गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज के रहने वाले बॉलीवुड एक्टर पंकज त्रिपाठी (Bollywood Actor Pankaj Tripathi) अपनी आने वाली फिल्म 83 को लेकर चर्चा में हैं. जिले के बरौली प्रखंड के बेलसंड गांव में जन्मे पंकज त्रिपाठी कभी डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन उनकी तकदीर में एक्टर बनना ही लिखा था. उनके एक्टर बनने के पीछे की कहानी को उनके बचपन के दोस्त और बड़े भाई ने ईटीवी भारत से साझा की.
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बॉलीवुड में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले पंकज त्रिपाठी किसी परिचय के मोहताज नहीं है. हर किसी के जुबान पर पंकज त्रिपाठी का नाम रहने के पीछे का कारण उनकी लगन और मेहनत के साथ बेहतर अभिनय है. दरअसल, 2004 में रन फिल्म में उन्होंने छोटी सी भूमिका निभाई थी, इसके बाद ओमकारा फिल्म में अपनी छाप छोड़ने वाले पंकज त्रिपाठी अब तक करीब 100 से ज्यादा फिल्मों में अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं.
2012 में गैंग्स ऑफ वासेपुर ने उनको जो मुकाम दिया, उसको वे लगातार आगे बढ़ाते आए हैं. पंकज त्रिपाठी की फिल्में (Movies of Pankaj Tripathi) मसान, नील बट्टे सन्नाटा, न्यूटन, कागज, क्रिमिनल जस्टिस, मिमी से लेकर मिर्जापुर वेब सीरीज में उनका अभिनय लगातार निखरता गया. इरफान खान को पसंद करने वाले पंकज कई क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों से खुद को निखारते भी हैं.
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इसी महीने 24 दिसंबर को रिलीज हो रही कबीर खान की फिल्म 83 में वो फिर से अपने किरदार को लेकर चर्चा में हैं. इस फिल्म में मान सिंह के किरदार में पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi as Man Singh) ने बेहतरीन अभिनय अदा किया है. बता दें कि 83 फिल्म 1983 में विश्व कप क्रिकेट की जर्नी पर बनी है. भारतीय टीम के मैनेजर मान सिंह के किस्से देश में बहुत कम लोग ही जानते हैं. 1983 के विश्वकप में कुल 15 लोग ही गए थे, जिसमें से एक मान सिंह थे. इसमें 14 खिलाड़ियों के अलावा अकेले मान सिंह गए थे.
कपिल देव से लेकर बाकी खिलाड़ियों को देश जानता है, लेकिन मान सिंह का विश्वकप जीतने में क्या और किस तरह का योगदान था, इसको बहुत कम लोग जानते हैं. उनके योगदान को फिल्म के जरिए दिखाने की कोशिश है. मान सिंह का योगदान और टीम की पूरी यात्रा कैमरे से दिखेगी. ऐसा पहली बार होगा जब कैमरे के पीछे रहे लोगों की कहानी से करोड़ों भारतीय रूबरू होंगे.
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ईटीवी भारत की टीम बॉलीवुड स्टार पंकज त्रिपाठी के गांव पहुंची. इस दौरान ईटीवी भारत ने बेलसंड गांव निवासी पंकज त्रिपाठी के बचपन के मित्र राजन तिवारी से बात की तो उन्होंने बताया कि पंकज बचपन में सरल स्वभाव और मिलनसार व्यक्ति थे. आज भी उनमें ये खूबियां देखने को मिल रही है. साथ ही उन्होंने कहा कि गांव में अक्सर हम लोग ड्रामा खेला करते थे और उस ड्रामे में पंकज को जो भी रोल मिलता था उसमें वो बेहतर प्रदर्शन किया करते थे. एक बार ड्रामा के लिए महिला के रोल के लिए कोई नहीं मिल रहा था, लेकिन पंकज ने महिला का रोल कर बेहतर प्रदर्शन किया.
वहीं, उनके एक और मित्र राकेश उपाध्याय ने बताया कि पंकज जो कल थे, वो आज भी हैं. उनके स्वभाव में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है. मिलनसार व्यक्तित्व उनमें कूट-कूट कर भरा है. हम लोग हमेशा साथ रहे हैं, साथ खेले हैं, इस बीच पंकज पढ़ने के लिए पटना चले गए. जहां उन्होंने काली दास रंगालय में अभिनय के साथ-साथ पढ़ाई को भी जारी रखा.
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उनके बड़े भाई विजेन्द्र नाथ तिवारी ने बताया कि पंकज हमसे 15 साल छोटा है, हमने उसे गोद में खिलाया है. वो बचपन से ही लग्न, मेहनत और प्रतिभा के धनी हैं. पटना में इंटर में पढ़ने के लिए नाम लिखवाया और वहीं से छात्र नेताओं के सम्पर्क में आकर छात्र राजनीति भी की. इस बीच मधुबनी में एक छात्र को गोली लग गई थी, जिसका विरोध विधानसभा में गूंजने लगा और विधानसभा में घुसने के जुर्म में गिरफ्तारी हुई थी.
जेल में उन्हें एक साहित्यकार से मुलाकात हुई और उस साहित्यकार ने उनकी प्रतिभा को देखकर उन्हें अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ने की सलाह दी, जिसके बाद उन्होंने काली दास रंगालय के अलावा विभिन्न जगहों पर अपना अभिनय का प्रदर्शन किया. लोगों की सराहना मिलती रही, पंकज आगे बढ़ते रहे और वो आज बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं.
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