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सूखे की मार से निराश मत्स्य पालक, सरकार के साथ की आस

मछली पालकों को सिर्फ बारिश के पानी पर ही निर्भर होना पड़ता है. या फिर खुद का तालाब बनाकर मछली पालन के लिए साधन बनाते हैं.

मत्स्य पालक
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Published : Jun 13, 2019, 2:40 AM IST

गोपालगंजः मछली पालन को बढ़ावा देने और उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए सरकार लक्ष्य तो निर्धारण करती है लेकिन यह लक्ष्य कभी पूरा नहीं होता. मछली पालकों को न ही मौसम की साथ मिलता है न ही सरकार कि किसी योजना का.

अगर मछली पालकों की समस्या की बात करें तो इनके सामने बड़ी समस्या पानी की है. इन पालकों को सिर्फ बारिश के पानी पर ही निर्भर होना पड़ता है. या फिर खुद का तालाब बनाकर मछली पालन के लिए साधन बनाते हैं. निजी मछली पालक मंहगे दामो पर पम्प सेट चलाकर तालाबो में पानी भर कर मछली पालन कर रहे हैं. लेकिन सरकारी स्तर पर बने तालब पानी के अभाव में सूखे पड़े हैं.

3 साल से मछली पालन पर असर
पिछले 3 साल से लगातार कम बारिश होने से जिले की मछली उत्पादन पर भी असर पड़ने लगा है. मछली पालन के लिए कम से कम 3 से 8 फिट पानी किसी भी तालाब में होना आवश्यक होता है. लेकिन पिछले 3 साल से कम बारिश होने के कारण जिले के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई. सूखे की मार से मछली उत्पादन में 60 फ़ीसदी तक गिरावट दर्ज की गई. जिससे मत्स्य विभाग और मछली पालक भी चिंता में पड़ गए हैं.

घाटे का सौदा मछली पालन?
मत्स्य विभाग के अनुसार बारिश ने जिले में निजी मत्स्य पालकों की संख्या 400 है. वहीं, सरकारी मत्स्य पालक 850 है. कम उत्पादन होने के कारण मछली पालकों का मुनाफा कम हो रहा है. ऐसे में जिले के प्रगतिशील किसान मछली पालन को घाटे का सौदा मान रहे हैं. विभागीय अधिकारी के मुताबिक जिले में लगभग 17.05 हजार मैट्रिक टन मछली की खपत होती है. लेकिन वर्तमान समय मे सूखे के कारण क्षेत्र में से मछली का उत्पादन कम होने लगा.

पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या
मछली पालक विक्रमादित्य प्रसाद कहते हैं कि इस काम में सबसे बड़ी समस्या पानी की है. प्रत्येक वर्ष पानी घट रहा है. पानी के अभाव के कारण मत्स्य पालन में वृद्धि नहीं हो पा रही है. उन्होंने बताया कि कृषि में जो सुविधाएं मिलती है वह सुविधाएं मत्स्य पालकों को नही मिलती. अगर सरकार मत्स्य पालकों पर ध्यान दे तो इसकी उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है.

निराश मत्स्य पालक

दूसरे मत्स्य पालक कहते हैं कि तीन साल से मछली पालन कर रहे हैं लेकिन बारिश नहीं होंने के कारण उन्हें नुकसान झेलना पड़ रहा है. हमेशा पम्प सेट लगाकर भी यह व्यवसाय नहीं हो सकता.

क्या कहते हैं अधिकारी
मत्स्य पालन पदाधिकारी अनिल कुमार ने बताया कि जिले में कुल 850 तालाब है जिसमे 60 प्रतिशत कारगर नहीं हैं. जिससे मछली के उत्पादन पर असर पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि मत्स्य पालन के प्रोत्साहन के लिए मछली पालकों को पम्पइसेट मुहैया कराए जा रहे हैं. विभागीय स्तर पर सरकारी पोखरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है.

गोपालगंजः मछली पालन को बढ़ावा देने और उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए सरकार लक्ष्य तो निर्धारण करती है लेकिन यह लक्ष्य कभी पूरा नहीं होता. मछली पालकों को न ही मौसम की साथ मिलता है न ही सरकार कि किसी योजना का.

अगर मछली पालकों की समस्या की बात करें तो इनके सामने बड़ी समस्या पानी की है. इन पालकों को सिर्फ बारिश के पानी पर ही निर्भर होना पड़ता है. या फिर खुद का तालाब बनाकर मछली पालन के लिए साधन बनाते हैं. निजी मछली पालक मंहगे दामो पर पम्प सेट चलाकर तालाबो में पानी भर कर मछली पालन कर रहे हैं. लेकिन सरकारी स्तर पर बने तालब पानी के अभाव में सूखे पड़े हैं.

3 साल से मछली पालन पर असर
पिछले 3 साल से लगातार कम बारिश होने से जिले की मछली उत्पादन पर भी असर पड़ने लगा है. मछली पालन के लिए कम से कम 3 से 8 फिट पानी किसी भी तालाब में होना आवश्यक होता है. लेकिन पिछले 3 साल से कम बारिश होने के कारण जिले के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई. सूखे की मार से मछली उत्पादन में 60 फ़ीसदी तक गिरावट दर्ज की गई. जिससे मत्स्य विभाग और मछली पालक भी चिंता में पड़ गए हैं.

घाटे का सौदा मछली पालन?
मत्स्य विभाग के अनुसार बारिश ने जिले में निजी मत्स्य पालकों की संख्या 400 है. वहीं, सरकारी मत्स्य पालक 850 है. कम उत्पादन होने के कारण मछली पालकों का मुनाफा कम हो रहा है. ऐसे में जिले के प्रगतिशील किसान मछली पालन को घाटे का सौदा मान रहे हैं. विभागीय अधिकारी के मुताबिक जिले में लगभग 17.05 हजार मैट्रिक टन मछली की खपत होती है. लेकिन वर्तमान समय मे सूखे के कारण क्षेत्र में से मछली का उत्पादन कम होने लगा.

पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या
मछली पालक विक्रमादित्य प्रसाद कहते हैं कि इस काम में सबसे बड़ी समस्या पानी की है. प्रत्येक वर्ष पानी घट रहा है. पानी के अभाव के कारण मत्स्य पालन में वृद्धि नहीं हो पा रही है. उन्होंने बताया कि कृषि में जो सुविधाएं मिलती है वह सुविधाएं मत्स्य पालकों को नही मिलती. अगर सरकार मत्स्य पालकों पर ध्यान दे तो इसकी उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है.

निराश मत्स्य पालक

दूसरे मत्स्य पालक कहते हैं कि तीन साल से मछली पालन कर रहे हैं लेकिन बारिश नहीं होंने के कारण उन्हें नुकसान झेलना पड़ रहा है. हमेशा पम्प सेट लगाकर भी यह व्यवसाय नहीं हो सकता.

क्या कहते हैं अधिकारी
मत्स्य पालन पदाधिकारी अनिल कुमार ने बताया कि जिले में कुल 850 तालाब है जिसमे 60 प्रतिशत कारगर नहीं हैं. जिससे मछली के उत्पादन पर असर पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि मत्स्य पालन के प्रोत्साहन के लिए मछली पालकों को पम्पइसेट मुहैया कराए जा रहे हैं. विभागीय स्तर पर सरकारी पोखरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है.

Intro:मछली पालन को बढ़ावा देने व उत्पादकता में बृद्धि करने को लेकर सरकार जितने भी लक्ष्य निर्धारण कर ले लेकिन हमेशा से ही मछली पालन का लक्ष्य पूरा नही हो पाता। और हो भी क्यों क्योंकि इन मछली पालकों को ना ही मौसम मेहराब होता है और नाही सरकार की कोई योजनाओ का लाभ मिलता है। सिर्फ विभागीय कार्यवाई तक ही सीमित रह जाती है। अगर मछली पालकों की समस्या की बात करे तो सबसे बड़ी समस्या पानी की है इन पालकों को सिर्फ वर्षा के पानी पर ही निर्भर होना पड़ता है। या खुद का तालाब व मछली पालन की साधन करना पड़ता है बावजूद। निजी मछली पालक मंहगाई दामो पर पम्पी सेट चलाकर किसी तरह अपने तालाबो में पानी भर कर मछली पालन तो कर रहे है लेकिन सरकारी स्तर पर बने तालब पानी के अभाव में सूखे पड़े है। जो निजी तालब है उसमें भी सरकार की कोई भी योजना इन्हें नही मिलती पिछले 3 साल से लगातार कम बारिश होने से जिले की मछली उत्पादन पर भी असर पड़ने लगा है। आलम यह है कि सूखे की मार से मछली उत्पादन में 60 फ़ीसदी तक गिरावट दर्ज की गई। जिससे मत्स्य विभाग व मछली पालक भी चिंता में पड़ गया। मछली पालन के लिए कम से कम 3 से 8 फिट पानी किसी भी तालाब में होना आवश्यक होता है। लेकिन पिछले 3 साल से कम बारिश होने के कारण जिले के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई मत्स्य विभाग के अनुसार बारिश ने जिले में निजी मत्स्य पालकों की संख्या 400 है वही सरकारी मत्स्य पालक 850 है। जिसके समक्ष गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। कम उत्पादन होने के कारण मछली पालकों का मुनाफा कम हो रहा है। ऐसे में जिले के प्रगतिशील किसान मछली पालन को घाटे का सौदा मानकर इसे पिंड छुड़ाना चाह रहे हैं। विभागीय अधिकारी की मानें तो जिले में लगभग 17.05 हजार मैट्रिक टन मछली का खपत होता है लेकिन वर्तमान समय मे सूखे के कारण क्षेत्र में से मछली का उत्पादन कम होने लगा
मछली पालकों के समक्ष आर्थिक संकट मंडरा रहा है सुखे की मार झेल रहे मछ्ली पालकों को उत्पादन कम होने से चिंतित है। मछली पालक विक्रमादित्य प्रसाद ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या पानी की है। प्रत्येक वर्ष पानी घट रही है। पानी के अभाव के कारण मत्स्य पालन में वृद्धि नही हो पा रही है। उन्होंने बताया कि कृषि में जो सुविधाएं मिलती है वह सुविधाएं मत्स्य पालकों को नही मिलती अगर सरकार मत्स्य पालकों पर ध्यान दे तो इसकी उत्पादकता में वृद्धि होती। वही एक अन्य मछली पालक ने बताया की तीन वर्ष से मछली पालन कर रहे है लेकिन वर्षा नही होंने के कारण मत्स्य पालन नही कर पाते है पम्पी सेट चलाकर कोशिश किया जाता है लेकिन इससे सम्भव नही है अब वर्षा पर ही निर्भर होना पड़ता है। वही मत्स्य पालन पदाधिकारी अनिल कुमार ने बताया कि जिले में कुल 850 सरकारी तालब है जिसमे 60 प्रतिशत कारगर नही है जिससे मछली के उत्पादन नही होता जो बचा भी है वही बारिश पर ही निर्भर है।मत्स्य पालन के प्रोत्साहन के लिए मछली पालकों को पम्पइसेट मुहैया कराई जा रही है। विभागीय स्तर पर सरकारी पोखरे का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।






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