जमुई: जिले में कुल 10 प्रखंड है, जिसमें 153 पंचायत और करीब 1528 गांव हैं. जिसकी आबादी लाखों में है. जमुई जिला अति नक्सल प्रभावित इलाका है, इस लिहाज से यहां उद्योग से लेकर तमाम रोजगार परक संस्थाओं की घोर कमी है.
समय के साथ-साथ जमुई विकास हुआ. यहां रोजगार के कुछ साधन सृजित भी हुए. छोटे-छोटे होटल और रेस्टोरेंटों की भरमार हो गई. लेकिन, ये सब बेरोजगारी दूर करने के लिए नाकाफी है. वहीं जिला प्रशासन की ओर से रोजगार सृजन करने की कोई ठोस पहल नहीं किया जा रहा है.
काम की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं मजदूर
जिला मुख्यालय के महिसौढी चौक और कचहरी चौक का नाम बदलकर लेबर चौक कर दिया जाए तो यह गलत नहीं होगा. कारण यहां दिन-रात लगने वाले मजदूरों की भीड़ है. जिस तरह इस दोनों चौराहों पर सैकड़ों की संख्या में मजदूर काम ढूंढने आते हैं, उससे तो यही लगता है कि यह किसी बड़े शहर का लेबर चौक है. दरअसल, यहां सुबह में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण इलाके की मजदूर पैसे खर्च कर मजदूरी ढूंढने आते हैं. जिन्हें काम मिल जाता है, वह अपने आप को नसीब वाला समझते हैं. जबकि कई ऐसे भी बदनसीब मजदूर हैं, जिन्हें काम की तलाश में घंटो बीत जाते हैं. लेकिन, उसकी बदनसीबी उनका पीछा नहीं छोड़ती. उन्हें काम नहीं मिलता है. वह वापस अपने घर लौट जाते हैं. फिर वह अगली सुबह का इंतजार करते हैं कि उन्हें काम मिलेगा और इस तरह वह अपने परिवार और बच्चों का पेट भर सकेंगे.
क्या कहते हैं अधिकारी?
मजदूरों से बात करने के बाद जो खुलासा हुआ वह बेहद चौंकाने वाला था. पूछे जाने पर ज्यादातर मजदूरों का कहना था कि ना तो उनके पास किसी तरह का कोई जॉब कार्ड है और ना ही प्रशासन की ओर से उन्हें काम की गारंटी मिलने जैसी कोई बात हुई है. हालांकि जब इस बाबत हमने श्रम अधीक्षक से बात कि तो उन्होंने संज्ञान लेते हुए कहा कि अगर उनके पास जॉब कार्ड या फिर किसी तरह की कोई सुविधा नहीं मिल रही है तो उनकी समस्या को जल्द ही दूर कर दिया जाएगा. जबकि ग्रामीण विभाग विभाग के पदाधिकारी अरुण कुमार ठाकुर ने चुनाव का हवाला देते हुए मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया.
जिले का अस्तित्व
मुंगेर से अलग होने के बाद 21 फरवरी 1991 को जमुई जिला अपने अस्तित्व में आया. 2011 के जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 1760405 है, जबकि यहां आदिवासी से लेकर बड़ी संख्या में समाज के पिछड़े तबके जो असल में मजदूर वर्ग के लोग हैं वह रहते हैं. ऐसा नहीं है कि जिला प्रशासन की ओर से जिले में विकासोन्मुखी काम नहीं हुए, लेकिन अति नक्सल प्रभावित माने जाने वाले इस इलाके के गरीब मजदूर आज भी 2 वक्त की रोजी-रोटी की जुगाड़ में दर-दर भटकने को मजबूर हैं. वे यहां से पलायन कर, बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं.