गोपालगंजः रेबिज दुनियाभर में स्वास्थ्य के लिए चुनौती बना हुआ है. कुत्तों के हमले से हर कोई सहमा रहता है. बिहार के कई जिलों में रेबिज के काटने से कई लोगों के मरने की खबर आती रहती है. सिर्फ गोपालगंज में कुत्तों के काटने से प्रतिवर्ष 10 हजार से ज्यादा लोग सदर अस्पताल में एंटी रैबीज की इंजेक्शन लेने पहुंचते हैं. डॉक्टर के अनुसार ठंड मौसम में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. आवारा कुत्तों को एंटी रैबीज इंजेक्शन देने की पहल अब तक शुरू नहीं हुई है.
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ठंड के मौसम में बढ़े जाते हैं मरीजः ठंड के महीने में कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. नवम्बर से लेकर जनवरी तक कुत्ता, बंदर, सियार के काटने के 50 से 150 मरीज रोजाना जिले के सरकारी अस्पतालों में पहुंचते हैं. इनमे अधिकांश सियार और कुत्ते शामिल हैं. प्रतिदान 40 से 45 एंटी रैबीज की इंजेक्शन लेने के लिए मरीज अस्पताल पहुंचते हैं.
एंटी रैबिज इंजेक्शन दिलवाएंः जिले में अगस्त माह में 1044 मरीजों को एंटी रैबीज की इंजेक्शन दी गई. इसी वर्ष जनवरी में 1859 मरीज एंटी रैबीज इंजेक्शन के लिए अस्पताल पहुंचे थे. पशु अस्पताल के चिकित्सक डॉ राकेश कुमार ने बताया कि वैसे तो कुत्तों को एंटी रैबिज का वैक्सीन जन्म से 90 दिनों के अंदर पहला डोज और दूसरा बूस्टर डोज 21 से 28 दिन के बीच दिलवाना चाहिए. इसके बाद प्रतिवर्ष एंटी रैबिज का इंजेक्शन दिलवाना चाहिए.
"अगर आप अपने घर में कुत्ते पालते हैं तो आपको भी प्री बैक्सिनेशन तौर पर एंटी रेबीज का इंजेक्शन जरूर लेना चाहिए. चाहे कुत्ता काटे या ना काटे. क्योंकि कुत्तों के लार से घर में संक्रमण फैल सकता है. कुत्ते के संपर्क में रहने वाले लोगों को 0 से 7 दिन पर फिर 21 दिनों पर 21 दिन के बाद तीन साल पर जरूर प्री वैक्सीन ले लेना चाहिए."- डॉ राकेश कुमार, पशु चिकित्सक
पशु अस्पताल में नहीं है एंटी रैबिज सूईः पशु अस्पताल के चिकत्सक ने बताया कि यहां पशुओं के लिए एंटी रैबिज इंजेक्शन फ्री में उपलब्ध नहीं कराई जाती है. बाहर से पशु पालक इंजेक्शन खरीद कर लाते हैं तो उन्हें दिया जाता है. बता दें कि गली-मुहल्ले और सड़क पर घूमते कुत्ते शरीर के किसी अंग में दांत घुसा दे तो तत्काल इंजेक्शन लेना चाहिए. अगर सही समय पर इंजेक्शन नहीं लगवायी जाए तो रैबीज की बीमारी लग जाती है और इससे मौत भी हो सकती है.
"रेबीज एक बीमारी है जो कि रेबीज नामक विषाणु से होती है. यह मुख्य रूप से पशुओं की बीमारी है लेकिन संक्रमित पशुओं द्वारा मनुष्यों में भी हो जाती है. यह विषाणु संक्रमित पशुओं के लार में रहता है. जब कोई पशु मनुष्य को काट लेता है यह विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है."- डॉ कैसर जावेद