जमुई: पेट्रोल डीजल के बढ़े दामों से आम लोगों के साथ-साथ किसानों का जीवन भी प्रभावित हुआ है. किसान अब खेतों में पटवन के लिए पुरानी तकनीक पर लौटते दिख रहे हैं. किसान खेतों में फसल के पटवन के लिए 'लाट कुड़ी' चला रहे हैं.
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''बिहार में सरकार की योजनाएं धरातल पर नहीं हैं. सरकार की सभी घोषणाएं और सभी वादे झूठे हैं. 50 गांव के किसान पानी को लेकर परेशान हैं और त्राहिमाम कर रहे हैं. इससे बढ़िया तो ब्रिटिश सरकार का कानून था, जो बहुत टाइट था. एक पत्ता भी नहीं हिलता था"- हरि यादव, किसान
कई गांव पानी के लिए परेशान
तिलकपुर गांव के किसान हरि यादव ने बताया कि अगल बगल इलाके की बात करें तो तिलकपुर, काश्मीर, पूर्णा खैरा, डाब, धटवारी, वरियारपुर, खड़ुई, डुंडो, मिर्चा, पाठकचक, ईटासागर आदि दर्जनों गांव के किसान पानी के लिए परेशान हैं. 5000 बीघा से अधिक खेतों में पटवन नहीं हो पा रहा है. इन गांवों में पटवन का एकमात्र साधन बोरिंग या फिर आसमानी बारिश है.
पटवन के लिए चला रहे 'लाट कुड़ी'
कई जगह खेतों में पुराने कुएं आज भी मौजूद हैं, जिससे पटवन का काम होता था. किसान डीजल पंप चलाकर पटवन किया करते थे. अब तो तेल और बिजली के दाम बढ़ते जा रहे हैं. मोटर और डीजल पंप का खर्चा उठाना किसानों के बस में नहीं हैं. जहां तक संभव है कुएं पर 'लाट कुड़ी' चलाकर कुछ खेतों में फसल और सब्जी उपजा पाते हैं.
किसानों को सरकारी मदद की आस
किसान हरि यादव ने बताया कि हम पहले धान और गेहूं के साथ-साथ आलू, प्याज आदि फसल आसानी से उपजा लेते थे. 100 मन धान कभी व्यापारी के पास तो कभी पैक्स में बेच भी लेते थे. व्यापारी तो नगद दे देता है, लेकिन पैक्स वाले महीनों बाद पैसे देते हैं. पैक्स में सरकारी दाम भी नहीं मिल पाता है.
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पटवन के लिए पुरानी तकनीक का उपयोग
अब जमीन के पानी का लेयर भी खत्म होता जा रहा है. सरकारी योजनाओं का कोई फायदा नहीं मिल रहा है. न तो नल का जल और न ही खेतों में बोरिंग के लिए कुछ सहायता दी जा रही है. ऊपर से तेल बिजली के दाम इतने बढ़ गए हैं कि डीजल पंप और मोटर चलाकर खेतों के पटवन का खर्च उठाना संभव नहीं है. मजबूरन खेतों में पुराने कुएं से 'लाट कुड़ी' चलाकर कुछ फसल उपजा लेते हैं.