढ़ाई करते हैं. लेकिन गांव में टीवी और मोबाइल नेटवर्क न रहने से पढ़ाई पूरी तरह बाधित है इसलिए पशुपालन में परिवार वालों की मदद करते हैं.

कैमूर: कोरोना महामारी के कारण सामाजिक और आर्थिक जीवन प्रभावित है. इस काल ने सरकार के डिजिटल इंडिया के कई दावों की पोल खोल दी है. यह बता दिया है कि भले की भारत इंटरनेट की खपत में विश्व गुरु क्यों न हो. लेकिन इसकी पहुंच अभी सम्पूर्ण भारत तक नहीं हो सकी है. कोरोना के इस विकट परिस्थिति में एक तरफ जहां सरकार डिजिटल शिक्षा पर जोर दे रहा है तो दूसरी तरफ कैमूर के चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों गांव हैं, जहां के लोगों का सामना आज भी इंटरनेट से नहीं हुआ है.

चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में गांवों की संख्या लगभग 120 है. जहां इंटरनेट तो दूर की बात है, मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता है. ऐसे में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि इस काल ने देश में डिजिटल गैप को न सिर्फ बढ़ावा दिया है, बल्कि सरकार को आईना दिखाने का भी काम किया है. वहीं, कैमूर पहाड़ी श्रृंखला में 150 से अधिक ऐसे गांव है जो डिजिटल शिक्षा से दूर हैं.

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कैमूर पहाड़ियों का नजारा

कैमूर की साक्षरता दर
कैमूर की साक्षरता दर 71.01 प्रतिशत है. जिसमें पुरुष और महिलाओं की बात की जाए तो क्रमशः 81.49 और 59.56 प्रतिशत है. ईटीवी भारत की टीम में कैमूर के घने जंगलों में बसे गांव से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर डिजिटल इंडिया और बिहार की हकीकत जानने की कोशिश की. चैनपुर विधानसभा के करीब 120 गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं है. यही नहीं कैमूर पहाड़ों पर बसे सैकड़ों गांवों में आज भी ऐसे हजारों घर परिवार हैं जिनके घर मे टीवी तक नहीं है. यहां के लोगों को बुनियादी सुविधा तक नसीब नहीं है.

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गांव में नहीं हुआ विकास

नहीं है डिजिटल शिक्षा की गुंजाइश
जिला मुख्यालय करीब 27 किमी जबकि विश्व प्रसिद्ध मां मुंडेश्वरी धाम से महज 15 किमी दूर पहाड़ के तराई में बसे रामगढ़ पंचायत के गांव मोकरी खोह, चुआ, पढुरी पथलोईआ गांव के ग्रामीणों ने बताया कि गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं आता है. ऐसे में मां मुंडेश्वरी धाम जो कि करीब 15 किमी दूर है वहां जाकर कॉल करते है. ऐसे में इन इलाकों में इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा की दूर-दूर तक कोई गुंजाइश नहीं है.

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प्राथमिक स्कूलों में मौजूद नहीं है सुविधाएं

ऐसे दिन बिताते हैं बच्चे
गांव के स्कूली बच्चों ने बताया कि विद्यालय करीब 5 महीनों से बन्द है. कोई शिक्षक भी स्कूल नहीं आते है. ऐसे में बच्चे गांव में रहते हैं और पूरे दिन बकरी, गाय चराते हैं. बच्चों ने बताया कि उन्हें पढ़ाई पसंद है. लेकिन कोई संसाधन नहीं है. बावजूद घर पर रोज शाम खुद से थोड़ा बहुत पढ़ाई करते हैं. लेकिन गांव में टीवी और मोबाइल नेटवर्क न रहने से पढ़ाई पूरी तरह बाधित है इसलिए पशुपालन में परिवार वालों की मदद करते हैं.

Last Updated : Aug 3, 2020, 4:34 PM IST
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